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आज माई खातिर सबके प्रेम घट गइल

29 नवम्बर 2021

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पिछले वर्ष लॉकडाउन में लिखी मेरी एक छोटी सी कवि

आज माई खातिर सबके प्रेम घट गइल
आज घर में बखरा सब के बट गइल
माई- बाबूजी के साथे के रखी, ई सब में रात कट गइल
आज घर के साथे माई- बाबूजी में भी हिस्सा लग गइल

आज बिल्कुल शांत बा घर के हर दीवार 
कभी इहे घर में बसत रहल सबके प्यार
घर कर हर कोना से इहे पुकार आई
मत बाटा ई परिवार के इहे त माई-बाबूजी के चाही

बट गइल कटोरी- गिलास बस एक चम्मच शेष बा
उहे एक चम्मच नया झगड़ा खातिर विशेष बा

दू गज जमीन भी न केहू ज्यादा पाई
एक कटोरी अनाज भी आधा आधा बाटल जाइ
माई-बाबूजी के कुल जायदाद आधा आधा बाटल जाइ
एक दिन भी माई-बाबूजी के केहू न ज्यादा खिआई

आज घर के कोठरी भी खाली हो जाई
सुई से ले के धागा तक आज आधा आधा सब बटाई

माई-बाबूजी के कलेजा बटवारा देख के फटता
मत करा ऐ बेटा ई बटवारा कहा जचता

आज कथरी-पर्दा लगता सब बट जाइ
ई बटवारा के आखिरी आज रात आई
कल से सब अलग अलग खाना खाई
लगता अब आंगन में कल से दू चूल्हा जल जाई

बटवारा कर के त सब इतराई
कर सकी त बिना बटवारा एक साथ घर चला के दिखाई।
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