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रक्षा बंधन

23 अगस्त 2015

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आज सुबह नीला का पत्र का मिला । प्यारे भैया भाभी , रक्षा बंधन के पवन पर्व पर आप सभी को राखी भेज रही हूँ । संभव हुआ तो राखी के पर्व पर आने का प्रयास करूंगी , पर विनय को छुट्टी मिले न मिले , इसीलिए सोचा राखी भेज देती हूँ ,आप सभी की नीला ।.. पत्र उठाकर प्रिया ने भगवन की अलमारी वाली ताख में रख दिया , फिर मन ही मन बुदबुदाने लगी , अब जब राखी तो भेज दी तो आने की क्या जरूरत , राखी तो मिल ही गयी अब अपने भैया की हालत तो जानती ही है । अरे तुम ठहरी पैसे वाली घर की , विनय बाबू की सरकारी नौकरी जब चाहा ठाट से आ गयी धरना देने अपने भाई के घर ।kabhi ये भी सोचा की भाई की इनकम कितनी है । आते ही तन्खवाह कब फुर्र हो जाती है मालूम नहीं चलता , महीने में एक हफ्ता भी पैसा हाथ में रुकता नहीं ,की तगाते वालो का तगाता शुरू , दूध का बिल , अख़बार का बिल, राशन पानी , न जाने क्या क्या ।..... चली है मेमसाहब अपने भाई के घर राखी मानाने अरे पिछली बार आये थी तो जैसे तैसे एक साडी लेकर दी थी वो भी उधारी में , मेमसाहब ने लौटा दी , की अब मई साडी नहीं पहनती ले के क्या करूंगी । रख लेती प्यार से भाई लाया था तो क्या इज्जत घाट जाती पर नहीं दिखा दिया चेता दिया भैया तुम्हारी हैसियत क्या है । इतनी भी बुद्धि नहीं की दिया हुआ तोहफा लौटते नहीं है , तोहफा नहीं इंसान का मन देखना चाहिए । राकेश तौलिया कंधे पर दाल कर नहाने जा रहा था , प्रिया की बड़बड़ सुन कर रुक गया ,''क्या प्रिया क्यों रोज सुबह सुबह शुरू हो जाती हो ,चलो जाने भी दो रोज रोज वो ही बातैं क्या फायदा तुम्हारे बड़बड़ाने से परिस्थितिया बदल जाती , या मुझे दो चार पैसे की इनकम हो जाती तो कितना मज़ा आता ,क्यों है न , रोज सुबह सुबह कमाई हो जाती । क्या क्या कहा मैं बड़बड़ाती हूँ , अरे भागे कहा जाते हो रुको यही अभी बताती हूँ तुम्हे हर समय मज़ाक अरे मैं बड़बड़िया हूँ तो तुम ही सीरियस हो जाओ ,रोज उठ कर बिनवजह ठहाके लगते घूमते हो । जाने कौन जनम का बदला लिया माँ बाबू जी ने दुशमनी निभा के चले गए सबसे बड़ी थी तो झोंक दिया ससुराल में ला के । बाकि छोटी चारो को सही समय पर अच्छे अच्छे घरो में ब्याह करवाया ,ले दे के एक यही मकान देख कर पिघल गए , वो भी कौन अच्छा है , बरसात में रसोई में खाना नहीं बना सकते छत चूती है और दीवारे उनका तो क्या कहना चुना झड़ झड़ कर पिछली की पिछली पुताई का रंग नज़र आता है । दरवाजे झूल कर लटक गए है रात में चोर आ के एक धक्का मारे तो खुद ही गिर कर रास्ता दे देंगे,''की घुसो भाई ''। अरे चोर भी यहाँ आ के रोयेगा सोचेगा की क्या चुराऊँ शर्मा के उल्टा सौ दो सौ रख जायेगा । हे दुर्गा माँ कौन जनम का बदला लिया । तभी