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अध्याय - 1

8 जून 2022

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अरे! क्या हुआ? आखिर क्या हुआ? अरे कल की आई बहुरिया को आखिर क्या हुआ?

चारो ओर चर्चा हो रही है आखिर हुआ क्या दयाराम की पतोह को। कोई कुछ कह रहा है कोई कुछ।

अभी एक रात ही बीती है और दयाराम की पतोह का यह हाल देख सुनकर सबकी हालत ख़राब है। 

हां तो चर्चा है दयाराम की छोटी पतोह प्रिया की। कॉलेज की पढ़ी लिखी, गोरी – चिट्टी, डील – डौल से अच्छी और तंदुरुस्त प्रिया की। जिनकी शादी दयाराम के छोटे बेटे प्रकाश से हुई थी एक दिन पहले।

प्रिया के पापा ने यथासंभव चीजें देकर अपने बेटी को विदा किया था। और कहा था बेटी रोना नहीं हम जल्द आएंगे तुमसे मिलने। और आज बेटी वह फर्ज़ न निभा सकी।

जिला मुख्यालय से 20किमी० दूर एक खूबसूरत गांव है कल्याणपुर। सुबह का समय है, धूप हल्का निकला आया है। घर में न्योतहरों की भीड़ है। इसके बावजूद घर में शांति है। हां कुछ महिलाएं खुसर – फुसर कर रही हैं। चाय चढ़ाई जा रही है। महिलाएं खेत से निपट आईं हैं। कोई खेत में हल्का होने जा रहा है। कोई लैट्रिन में। तो कोई मंजन ब्रश कर रहा है। कोई अभी मोबाइल ही चला रहा है लेटकर।

एक कमरे में मोबाइल चला रहे एक शख्स ने आवाज लगाई – अरे ले आओ चाय।

चाय बना रही किसी लड़की ने कहा – बस दो मिनट रुको लाती हूं।

थोड़ी देर बाद फिर शांति का मौहाल...

कुछ देर बाद फिर चहल – पहल बढ़ी...

अरे ले चलो भूषण की मां किसी डॉक्टर के यहां दिखा लाए।

अरे नहीं जी बस मामूली सा बुखार ही तो है?

अरे अगर मामूली सा बुखार है तो हरण – परण लिए लेटी क्यों है?

पता नहीं क्या हो गया है कुछ पता नहीं चल रहा है? अभी रात को तो ले गए थे अस्पताल। डॉक्टर ने कहा बस हल्का सा बुखार है और थोड़ा सा ब्लड प्रेशर बढ़ा है।

हां कहा तो था मगर अब क्या हुआ? ये तो सोचने वाली बात है न।

पता नहीं आजकल के औरतों को क्या हो गया है। जब हम आए थे ससुराल तो अगले दिन से चकिया चलाने लग गए थे। 20 – 20 किलो ज्वार – बाजरा, मक्का पीस डालते थे।

हां सही कह रही हो। तुम तो.. (बीच में टोकते हुए एक महिला बोली)

अरे का सही गलत का खेल चल रहा है दयाराम भैय्या सुना है बहुरिया बहुत तंग है? क्या हो गया है। देखो हम सब मुंह दिखाई करने आए हैं। (हां भैय्या हम सब प्लान बनाए की चलो बहुरिया को देख आते हैं जो 16 – 32 आना है दे आते हैं। आखिर घर की पतोह ही तो है। जैसे मेरी पतोह वैसे आपकी सब महिलाएं साथ में बोलने लगीं)।

चलो – चलो ले चलते हैं अस्पताल दयाराम ने कहा और कुछ देर बाद मोटसाइकिल पर बहु को अपनी पत्नी के साथ ले गए।


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रचनाएँ
नैहर का बरम
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'नैहर का बरम' उपन्यास कुछ अलग होने वाला है। हिन्दी में ऐसा उपन्यास अबतक किसी ने नहीं लिखा है। इसमें एक सच्चाई है जिसे कह पाना हर लेखक के जिगरे में नहीं है। इस उपन्यास में लड़कियों के त्रिया चरित्र को उजागर किया गया है। इसे पढ़कर आपके मन में विचार आयेगा कि ये लीक से हटकर कुछ अलग उपन्यास है। उपन्यासों की दुनिया में बहुत से बड़े - बड़े सूरमा हैं। और रहे हैं। हम उनके आगे चीटी मात्र हैं, मगर पूर्ण विश्वास के साथ कह रहे हैं कि यह उपन्यास औरों से अलग होगा। इस उपन्यास को लेकर विवाद होना तय है। यह उपन्यास हम कईं अध्यायों में यहां प्रकाशित करेंगे।

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