[ दुर्ग शहर में आतंकवादी घटना ] [ कहानी अंतिम क़िस्त ]
[ अब तक ----इतने में माइक से घोषणा होने लगी कि यहां 144 धारा लगा दी गई है । बंद कर दें ।]
बाद में शहर के लोगों को पता चला कि मोतीपारा में दो गुटों के बीच किसी विषय पर वाद विवाद हो गया है । इसी कारण से शायद एहतियातन दुर्ग शहर में 144 धारा लगाई गई ।
उधर थाने में भारी भीड़ है। दो विभिन्न समूह के सैकड़ों लोग थाना परिसर में एकत्रित हैं और वहां ज़िन्दाबाद मुर्दाबाद के नारे लग रहे हैं । लोगों की बातों से पता चला कि दो दोस्त शिखर और मेहताब हिदोस्तान और पाकिस्तान के संबंधों पर बातें करते करते आपस में किसी मुद्दे पर उलझ गए और लड़ने लगे । देखते ही देखते दोनों के दस से बीस समर्थक आमने सामने आ गए और मुहल्ले में बवाल मच गया । अंत में पोलिस को हस्तक्षेप करके दोनों समूहों के लोगों को थाने लाना पड़ा और समझाइस देनी पड़ी कि हमारे राष्ट्र के मुखिया पाकिस्तान के राष्ट्रपति के पारिवारिक कार्यक्रम में शामिल होने लाहौर गए हैं और हम लोग जिन्हें दोनों देश के रिश्तों के बारे में ठीक से मालूम नहीं हैं लड़ रहे हैं । हम लोग अपने मुहल्ले और शहर की मुद्दों चर्चा नहीं करते न ही लड़ते और बेजबरन ही अतंराष्ट्रीय मुद्दों पर आपस में उलझे रहते हैं । पोलिस वालों के समझाने से लोग समझ गए और पोलिस वालों की वाहवाही करते हुए अपने अपने घर की ओर जाने लगे । उधर मुहल्ले में भी दोनों गुटों के लोग अलग अलग बातें करने लगे थे । एक गुट के लोग कह रहे थे कि अगर मेहताब पर पोलिस सख़्ती करती है तो हम थाने को आग लगा देंगे । वहीं दूसरे गुट के लोग हर हर महादेव , जय भवानी और जय अंबे के नारे लगा रहे थे । लेकिन 10 मिनटों बाद उन्होंने देखा कि मेहताब और शिखर हाथ पकड़ कर वापस मुहल्ले में आ रहे हैं तो वे सारे झेंपकर अपने अपने घर को चले गए।
इस तरह सुबह से शाम हो गई। बड़े लोग इधर उधर तर्क करते या गप्प मारते विभिन्न दुकानों के बाहर पाटों पर बैठे रहे । बड़े बच्चे सड़कों पर क्रिकेट का खेल खेलते नज़र आए और महिलाएं हमेशा की तरह घर में बैठकर टीवी सिरियल्स का आनंद लेती रहीं ।
उधर पोलिसवाले, स्टेशन चौक के पास लामबंद होकर किसी को वहां से आने जाने नहीं दे रहे थे । ऐसा लग रहा था कि कोई बड़ी कार्रवाही हो रही थी या बड़ी कार्रवाही होने वाली थी । सैकड़ों पोलिस वाले रेल्वे स्टेशन के अंदर रायफ़ल के बदले डंडे लेकर इधर उधर दौड़ रहे थे । पत्रकारों द्वारा जब दुर्ग शहर के एसपी से पूछा गया कि आखिर क्या हो रहा है तो उन्होंने कहा कि यहां कोई आतंकवादी हमला नहीं हुआ है । न ही यहां आतंकवादी कहीं से आए हैं । वास्तव में रेल्वे स्टेशन के प्लेटफ़ार्म नबर 1 में लगभग 50 बंदर एकत्रित हो गए थे । जिसके कारण वहां उपस्थित लोग बुरी तरह घबड़ा गए थे और इधर उधर भागने लगे । वहां अफ़रा तफ़री का माहौल बन गया । ये सारे बंदर अपने एक साथी की लाश लेने या उन्हें श्रद्धान्जलि देने आए थे, जो किसी ट्रेन के नीचे आकर अपनी जान गवां बैठा था । यहां हुई अफ़रा तफ़री के कारण स्टेशन के बाहर यह संदेश चला गया कि स्टेशन में कोई आतंकवादी घटना हो गई है । ये अफ़वाह तेज़ी से ऐसी फ़ैली कि सारा शहर अस्त व्यस्त हो गया । लोग अपना काम धाम बंद करके यही पता लगाने में व्यस्त हो गए कि आखिर दुर्ग जैसे शान्त शहर में आतंकवादी क्यूं और कहां से आएं हैं ? और उनसे प्रशासन आखिर क्या कदम उठा रहा है ?
रात दस बजे प्रान्त के अन्य शहरों व गावों के लोग टीवी के सामने बैठे दुर्ग शहर के समाचार सुनने उत्सुक दिख रहे थे । न्यूज़ में आ रहा था कि दुर्ग के लोगों ने बंदरों के समूह के द्वारा मचाए गए धमा-चौकड़ी को आतंकवादी घटना मान बैठे। इसका मुख्य कारण अफ़वाह का फ़ैलना था । आतंकवादी वाली बात इतनी तेज़ी से शहर में फ़ैली कि हर किसी को सच लगने लगा था । जिसके कारण सारा दुर्ग शहर लगभग 12 घटों तक अस्त व्यस्त रहा । लगभग सारे दुकान बंद रहे । लेकिन जब लोगों को पता चला कि यहां कोई आतंकवादी घटना नहीं हुई है तब ये शहर सामान्य हुआ ।
रात्रि के 8 बजे रामू खोमचा वाला अपना सारा सामान समेटकर सिकोला बस्ती अपने घर की ओर चल पड़ा । आज वह बहुत ख़ुश था क्यूंकि आज उसकी बिक्री अन्य दिनों की तुलना में 50 प्रतिशत ज्यादा हुई थी । सारा रस्ता सूना था । पर रामू को इससे कोई मतलब नहीं था । वह तो अपने धुन पर चला जा रहा था और रस्ते भर वह यही एक गाना गाते रहा कि
“ ये देश है वीर जवानों का , अलबेलों का धनवानों का इस देश का यारों क्या कहना ,अफ़वाहों से बच के रहना”
[ समाप्त ]