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आदमी हूँ।

2 अक्टूबर 2021

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बहरे रमल मुसद्दस सालिम
फ़ाइलातुन, फ़ाइलातुन, फ़ाइलातुन

2122, 2122, 2122

आदमी हूँ मैं भला  सा आदमी हूँ.

हाथ अपनों के छला  सा  आदमी हूँ ।

फूँक कर  के छाछ  पीता  हूँ मगर क्यों
दूध से  फिर भी जला  सा आदमी हूँ ।

रात आहट  सुन जरा सा कांप  जाता

मै उजालों से डरा सा आदमी हूँ ।


इन दिनों हूँ मैं खजूर पर लटक रहा
आसमानो  से  गिरा सा आदमी हूँ  ।


भाग कर दुनियां कहाँ  तक आ गई है
मैं किनारे पर खड़ा  सा आदमी हूँ  ।

रोटियों  ने नींद रातों  की  उड़ा दी
भूख मरता  मैं  दला  सा आदमी  हूँ ।

एक ठोकर  मार तू भी  माथ  मेरे

पाँव तेरे  मैं पड़ा  सा आदमी हूँ।

       ------- मथुरा प्रसाद वर्मा 'प्रसाद''

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हर्ष महाजन 'हर्ष'

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बहुत ही उम्दा !!

13 अक्टूबर 2021

Shivansh Shukla

Shivansh Shukla

वाह वाह😮😮😮

2 अक्टूबर 2021

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मुक्तक

26 अक्टूबर 2016
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नजर में हो जब परदे: नजारा हो तो कैसे हो ।।कोई जब डूबना चाहे , किनारा हो तो कैसे हो।।किसी के हो न पाये तुम,पल भर भी मुहब्बत में, प्रसाद तुम ही बताओ कोई,तुम्हारा हो तो कैसे हो ।

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मुक्तक

26 अक्टूबर 2016
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1मुहब्बत एक फैशन है आजकल ज़माने में।नही दिल देखता कोई लगे है तन को सजाने में।।बहुत आसान है पहली नज़र में दिल दे देनापसीने छूट जाते हैं मगर रिश्ते निभाने में।2कभी करता है दिल मेरा कि मैं देवदास हो जाता ।।न पड़ता तेरे चक्कर में तो कुछ ख़ास हो जाता ।।अगर होती सिलेबस में तुम्हारे हुस्न के चर्चये मुमकिन है

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मुक्तक

26 अक्टूबर 2016
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माली ही खुद अपना चमन बेचने लगे है।वतन के रखवाले ही वतन बेचने लगे है ।।आज के इस दौर में मुझे ये मलाल हैकुछ कलमकार भी कलम बेचने लगे है।

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मुक्तक

26 अक्टूबर 2016
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मै ये दावा नहीं करता कि कभी लडखडाया नहीं।मगर ये इल्जाम गलत है कि मुझे चलना आया नहीं।अक्सर गिर जाता हूँ , किसीके सहारे नहीं चलता,मै आदमी हूँ मेरे दोस्त कोई चौपाया नहीं।।

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मुक्तक छोटी कलम की

2 जनवरी 2017
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मोल

29 सितम्बर 2021
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<p>कभी जनता, कभी सरकार बिकता है ।</p> <p>कभी कुर्सी , कभी दरबार बिकता है ।</p> <p>हर चीज है यह

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मुक्तक : जीत की सौगात

29 सितम्बर 2021
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<p>हर एक हार जीत की शुरुवात होती है !</p> <p>हार सुबह से पहले एक लम्बी रात होती है !</p> <p>जो

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मसीहा

29 सितम्बर 2021
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<p><br></p> <p><br> जब जब लोगो पर हुए अत्याचार /<br> लोगो ने लगाई गुहार /<br> सर पर कफन बांधे /आया म

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आदमी हूँ।

2 अक्टूबर 2021
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<p>बहरे रमल मुसद्दस सालिम<br> फ़ाइलातुन, फ़ाइलातुन, फ़ाइलातुन</p> <p>2122, 2122, 2122 <br> <br> आदम

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मुक्तक

2 अक्टूबर 2021
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<p><br> <br> </p> <p><br> तुम किरण थी मैं अँधेरा, हो सका कब मेल।<br> खेल कर हर बार

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