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महिला दिवस पर

10 मार्च 2018

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एक मुक्तक घर की नींव रही हैं पर कमतर कहलाएं दंश सहैं खुद, सबकी चोटों को सहलाने चरखा अगर पुरुष हैं तो कपास हैं बच्चे परिवारों के बुनकर का चरखा महिलाएं।

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