अचानक प्रिया को याद आया की राकेश के ऑफिस जाने का समय हो गया ,आँखों में उतर आये आंसू पोछते हुए वो झटपट चौके की तरफ भागी । है राम ये क्या तुमने चाय खुद ही बना ली , अचानक प्रिया ग्लानि से भर गयी ,''हे प्रभु बेचारे दिन भर ऑफिस में खटते है और मई एक प्याला चाय बना कर नहीं दे सकती , सही कहते है ये मई बड़बड़िया हूँ , अकल मारी गयी है मेरी । लो मेरी जान आज हमारी तरफ से बेगम के हुजूर में गर्म गर्म चाय और नाश्ता ,''नोश फरमाये '', राकेश के इतना कहते ही प्रिया खिलखिला कर हंस पड़ी । राकेश बोला अब आया मज़ा भाई वाह ,'' अर्ज़ किया है इरशाद कहो इरशाद '' अरे हटो भी फिर वाही अच्छा चलो कहा इरशाद , प्रिया बोली । अर्ज़ किया है ,'' तेरे हर ज़ख्म को सहेज कर रखा है सीने में पी लूँगा तेरे हर आंसू को , तब मज़ा आएगा कुछ जीने में '' वाह वाह वाह क्या बात है ''। अरे हटो भी बुढ़ापे ये सब मिज़ाज़ अच्छा लगता है क्या , प्रिया शर्माती हुई बोली । अरे भाई हम तो बूढ़े नहीं हुए , चले अब दिहाड़ी पर काम करने । राकेश के जाते ही प्रिया अपने रोजमर्रा के काम में व्यस्त हो गयी ,हाथ के काम निपटा ही पायी थी की सोमु स्कूल से वापस आ गया । मां माँ मई आ गया । आ गया मेरा राजा बेटा ,,अरे अरे कितनी बार कहा बहार के कपड़ो में चिपका मत कर , पसीने की कैसे महक आ रही है । ओफ़्फ़ ,चल नहाने जा । अच्छा माँ जाता हूँ । गुसलखाने में घुसते ही सोमु चिल्लाने लगा ये क्या माँ साबुन खत्म हो गया । अरे खत्म कहा हुआ होगा न थोड़ा सा , देख तो साबुनदानी में थोड़ी सी चिप्पी पड़ी होगी नहा ले न उसी से । मुझे नहीं नहाना चिप्पी विप्पी से । अच्छा तो कपडे वाले साबुन से नह ले , प्रिया बोली . सोमु बोला ठीक है माँ पर कपडे वाला साबुन जल्दी छूटता नहीं । सब छूट जाता है , अरे हम लोग तो पहले शैम्पू की जगह कपडे वाले साबुन से सर धोते थे और बाल भी क्या चमकते थे ,जितना ज़माना आगे बढ़ रहा है उतने ही चोचले । महीने का आखिरी चल रहा है जानता है न । अगले महीने मंगवाएंगे , अरे अब क्या टंकी खली कर देगा । आता हूँ माँ , मेरी अच्छी माँ ,। आज मेरा राजा जल्दी से तौलिया लपेट , सिर पोंछ , कितना उछलता है सीधा खड़ा रह । सिर पोछते पोछते प्रिया बोली । माँ माँ राखी का फेस्टिवल सेलिब्रेट होना है स्कूल में , मैम ने ट्वेंटी रुपीस मंगवाए है , गर्ल्स बॉयज को राखी बंधेगी और बॉयज गर्ल्स को गिफ्ट देंगे । अच्छा अच्छा पापा से कह दूँगी , प्रिया बोली । और मैम ने कहा है की अन्य ड्रेस आना है , सोमु बोला । हां हां सुन लिया , अच्छा है केवल अन्य ड्रेस बोला , ड्रेस का कलर नहीं बताया वरना वो भी मुसीबत , इंतजाम करो । खाना खा कर चलो सो जाओ । ये क्या माँ वो ही पराठा और सब्जी यही तो मैं स्कूल ले गया था । मुझे नहीं खाना । चुपचाप मुँह बंद कर के खा ले जो मिल रहा है वो ही बहुत है समझे । पर