आज फिर से ख़याल आया है,
बंद पलकों में ख्वाब आया है,,
रुंधे गले की सिसकियों ने
जो दस्तक दी है,
अब तो आंखों का भी
रोने का मन बन आया है,,
आज फिर से ख़याल आया है,
बंद पलकों में ख्वाब आया है ।।
चाहतें ख्वाब बन गयीं अब तो,
वक़्त के उन हसीन लम्हों के,,
आईने भी तो अब कतराते हैं,
मुस्कुराते अक्स को दिखाने से,,
इन्हीं हालात के ख़यालों में,
दिल मेरा आज फिर भर आया है,,
आज फिर से ख़याल आया है,
बंद पलकों में ख्वाब आया है,,
बंद पलकों में ख्वाब आया है ।।
स्व-रचित---
विजय कनौजिया
9818884701