मेरी कल्पना की अप्सरा
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" चंद्रलोक की उज्ज्वल, स्वच्छ, चांदनी से स्नानकर चारु चंद्र की चंचल किरणों द्वारा, रजनीगंधा सी महकती, चहुँ ओर अपना अनुपम, अतुल्य अनमोल, अलौकिक, असीम, सौम्य, भव्य, सौंदर्य की छ्टा विखेरती, मन लुभाती मनमोहनी मूरत जैसे पृथ्वी लोक पर विचरण हेतु उतर आई हो ।,,
"सावन भांदों के श्याम, उमड़ते-घुमड़ते घटाओं की घनघोर मेघों की भांति, घुघराली, लहराती, बलखाती असंख्य नाग कन्याओं सी कमर लोटती श्यामल केश राशि, उस पर वातावरण को सुगन्धित करता, सम्मोहित करता, ताज़े रजनीगंधा का सुमन गजरा लपेटे घने मेघों में विद्युत सी चमचमाती हीरों जड़ित, सुशोभित करते, मानो चार चाँद लगा रहे हों ।,,
हिमालय सा विस्तृत, विशाल, चमचमाता ललाट, जिस पर सुगन्धित श्वेत चन्दन का टीका, गोल-गोल चन्द्रमा का आभास दिलाता, इंद्र धनुष समान दूज के चन्द्रमा सी तिरछी, कटीली भली भांति तराशी घनी भौहें, मृगनयनी के आकार के मनमोहक अपनी ओर आकर्षित करते नशीले अति सुंदर चक्षु , स्वच्छ निर्मल नीर सी नीली गहरी झील से चमकते सुनयन ।,,
ओस की पवित्र बूंदों से भीगे जलज व् गुलाब की नाजुक कोमल, मुलायम, दिलकश पंखुड़ियों से लरज़ते, मदहोश करते गुलाबी होंठ, समंदर के शुद्ध सीप के मोतियों समान धवल, चमचमाती दन्त पंक्तियाँ मानो मोतियों की पिरोई हुई माला हो ।,,
सुराही जैसी खूबसूरत लंबी कोमल सुन्दर ग्रीवा, जिसमे जल ग्रहण करते समय कंठ में उतरना दृष्टिगोचर हो, कंठ की शोभा में वृद्धि करती शुद्ध कुंदन की चौड़ी कंठी शरद पूर्णिमा में चंद्रमा सी शीतल आभायुक्त, कांतिमय, आकर्षक , चुम्बकीय सौरभ, चम्पई, अतुल्य गौरवर्ण मुखमंडल ।,,
ऐसी मधुर कल्पनाओं से प्रफुल्लित मेरा मन उस भौरे की भांति मंत्रमुग्ध हो जाता है जो कमल पुष्प का रसपान करते करते पूरी रात कमल पुष्प की पंखुड़ियों में कैद हो जाता है, और पुनः प्रातः काल कमल पुष्प खिलने के पश्चात फिर से रसपान में लीन हो जाता है ।,,
यही है मेरी कल्पना की अप्सरा.…...
विजय कनौजिया
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