कभी जनता, कभी सरकार बिकता है ।
कभी कुर्सी , कभी दरबार बिकता है ।
हर चीज है यहाँ बिकाऊ दोस्तों ;
कोई छुप कर, कोई सरेबाजार बिकता है ।
कभी शहर-शहर ,कभी गाँव-गाँव बिकता है ।
कोई किलो-किलो ,कोई पाव-पाव बिकता है ।
हर चीज की अलग-अलग कीमत है मित्रों;
कोई कौड़ियों में,कोई करोडो के भाव बिकता है ।
कही खून, कहीं पसीना आज बिकता है ।
कहीं पत्थर कहीं सोना कहीं ताज बिकता है ।
सब कुछ तो लोग खरीदते है यारों ;
तभी तो माँ-बहनों का लाज बिकता है ।
कहीं खस्सू, कहीं खुजली, कहीं दाद बिकता है ।
कभी दवा , कभी दारू, कभी इलाज बिकता है ।
लोकतंत्र हो जाता है बीमार मेरे साथी ;
जब अखबार वालों का आवाज बिकता है ।
कोई ख़ुशी-ख़ुशी, कोई होकर मजबूर बिकता है ।
कोई अपनों के लिए,होकर दूर बिकता है ।
तकदीर के तराजू में तूल जाता है हर आदमी
आदमी है तो जिंदगी में जरुर बिकता है ।
मथुरा प्रसाद वर्मा 'प्रसाद'