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आज सुबह नीला का पत्र का मिला ।प्यारे भैया भाभी ,रक्षा बंधन के पवन पर्व पर आप सभी को राखी भेज रही हूँ ।संभव हुआ तो राखी के पर्व पर आने का प्रयास करूंगी , पर विनय को छुट्टी मिले न मिले , इसीलिए सोचा राखी भेज देती हूँ ,आप सभी की
मुस्कुराने के नहीं ढूंढते बहाने खिलखिला के हँसते है अब ज़िंदगी ने करवट जो ली जीने का दम भरते है अब ज़मी पर पैर टिकते नहीं आसमा छूने की तमन्ना रखते है अब राह है कांटो भरी तो क्या गम है चुभ न जाए ये कुछ इस तरह बच कर निकलते है अब मन करता है जो भी अब ख्वाहिशो का दामन कस कर पकड़ते है अब आँखों में ये
मेरी एक कविता खो गयी है ढूंढती फिर रही हूं सब जगह किताबो के बीच में मेज़ की दराज में पर्स की जेब में हैरान हूं परेशान हूं मिल नहीं रही उलझन है भरी क्या लिखा था कुछ याद नहीं पर जो भी था आप सब पढ़ते तो शायद खुश होते आनंद उठाते औरो को भी पढ़वाते पर क्या अब कहु की खो गयी है मेरी एक कविता खो गयी है किस
पत्थर की दीवारे ऊँचे किनारे सन्नाटे गलियारे एक मुक्कमल जहाँ कभी थी रौनके खिलखिलाती थी हंसी कभी शाम ढलते ही जगमगाते थे आले दिए भर रौशनी लिए चुपचाप बैठे है ऐसे आज गोया कोई काम ही नहीं ख़ूबसूरती है कायम अंदाज़ वोही हज़ारो हाथ लगे थे इन्हे बनाने में हज़ारो पेट भरे थे मैहँताने
कल... अजीब है यह कल... कि आता ही नहीं .... रहता है साथ हर पल.... कि जाता भी नहीं...
आज फिर मन हुआ कुछ लिखा जाए ... क्या क्यों किस लिए पता नहीं...... खाली कागज खाली जिंदगी... ना कोई खाका ना पैमाना ना ही शब्दों का सुनहरा जाल... खाली आसमान खाली मैदान
खत्म हुआ दिन.... बातें तमाम हुई... उलझने मुस्कुराहटे... निंदा चापलूसी...