उलझने बहुत हैं छोटी सी जिंदगी में
कोई हँस कर बिता ता है कोई उलझता जाता है।
साधन सहूलियत के नर जितने बनाता है,
उतना ही उसका चैनों अमन खोता सा जाता है।
कितनी ही मुसीबतों को खुद हमने बुलाया है
समान तबाही का क्या ढेर बनाया है।
उस पर बेफिक्र होकर क्या ठाठ से बैठे हैं,
तन मन मे आग लेकर बड़ी शान में ऐंठे हैं ।
नफरत की आग में सब संसार जलाया है,
समान तबाही का क्या खूब बनाया है।