सुरेश ने देखा कि मां को अब थोड़ी सी झपकी लगी है तो वो भी स्टूल को दीवार के सहारे करके थोड़ा सुस्ताने की कोशिश करने लगा। मां का बुजुर्ग शरीर था कल रात से ज्यादा तबीयत खराब थी इसलिए आईसीयू में भर्ती करना पड़ा था।पहले पांच दिन हो गये थे अस्पताल में भर्ती हुए । सुरेश चाहते हुए भी नही सो पा रहा था।उसने मोबाइल निकाला और उसमे वहटस अप मैसेज देखने लगा।आज बड़ी दीदी नीलम ने एक संदेश शेयर किया था।"अगर बेटियों को हक होता मां बाप रखने का तो वृद्धाश्रम ना होते।
सुरेश के होंठों पर एक महीन सी रेखा खींच गयी।
जब मां बीमार हुई थी उन्हें सुरेश ने अस्पताल मे दाखिल करवा दिया था।उसी दिन उसकी बेटी का एंट्रेंस टेस्ट था दूसरे शहर उसने अपनी चारों बहनों को फोन लगाया कि कोई एक दिन के लिए मां को सम्भाल लो । मुझे रिया के साथ उसका पेपर दिलाने जाना है पर कोई बहन राजी नही हुई आने के लिए।किसी ने कुछ बहाना लगा दिया किसी ने कुछ। आखिर सुरेश ने अपने साले को भेजा बेटी के साथ।
आज मां की इतनी तबीयत खराब है लेकिन उसकी बहनों मे से कोई पूछने नही आयी। क्या बात, जब बहू दूसरे घर से आयी हुई सास की सेवा कर सकती है तो दामाद को सास की सेवा करने मे क्यों इतनी उलझन आती है।
उसे याद था जब वह छोटा ही था तकरीबन उन्नीस साल का जब पिताजी का रोड़ एक्सीडेंट मे निधन हो गया था ।चारो बहनों की जिम्मेदारी उस पर आ गयी थी।दो बड़ी थी दो छोटी। बड़ी बहने तो ब्याह लायक थी।अपनी आगे पढने और अफसर बनने की इच्छा को मारते हुए सुरेश को बेमन से अपने पिताजी की किराने की दुकान पर बैठना पड़ा। दोनों बहनों की शादी खूब धूमधाम से की उसके बाद रिश्तेदार उस पर शादी का जोर डालने लगे। लेकिन उसने मां से साफ कह दिया,"मां मै शादी अभी नही करूंगा जब तक शीना और मीना का ब्याह नही हो जाता।"
मां कहती ,"बेटा वो अभी छोटी है इतने शादी लायक होगी तेरी उम्र हो जाएगी।"पर वो ना माना।मीना और शीना की शादी हो गयी।तब उसके पिताजी के दोस्त की लड़की का रिश्ता उसके लिए आया ।जब वह पैंतीस साल का हो चुका था।इसी दौरान अपनी मेहनत और लगन से उसने पिताजी की छोटी सी किराना दुकान को बडे से डिपार्टमेंटल स्टोर में बदल दिया था।जब ही वो बहनों के विवाह अच्छे घरों मे कर पाया। मिताली भी बहुत सुलझी हुई समझदार थी सुरेश की जैसे जान बसती थी मां मे तो वो भी अपने तनमन से उपर होकर सेवा करती थी। लेकिन बहनें आटर मां के कान भर जाती थी जिससे मां को मिताली के हर छोटे काम मे गलतियां लगती ।और जब वो सुनाती तो मिताली सुरेश पर आकर बिफरती ,"करों भी और जूते भी सिर पर खाओ।ये क्या तरीका है । दीदी लोग इतना सीखाती है मां जी को कभी थोड़े दिन करके तो देखे मां का । सुरेश मिताली को ही शांत रहने के लिए कहता।वह बेचारा हर तरफ से पिस रहा था । मां बहनों की तरफ बोलो तो साइड ले रहे होअपने परिवार की और मिताली के हक मे बोले तोएक तगमा मिलता"जोरू का गुलाम "
लेकिन हर बार ही उसने मां बहनों को ही इम्पोर्टेंस दी।यू तो इतने बड़े डिपार्टमेंटल स्टोर का मालिक था लेकिन पत्नी और बच्चों की ख्वाहिश कभी पूरी नही कर पाया ।सारा पैसा बहनों की शादी और उनके ससुराल वालों की फरमाइशों मे चला जाता था।कभी कोई कमी रह जाती तो मां अपना आपा खो देती थी,"मेरी बेटियों का करता रो रहा है जब नही देखा जब सारी सम्पत्ति का वारिस बना था।"
मां के ये वचन भी सुरेश सर आंखों पर रखता।वो सोच रहा था मां ने मेरा वारिस होना देखा मेरा त्याग नही देखा जो मै ,मेरा परिवार कर रहा था। लेकिन कहते है मां के चरणों मे स्वर्ग होता है।यही सोचकर सुरेश मां की सेवा मे लगा रहता।
सुरेश की तंद्रा तब भंग हुई जब मां के जोर जोर से सांस खींचकर लेने की आवाज आयी।वह आईसीयू मे बैठे आपातकालीन डाक्टर के पास भागा। लेकिन जब उसने आ के चैक किया तो मां का परलोक गमन हो चुका था। डाक्टर ने ये कह कर "शी इज नो मोर"उनका मुंह चादर से ढक दिया।वह बिलख कर रो पड़ा "मां"
लेकिन उसे ऐसे लगा जैसे मां दूर से कह रही थी"चुप हो जा बेटा । लड़के रोया नही करते।"
लेकिन सुरेश आज जी भरकर रो लेना चाहता था।वो भी आंसू वो निकालना चाहता था जो पिताजी के मरने पर भी उसकी मां ने ये कह कर थमवा दिए थे "लड़के रोया नही करते । लड़कियां रोती है।"
उसने मां की खबर पहले मिताली को दी फिर बहनो को और बाकि रिश्तेदार को।
शाम तक सभी पहुंच गये । अन्तिम संस्कार की तैयारी हो रही थी मिताली वही सब कर रही थी जो बड़ी बूढ़ी उसे करने को कह रही थी।तभी सुरेश की मौसी ने मिताली को कहाकि वह अपनी सास के मुंह मे तुलसीदल और गंगाजल डाल दे।जैसे ही उसने तुलसीदल डाल कर गंगाजल छिड़का तभी मीना सुरेश की छोटी बहन बोली,"अब डालने से क्या होगा ऐसी डालने वाली थी तो अस्पताल मे आखिरी समय मे डालती।तब तो फुर्सत नही होगी तुम्हें भाभी।"
मिताली ने सुरेश की तरफ देखा। सुरेश ने उसे चुप रहने को कहा।जब सब काम हो गये और अर्थी उठाने का समय हुआ तो सुरेश अर्थी को कंधा देते हुए रो पड़ा।वो मन ही मन मां को कह रहा था "अब रो लेने दे मां आज जी भर कर तेरा बेटा थक गया है जिम्मेदारियों का बोझ उठाता उठाता। लेकिन फिर भी भलाई नही मिली ।मेरे अपने ही मुझे नोच रहे है मां दूसरों से मै लड़ लेता मेरे अपनो से मै कैसे लड़ूं जिनके लिए मैने अपना सब कुछ कुर्बान कर दिया।"
सुरेश "राम नाम सत "करता जा रहा था और रो रहा था अपनों द्वारा दिए अपने ही घाव देखकर।