|| दस्तक ||
रुंधे गले में इक दस्तक....
हौले से जब होती है....
ये कैसी दस्तक होती है....
उदास मन के कोने में,
सुखद अतीत की यादों में,
बोझिल हुई आंखों में,
अधूरे रह गये सपनों में,
रूठे हुये अपनों में,
गुजरी हुई बातों में,
दर्द भरे हालातों में,
रिश्तों के खलियानों में,
उलझे हुये जज्बातों में,
विरह की वेदना में,
अपनों की भेदना में,
चाह की परम शिखर में,
बिखराव की डगर में,
अति विश्वास की परंपरा में,
मिले हुये सबक में,
भूतकाल की यादों में,
वर्तमान की उलझनों में,
भविष्य की कल्पना में,
आह में,
चाह में,
जीवन की हर राह में......
''सिसकी" ही तो है, जो हर बार अलग-अलग रूप में दस्तक देती है........।।
स्वरचित----
विजय कनौजिया
9818884701