हर्ष महाजन 'हर्ष'
नाचीज़ हर्ष महाजन, इसी नाम से अपनी रचनाओं को कहता / लिखता हूँ | तखल्लुस “हर्ष”, मगर बहुत मर्तबा मेरे पाठकों का मन कि इसे तखल्लुस बदल डालूँ मगर मन साथ नहीं देता | मेरे बारे में जियादा कुछ नहीं, बस दिल्ली से ताल्लुक रखता हूँ | जन्म १५ अगस्त १९५५. तालीम दिल्ली से हुई | कामर्स में पोस्ट ग्रेजुएट (एम्.काम) हूँ | बचपन से लिखने /कहने का शौकीन रहा हूँ | दोस्तों को, उनके आग्रह पर पुराने गानों पर पैरोडी बनाकर सुनाना आम सी बात थी, जिसके चलते उन्होंने मुझे मेरी लेखनी से परिचय करवाया | आज ग़ज़ल-प्रेम मेरी रगों में समाहित है | अपनी काव्य रचनाओं में, कल्पना से दूर, जीवन का सच ही उगलता आया हूँ | ग़ज़ल कहते वक़्त मैंने सदा अपने अहसासों को ही सर्वोप्रिय माना है | ग़ज़ल-दोष ठीक करने हेतु, अगर अहसास का (जो मैं कहना चाहता हूँ) मतलब बदलता है तो भी, मैंने कभी समझौता नहीं किया | लेकिन मेरी सभी ग़ज़लें एक आम इंसान भी गुनगुना ज़रूर सकता है | मेरी रचनाओं की भाषा में मूलत: शालीनता, उदासी-पन, दर्द और आशिकाना मिजाज की झलक अक्सर दिखाई देती है | अगर जुबां की बात करूँ तो, मेरी ज़मीन कभी उर्दू की नही रही और न ही उर्दू की कोई पाठशाला में गया हूँ | मेरी बुनियादी तालीम हिन्दी और अंग्रेजी में ही हुई है और सच कहूँ तो मुझे उर्दू की कोई गहन/खास तमीज़-ओ-तहजीब नहीं है बस न जाने क्यूँ इस भाषा से मैं जूनून की हद तक मुहब्बत करता हूँ ..उर्दू का अदब आशना हूँ ।. घर में मेरे पिता की उर्दू जुबान से निकले शब्द और उनकी मिठास दिल को छू जाती थी, शायद यही वजह रही इस भाषा की ओर झुकाव का | हो सकता है मेरी इस कोशिश में मेरी रचनाओं में इसके तलफ़्फ़ुज़ में कुछ ग़लतियाँ भी नज़र आयें अपने पाठक गण से मेरी गुज़ारिश है कि उसे नज़र अन्दाज़ कर मुझे आगाह कर दें तो मै उनका आभारी रहूँगा | जब ये ब्लाग शुरू किया था उसके बाद बहुत कुछ बदल चुका है परिचय में कुछ नए
बोलती ग़ज़लें
दोस्तो इस नए ग़ज़ल संग्रह 'बोलती ग़ज़लें' के साथ आपके सामने मैं खुद मुख़ातिब हूँ । मेरी अन्य विद्याओं की रचनाएँ प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं हैं । इस किताब के मुतल्लक मैं ये कहना चाहूँगा की मैनें कभी शेर शौकिया तौर पर कभी नहीं कहे औऱ न ह
बोलती ग़ज़लें
दोस्तो इस नए ग़ज़ल संग्रह 'बोलती ग़ज़लें' के साथ आपके सामने मैं खुद मुख़ातिब हूँ । मेरी अन्य विद्याओं की रचनाएँ प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं हैं । इस किताब के मुतल्लक मैं ये कहना चाहूँगा की मैनें कभी शेर शौकिया तौर पर कभी नहीं कहे औऱ न ह
मेरी नज़्में
मेरी कलम से निकली सामाजिक तत्वों को उजागर करती कुछ नज़्में इस किताब में नज़र आने वाली हैं । जिनमें आजकल के दौर के रिश्तों को बाखूबी दर्शाया गया है । बजाय मैं खुद कुछ कहूँ इस से बेहतर यही की मेरी नज़्में औऱ कविताएं ही आप से बातें करें । सादर
मेरी नज़्में
मेरी कलम से निकली सामाजिक तत्वों को उजागर करती कुछ नज़्में इस किताब में नज़र आने वाली हैं । जिनमें आजकल के दौर के रिश्तों को बाखूबी दर्शाया गया है । बजाय मैं खुद कुछ कहूँ इस से बेहतर यही की मेरी नज़्में औऱ कविताएं ही आप से बातें करें । सादर