मनोहर लाल जी आज सुबह से ही अच्छे मूड़ मे थे । मोबाइल पर अपने जमाने के गाने लगाए बैठे सुन रहे थे।
"मुझे नींद ना आये । मुझे चैन न आये।
कोई जाए कही ढूंढ के लाएं
ना जाने कहां दिल खो गया ।
ना जाने कहां दिल खो गया।
पति को आज अच्छे मूड़ मे देख कर शीला जी ने मनोहर लाल जी के हाथ मे थैला और उनका पर्स पकड़ाते हुए कहा,"जाइए ना बाजार से जाकर सब्जी भाजी ले आइए।कल मन्नु के दोस्त आ रहे है खाने पर।"
"ओह हो" मनोहर लाल जी जैसे खीज पड़े
"बड़ी मुश्किल से तो इतना बढ़िया गाना लगाया है ।आओ हम तुम मिलकर डा़स करे ।मै तुम्हारा आमिर खान और तुम मेरी माधुरी दीक्षित।" मनोहर लाल ना जाने का मन बनाते हुए बोले।एक तो दस बज चुके थे ।दूसरा थोड़ी देर मे सीकर दोपहरी हो जाएगी।। मनोहर लाल जी का मन थोड़ा रोमानी हो रहा था।तभी शीला जी ने उनकी रोमानियत निकालते हुए कहा,"बस बस बहुत हुआ आमिर खान और माधुरी दीक्षित बनना। चुपचाप थैला उठाओ और सब्जी लेने चले जाओ।घर मे एक आलू भी नहीं है बनाने को।शीला जी तेजी से झुंझला पड़ी।
पचपन साल के मनोहर लाल जी सदा से ही ऐसे ही हंसमुख स्वभाव के थे । शादी ब्याह मे चले जाते थे तो रौनक लगा देते थे। इसलिए उन्हें उनके दोस्त मनोहर की जगह मनोहारी लाल बुलाते थे।शीला जी उनकी इस बात से परेशान रहती थी।साली ,सालेज से मजाक करने पर आते तो घंटो बतियाते रहते।बस ये समझो उम्र पचपन की दिल बचपन का था उनका।
शीला जी का फरमान सुनकर मनोहर बाबू ने सोचा अब तो भाग ले बेटा नही तो श्रीमति जी वारंट काट दें गी। मनोहर लाल जी ने थैला उठाया और स्कूटर की चाबी ली और गुनगुनाते हुए निकल लिए"ना जाने कहां दिल खो गया।"
मनोहर लाल जी के घर से सुपर मार्केट दस किलोमीटर की दूरी पर थी ।जब वो मार्केट गये तब तक नाश्ता नही बना था इसलिए उन्होंने सोचा," क्यों ना पहले चांद के छोले भटूरे खाये जाए।ये सोचकर मनोहर लाल जी घुस गये चांद की हट्टी पर छोले भटूरे और जलेबी खाने के लिए। बहुत मशहूर था उनके इलाके मे चांद छोले भटूरे व जलेबी वाला।एक बार बैठे तो मनोहर लाल जी ने छक कर भटूरे खाये ।फिर सोचा हजम करने के लिए चलों एक प्लेट जलेबी ले लेते है। जलेबी खा कर श्रीमती जी के लिए भी पैक करा ली ।जब पैसे देने के लिए जेब मे हाथ डाला तो ये क्या बटुआ नादारद।अब तो बुरे फंसे मनोहर लाल जी।जाए तो जाए कहां। जिंदगी साली बेमानी लगने लगी।अब क्या कहेंगे दुकान वाले से सब्जी होती तो वापस कर देते लेकिन जो पेट मे जाकर विराजमान हो गया हो उसका क्या । बड़ी मुश्किल से हाथ मे ली हुई जलेबियां उन्होंने काउंटर पर रख दी और दुकान वाले से बोले ,"भाई मुझे लगता है मेरा पर्स कही खो गया है । दुकान मालिक उन्हें उपर से नीचे तक देखता हुआ बोला ,"मै अच्छी तरह से जानता हूं आप जैसे लोगों को ।चचा जरा उम्र का तो ख्याल किया करै ऐसे काम करते हुए।पैसे तो आप को चुकाने पड़ेंगे चाहे कैसे भी चुकाओ।
अंदर से एक पहलवान टाइप का आदमी बाहर आया ओर मनोहर लाल जी की बांह पकड़ कर किचेन मे ले गया।"लो ये बर्तन पड़े है साफ कर दो ।जरा भी हिले तो मै बाहर बैठा हूं।" बेचारे मरते क्या ना करते सारे बर्तन मांजने पड़े जब बाहर निकले तै हुलिया देखने लायक था मनोहर लाल जी का ।सारे कपड़ों पर तेल । सब्जी के दाग और राख की कालिख लगी थी । बर्तन धोने मे सारे कपड़े भीग गये थे।
मनोहर बाबू जैसे ही स्कूटर पर बैठे एक ऐड लगाई और दौड़ लगा दी ।पीछे मुड़कर भी नही देखा ।बेचारे जहां आते वक्त ये गाना गा रहे थे"ना जाने कहां दिल खो गया"
अब जाते वक्त बस यही दिमाग मे था"ना जाने कहां पर्स खो गया।"उन्हें पता था ये सुनकर श्रीमती जी का पारा सातवें आसमान पर हो जाएगा कि पर्स खो गया है । क्यों कि कल ही तनख्वाह मिली थी जो पर्स मे थी।एक मध्यम वर्गीय परिवार से पूछो पहली तारीख का क्या मतलब होता है।इसी उधेड़बुन मे मनोहर लाल जी घर पहुंचे । दरवाजे पर खड़ी श्री मती जी को देखकर पैर कांपने लगे । एक तो ढेर बर्तन साफ करके आ रहे थे दूसरा सामने श्रीमती जी खड़ी वारंट काटने की तैयारी मे लग रही थी।उनकी ये हालत देखकर शीला जी बोली,"ये क्या हाल बना रखा है वैसे आप थैला उठा कर क्या करने गये थे।"
"सब्जी लेने ही गया था शीला पर...."मनोहर लाल जी की जुबान अटक गयी।
"पर क्या।किस की सब्जी लाओगे। पर्स तो यही भूल गये थे।"शीला देवी ने आंखे तरेर कर कहा।
"हे.... पर्स घर पर ही रह गया । धत्त तेरे की । मैंने तो सोचा था पर्स कही खो गया। बड़ी मुश्किल से जान छुडा कर आया हूं।"मनोहर लाल जी खिसियाते हुए बोले।
"किस से ?"शीला जी ने पूछा।
"बर्तन धोने से।"
ये कहकर मनोहर लाल जी ने पर्स उठाकर जेब मे ठूंसा और स्कूटर की किक मारी और सवार हो गये ।मन मे ओर दिमाग मे यही गाना बज रहा था।
"ना जाने कहां पर्स खो गया हो ना जाने कहां दिल खो गया।"