माँ मुँह बंद कर के कैसे खाऊ , सोमु बोला । चुप कर सोमु बात पर बात देना अच्छी बात नहीं । अच्छा अच्छा मेरी प्यारी माँ । चलो सोने चले बड़ी जोर के नींद आ रही है । प्रिया घर के बहार टहल रही थी , नौ बज रहे थे और राकेश अभी घर नहीं आया था ,मोबाईल भी नहीं लग रहा था ,। जरूर इनकी स्कूटर ख़राब हो गयी होगी , तभी इतनी देर । तभी गेट पर पि पी की आवाज सुनाई दी , राकेश आ गया था । आज बड़ी देर कर दी ,प्रिया गेट खोलते हुए बोली । सोमु इन्तजार करते करते सो गया । अरे आज बड़ी जल्दी सो गया , स्कूटर खड़ी करते हुए राकेश बोला । हां बच्चा बेचारा पढ़ते पढ़ते सो गया , थक जाता है , स्कूल वाले होमवर्क भी तो कितना देते है । न तो बच्चे खेल पाते है न ही टी . वी. देख पाते है , क्या हुआ तुम अपनी कहो कैसे इतनी देर हो गयी । अरे और क्या वो ही जोशी साहब उन्हें रात ही में सारे काम याद आते है , उसी में देर हो गयी । राकेश बोला । प्रिया झुँझला कर बोली की तुम कह दो न दिन में सब काम कर के चुकता करे ,और उन्हें खुद भी घर जाने की जल्दी नहीं होती । अरे वो क्यों जायेगा जल्दी घर उसकी बीवी तुम्हारी तरह खूबसूरत थोड़े ही है । राकेश ने चुटकी ली । क्या तुम भी घर आते ही शुरू हो गए , पहले चलो हाथ मुह धो और खाना खाओ । अरे खाना वाना छोड़ो पहले चन्द्रमुख निहार लू । अरे हटो भी खाना ठंडा हो रहा है । ना तुम बड़ी बेरसिक हो , मै दिन भर घड़िया गिनता हूँ की कब घर जाऊ और यहाँ बेगम साहिबा का मिज़ाज़ ही नहीं मिलता । राकेश मुह बना कर बोला । भूखे पेट भजन नहीं होता पहले भोग लगाओ , प्रिया बोली । खाना खाते खाते राकेश बोला ,''क्यों जी आज नीला की चिट्ठी आई थी ''। हां आई है राखी भेजी है और कहा है की अगर मौका मिला तो आएगी भी । तुम लिख दो अपनी बहन को की आना हो तो आये , पर अपने टिंकू मिंकू को न ले कर आये । क्या प्रिया मैं ऐसा कैसे लिख सकता हूँ, तुम भी क्या क्या कहती हो । वो बच्चो को छोड़ कर कैसे आएगी । बच्चे उनको बच्चा कहना बच्चे शब्द का अपमान होगा , ये तो तुम भी समझते हो । क्या प्रिया मामी हो तुम उनकी ऐसे बोलोगी । क्यों न कहू , जब भी आते है सोमु के सारे खिलौने तोड़ कर जाते है , और कहते तो इतना है की महाबली भीम औए घटोत्कच्छ भी शर्मा जाये । मामी आज ये बना दो, आज वो बना दो, जैसे लगता है माँ उनकी कुछ बना कर ही नहीं देती , चार दिन में महीने भर का राशन पानी हजम कर लेते है , बजट बिगड़ जाता है , कर्ज अलग से चढ़ जाता है । बाज़ आई ऐसे मेहमाननवाजी से । अब जाने भी दो प्रिया , राकेश बोला । देखो सोमु के पापा आने को नहीं मन कर रही हूँ पर आओ , जानती तो हो अपने भाई की हैसियत , दाल रोटी खाओ और रहो आराम से , पर नहीं उन्हें तो फाइव स्टार का ट्रीटमेंट चाहिए । तुम क्या सोचते हो मुझे तुम्हारी बहन का आना खलता है , अरे मुझे तो खुद ही परिवार का शौक था , पर मिला क्या , न सास न ससुर । होते तो शायद मैं भी आज तुम्हारे कुछ काम आ सकती , चार पैसे का सहारा देती ,और मेरा सोमु हाथो हाथ रहता , बेचारा दुसरो के दादा दादी को देख कर तरसता है । तुम्हे अकेला खटते देख मेरा भी मन करता है की तुम्हारा हाथ बटाऊ, पर सोमु को सोच कर रह जाती हूँ की इसको कौन देखेगा । ये ही सोच कर रह जाती हूँ । जाने दो प्रिया अब मन न भारी करो नहीं थे माँ बाप हमारी किस्मत में क्या कर सकते है , चलो अब सो जाओ रात बहुत हो गयी है । अगले दिन सुबह पोस्टमैन आ कर एक और चिट्ठी दे गया ,'' प्रिया पढ़ते ही ख़ुशी से झूमने लगी , अरे सुनते हो सोमु के पापा छोटे आ रहा है ' रक्षाबंधन पर , देखो चिट्ठी आई है ''। प्रिया ख़ुशी से झूमने लगी । रकेश शेविंग करते करते बाहर आया ,'' अच्छा तो साले साहब आ रहे है ।'' प्रिया ख़ुशी से उमगते हुए बोली हां , लिखा है ऑफिसियल टूर है , राखी वाले दिन जरूर आएगा । सुनो जी सामान की लिस्ट बना कर रखुंगी तुम सारा सामान साहू की दुकान से ला देना , पैसा हिसाब में लिखा देना , अरे बेचारा इतने दिन बाद आ रहा है । पता है सरकारी विभाग में बड़ा अफसर हुआ है , अब थोड़ा उसकी पोजीशन का ध्यान भी तो रखना होगा , और सुनो मिठाई मनमोहन के यहाँ से ले कर आन आना वो भी पूरी एक किलो , वरना सरला भाभी कहेंगी की कैसे मिठाई भेजी है दीदी ने , सुन रहे हो न मै क्या कह रही हूँ । हां हां सुन रहा हूँ सब काम बराबर से होगा हुज़ूर । आज रक्षाबंधन है , प्रिया आज रोज से कुछ ज्यादा व्यस्त है , घर साफ़ सुथरा है , सभी चीजे करीने से सजी है । प्रिया ओ प्रिया सारी तयारी हो गयी , छोटे बाबू आते होंगे । राकेश बोला । हां हां सब हो गया बस ये जरा आँगन में अलगनी में चादर डलवाने में थोड़ी मदद करो , पूरी दीवार पर काई लगी है । तभी गाड़ी रुकने की आवाज हुई , माँ माँ देखो मामा आ गए । अरे छोटे आओ आओ अंदर आओ , राकेश छोटे को अंदर लाया । प्रिया ने स्नेह से उसके माथे पर तिलक लगा राखी बाँधी , मिठाई खिलाई । छोटे को भोजन करवाया । और फिर भारी मन से विदा किया । छोटे के जाने के बाद उसने अपने भाई का प्रेम से दिया लिफाफा खोला , और खोलते ही बोली ,'' अरे सोमु के पापा देखो तो छोटे मुझे पुरे पांच हज़ार रुपए दे कर गया है ,'' अरे वाह भाई वाह सच में , राकेश बोला इससे तुम अपने लिए साड़ी ले आना , तुम्हारे पास अच्छी साड़ी नहीं है । नहीं नहीं तुम्हारे लिए मोबाईल लेंगे । कितना ख़राब हो गया है , इतने में अच्छे से आ जायेगा ,,। नहीं ये तुम्हारे पैसे है इससे तुम्हारा सामन आयेगा । उससे क्या जो जरूरी है वो आएगा , प्रिया बोली ।. तभी दरवाजे की घंटी बजी , दोनों एक दूसरे का मुह देखने लगे , तभी सोमु चिल्लाया , माँ पापा , देखो देखो बुआ आई है और साथ में चिंकी मिन्की दादा भि... क्या ............ शिप्रा राहुल चन्द्र
शिप्रा चन्द्र

