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उलझन

10 नवम्बर 2015

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मेरी एक कविता खो  गयी  है 

ढूंढती फिर रही हूं सब  जगह 

किताबो के बीच  में 

मेज़ की दराज में पर्स की जेब में 

हैरान हूं परेशान हूं 

मिल नहीं रही 

उलझन है भरी 

क्या लिखा था कुछ याद नहीं 

पर जो भी था आप सब पढ़ते 

तो शायद खुश होते 

आनंद उठाते औरो को भी पढ़वाते 

पर क्या अब कहु की खो गयी है 

मेरी एक कविता खो गयी है 

किस रस में  थी  पगी 

अब भूल  गयी 

सच कहू तो थी बड़ी रसीली 

चटपटी भी थी 

एकदम मज़ेदार 

खनकी खनकी सी खनक थी 

शायद पायल की 

महकी महकी कुछ महक थी 

शायद फूलों की 

गरजते थे बादल 

चमकती थी  बिजली 

छायी थी घटा घनघोर 

नहीं नहीं 

कुछ याद है पड़ता 

धूप थी चमकी 

चतुरंगी  काव्य में 

अभी तो शरद की जिल्द थी उलटी 

अंदर के पन्नो को पढ़ना बाकी था 

अभी तो पारिजात के पुष्प ने 

टप टप टपक कर 

कैसी सुन्दर सेज़ बिछाई थी 

की मन मयूर डोला था 

अभी तो कुछ गर्माता जाड़ा 

था खड़ा दरवाजे की ओट में 

देखता चोर निगाहों से 

सब से बचकर अंदर आता 

देख लिया था मैंने उसे 

मुझे देख धीरे से मुस्काता 

जैसे हो करता चिरौरी मेरी 

दृश्य दीखता बड़े मनोरम 

क्या कहु कुछ याद नहीं पड़ता 

ओफ्फो क्यों खो गयी है 

मेरी एक कविता खो गयी है 

मुझे पता है की देख रही 

यही कही है छुपी हुई 

उलझन मेरी समझ रही है 

कहती है देखो पड़ी तो हु इस ओर 

तुम्ही ने तो रख के छोड़ दिया मुझे 

अब व्यर्थ में क्यों रो रही हो 

उठा लो मुझे या करो वक़्त का इंतज़ार 

इंतज़ार उस पल का जब 

टप से गिरूंगी तुम्हारे आगे 

हां पर ये वादा लो 

की भुला न देना मुझे 

की मेरा अस्तित्व तुम्ही से है 

मेरी एक कविता खो गयी है 

खो गयी है . . .

  शिप्रा राहुल चन्द्र 
शिप्रा चन्द्र

शिप्रा चन्द्र

धन्यवाद ओम प्रकाश शर्मा जी

14 नवम्बर 2015

ओम प्रकाश शर्मा

ओम प्रकाश शर्मा

उम्दा नज़्म ! बहुत-बहुत बधाई, शिप्रा जी !

14 नवम्बर 2015

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रक्षा बंधन

23 अगस्त 2015
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आज सुबह नीला का पत्र का मिला ।प्यारे भैया भाभी ,रक्षा बंधन के पवन पर्व पर आप सभी को राखी भेज रही हूँ ।संभव हुआ तो राखी के पर्व पर आने का प्रयास करूंगी , पर विनय को छुट्टी मिले न मिले , इसीलिए सोचा राखी भेज देती हूँ ,आप सभी की

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अंदाज़

4 नवम्बर 2015
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मुस्कुराने के नहीं ढूंढते बहाने खिलखिला के हँसते है अब ज़िंदगी ने करवट जो ली जीने का दम  भरते  है अब ज़मी पर पैर  टिकते   नहीं आसमा छूने की तमन्ना रखते है अब राह  है कांटो भरी तो क्या गम  है चुभ न जाए ये कुछ इस तरह बच कर निकलते है अब मन करता है जो भी अब ख्वाहिशो का दामन कस कर पकड़ते है अब आँखों में ये

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10 नवम्बर 2015
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मेरी एक कविता खो  गयी  है ढूंढती फिर रही हूं सब  जगह किताबो के बीच  में मेज़ की दराज में पर्स की जेब में हैरान हूं परेशान हूं मिल नहीं रही उलझन है भरी क्या लिखा था कुछ याद नहीं पर जो भी था आप सब पढ़ते तो शायद खुश होते आनंद उठाते औरो को भी पढ़वाते पर क्या अब कहु की खो गयी है मेरी एक कविता खो गयी है किस

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एक मुक्कमल जहाँ

28 अप्रैल 2016
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पत्थर की दीवारे  ऊँचे किनारे  सन्नाटे गलियारे एक मुक्कमल जहाँ कभी थी रौनके खिलखिलाती थी हंसी कभी शाम ढलते ही जगमगाते थे  आले दिए भर रौशनी लिए चुपचाप बैठे है ऐसे आज  गोया कोई काम ही नहीं ख़ूबसूरती है कायम अंदाज़ वोही हज़ारो हाथ लगे थे इन्हे बनाने में हज़ारो पेट भरे थे मैहँताने 

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कल

11 अक्टूबर 2019
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कल... अजीब है यह कल... कि आता ही नहीं .... रहता है साथ हर पल.... कि जाता भी नहीं...

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क़लम से

11 अक्टूबर 2019
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आज फिर मन हुआ कुछ लिखा जाए ... क्या क्यों किस लिए पता नहीं...... खाली कागज खाली जिंदगी... ना कोई खाका ना पैमाना ना ही शब्दों का सुनहरा जाल... खाली आसमान खाली मैदान

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क्षड़िकाएँ

13 अक्टूबर 2019
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खत्म हुआ दिन.... बातें तमाम हुई... उलझने मुस्कुराहटे... निंदा चापलूसी...

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