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उलझन

4 अप्रैल 2018

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उलझने बहुत हैं छोटी सी जिंदगी में कोई हँस कर बिता ता है कोई उलझता जाता है। साधन सहूलियत के नर जितने बनाता है, उतना ही उसका चैनों अमन खोता सा जाता है। कितनी ही मुसीबतों को खुद हमने बुलाया है समान तबाही का क्या ढेर बनाया है। उस पर बेफिक्र होकर क्या ठाठ से बैठे हैं, तन मन मे आग लेकर बड़ी शान में ऐंठे हैं । नफरत की आग में सब संसार जलाया है, समान तबाही का क्या खूब बनाया है।

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पिता,,,,

29 मार्च 2018
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मंज़िल दूर औऱ सफर बहुत है,छोटी सी ज़िन्दगी मैं फिकर बहुत है ,मार डालती ये दुनियां कब की हमें,लेकिन पापा के प्यार में असर बहुत है। चाहे कितने अलार्म लगा लो,सुबह उठने के लिएएक पापा की आवाज़ बहुत है।उस वक्त एक बाप की तमन्ना पूरी हो जाती है ,जब बेटी ससुराल से मायके हस्ते हुए आती है,ज़िन्दगी में दो

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उलझन

4 अप्रैल 2018
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उलझने बहुत हैं छोटी सी जिंदगी मेंकोई हँस कर बिता ता है कोई उलझता जाता है।साधन सहूलियत के नर जितने बनाता है,उतना ही उसका चैनों अमन खोता सा जाता है।कितनी ही मुसीबतों को खुद हमने बुलाया हैसमान तबाही का क्या ढेर बनाया है।उस पर बेफिक्र होकर क्या ठाठ से बैठे हैं,तन मन मे आग लेकर बड़ी शान में ऐंठे हैं ।नफ

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