बहरे रमल मुसद्दस सालिम
फ़ाइलातुन, फ़ाइलातुन, फ़ाइलातुन
2122, 2122, 2122
आदमी हूँ मैं भला सा आदमी हूँ.
हाथ अपनों के छला सा आदमी हूँ ।
फूँक कर के छाछ पीता हूँ मगर क्यों
दूध से फिर भी जला सा आदमी हूँ ।
रात आहट सुन जरा सा कांप जाता
मै उजालों से डरा सा आदमी हूँ ।
इन दिनों हूँ मैं खजूर पर लटक रहा
आसमानो से गिरा सा आदमी हूँ ।
भाग कर दुनियां कहाँ तक आ गई है
मैं किनारे पर खड़ा सा आदमी हूँ ।
रोटियों ने नींद रातों की उड़ा दी
भूख मरता मैं दला सा आदमी हूँ ।
एक ठोकर मार तू भी माथ मेरे
पाँव तेरे मैं पड़ा सा आदमी हूँ।
------- मथुरा प्रसाद वर्मा 'प्रसाद''