शिप्रा चन्द्र

धन्यवाद .priyanka शर्मा जी । ओम प्रकाश शर्मा जी

24 अगस्त 2015

प्रियंका शर्मा

प्रियंका शर्मा

बहुत ही सुन्दर कहानी

24 अगस्त 2015

ओम प्रकाश शर्मा

ओम प्रकाश शर्मा

शिप्रा जी, 'रक्षाबंधन' पर बहुत अच्छी कहानी लिखी है ! मुझे बहुत पसंद आई !

24 अगस्त 2015

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रक्षा बंधन

23 अगस्त 2015
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आज सुबह नीला का पत्र का मिला ।प्यारे भैया भाभी ,रक्षा बंधन के पवन पर्व पर आप सभी को राखी भेज रही हूँ ।संभव हुआ तो राखी के पर्व पर आने का प्रयास करूंगी , पर विनय को छुट्टी मिले न मिले , इसीलिए सोचा राखी भेज देती हूँ ,आप सभी की

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अंदाज़

4 नवम्बर 2015
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मुस्कुराने के नहीं ढूंढते बहाने खिलखिला के हँसते है अब ज़िंदगी ने करवट जो ली जीने का दम  भरते  है अब ज़मी पर पैर  टिकते   नहीं आसमा छूने की तमन्ना रखते है अब राह  है कांटो भरी तो क्या गम  है चुभ न जाए ये कुछ इस तरह बच कर निकलते है अब मन करता है जो भी अब ख्वाहिशो का दामन कस कर पकड़ते है अब आँखों में ये

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अंदाज़

10 नवम्बर 2015
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उलझन

10 नवम्बर 2015
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मेरी एक कविता खो  गयी  है ढूंढती फिर रही हूं सब  जगह किताबो के बीच  में मेज़ की दराज में पर्स की जेब में हैरान हूं परेशान हूं मिल नहीं रही उलझन है भरी क्या लिखा था कुछ याद नहीं पर जो भी था आप सब पढ़ते तो शायद खुश होते आनंद उठाते औरो को भी पढ़वाते पर क्या अब कहु की खो गयी है मेरी एक कविता खो गयी है किस

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एक मुक्कमल जहाँ

28 अप्रैल 2016
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पत्थर की दीवारे  ऊँचे किनारे  सन्नाटे गलियारे एक मुक्कमल जहाँ कभी थी रौनके खिलखिलाती थी हंसी कभी शाम ढलते ही जगमगाते थे  आले दिए भर रौशनी लिए चुपचाप बैठे है ऐसे आज  गोया कोई काम ही नहीं ख़ूबसूरती है कायम अंदाज़ वोही हज़ारो हाथ लगे थे इन्हे बनाने में हज़ारो पेट भरे थे मैहँताने 

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कल

11 अक्टूबर 2019
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कल... अजीब है यह कल... कि आता ही नहीं .... रहता है साथ हर पल.... कि जाता भी नहीं...

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क़लम से

11 अक्टूबर 2019
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आज फिर मन हुआ कुछ लिखा जाए ... क्या क्यों किस लिए पता नहीं...... खाली कागज खाली जिंदगी... ना कोई खाका ना पैमाना ना ही शब्दों का सुनहरा जाल... खाली आसमान खाली मैदान

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क्षड़िकाएँ

13 अक्टूबर 2019
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खत्म हुआ दिन.... बातें तमाम हुई... उलझने मुस्कुराहटे... निंदा चापलूसी...

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