कल... अजीब है यह कल... कि आता ही नहीं .... रहता है साथ हर पल.... कि जाता भी नहीं... अजीब है यह कल..... मिजाज है सख्त.. पाबंदियां बहुतेरी.. करता है बातें कितनी.. निभाता ही नहीं ... चैन मयस्सर था पर लेने ना दिया... मुस्कुराहट इन लबों पर पर हंसने न दिया... झटकती हूं पल्लू कि गिरा दूं इसे ..
छोड़ के यह दामन जाता भी नहीं ... अजीब है यह कल की आता ही नहीं... चाहत है उसी की अंदाज़ है जुदा उलझती हूं जब तब.. बंधन में इसके... मुस्कुराता है .. पर साथ निभाता ही नहीं... अजीब है यह कल की आता ही नहीं... कर लिया है वादा आज से कि जीना है तेरे संग... की इश्क है तुझी से मरना है तेरे संग... इंतजार बहुत किया ना देखूंगी कल की ओर... कल से रहूंगी साथ तेरे आज रहने दे इसको और.... कितना अजीब है यह कल की जाता ही नहीं... शिप्रा राहुल चंद्रा