[ कहानी __ दुर्ग शहर में आतंकवादी घटना ] 2री क़िस्त
नरेन्द्र ने कहना प्रारंभ किया कि महात्मा गांधी और नेहरू जी ने अच्छा नहीं किया कि धर्म के आधार पर इस देश के दो हिस्से कर दिए।
संजय – इसमें बुराई क्या है ? अगर पाकिस्तान नहीं बनता तो हिंदोस्तान में समस्याएं और ज्यादा होतींं : रोज़ रोज़ यहां तमाशा होते रहता । उन्होंने बिल्कुल ही सही किया है ।
नरेन्द्र—अगर भारत में ही वह भाग रहता और वहां के लोग गलत काम करते तो उन पर कानूनी कार्र्वाही होती ही ।
संजय – आज भी इस देश के अंदर अपराधियों पर क्या, और कैसी कार्रवाही होती है हम सब जानते हैं ?
नरेंद्र – अगर उनपर उचित कानूनी कार्रवाही नहीं होती तो यहां के लोग उन्हें सज़ा ज़रुर देते । ।
संजय == तुम्हारी जनता की रग रग से मैं वाफ़िक हूं । सबकी रीढ की हड्डियां बेहद कमज़ोर हैं । संकट आया नहीं कि संगठन के अधिकांश लोग अपने अपने घर में दुबक जाते हैं ।
नरेंद्र – लेकिन पाकिस्तान से छिपकरआये लोगों द्वारा हमरे देश के अंदर वारदात करने के बाद पकड़ाते हैं तो भी उन पर बरसों सही कार्रवाही नहीं होती । उन्हें तो तुरंत ही गोलियों से उड़ा देना चाहिए ।
संजय – मानव अधिकार नाम की भी कोई चीज़ होती है ।
नरेंद्र – ऐसे अपराधियों व दहशतगर्दों के लिए काहे का मानव अधिकार ।
इतने में रामू ने कहा कि इनमें मिर्च डालूं या नहीं ? संजय ने कहा कि मेरे चाट में ज़रा भी मिर्च नहीं होना चाहिए । वहीं नरेन्द्र ने कहा कि मेरे प्लेट में मिर्च तेज़ होनी चाहिए । तब रामू ने हां कहते हुए कहा कि क्या आतंकवादी पकड़ाए या नहीं ?
नरेन्द्र – उन्हें पकड़ना थोड़ी है उन्हें तो गोली से भूनना है ।
रामू—फिर उनके बीबी बच्चों का क्या होगा ?
नरेन्द्र – असामाजिक तत्वों को कहां बीबी बच्चों की फ़िक्र होती है । उन्हें तो सिर्फ़ पैसों से मतलब है । जो उन्हें पहले ही मिल गया होगा ।
रामू – उनसे जो मार काट करवाते हैं उन्हें क्या मिलता है ?
नरेन्द्र – उन्हें दूसरों के दुख में सुख मिलता है ।
रामू – हमारी सरकार उनके देश के विरुद्ध कोई कार्रवाही क्यूं नहीं करती ?
नरेन्द्र – हमारी सरकार बहुत डरपोक हैं । कायर हैं । और वे अक्सर सहारा लेती हैं गांधीवाद का ।
रामू—ये आतंकवादी लोग क्यूं ऐसे मरने मारने के लिए उतारू रहते हैं ? क्या उन्हें डर नहीं लगता ?
नरेन्द्र – वे लोग धर्म की किताबों का गलत विशलेषण करके शहीद होने आते हैं । धर्म के ठेकेदारों ने उन्हें अपना ग़ुलाम बना लिया है ।
इसके बाद नरेन्द्र और संजय चाट खाते खाते फिर आपसी बात चीत में उलझ गए।
नरेन्द्र ने कहा कि रामू ठीक ही कह रहा था कि आखिर हमारी सरकार बदमाश और जलकुकड़े पड़ोसी देश की सरकार को मज़ा क्यूं नहीं चखाती ?
संजय—क्या करें परमाणु बम उनके संसद पर डाल दें । ऐसे में बहुत सारे बेगुनाह मारे जाएंगे ।
नरेन्द्र -- अंतराष्ट्रीय अदालतों में अपनी बात क्यूं नहीं रखते ?
संजय – रखते तो ज़रूर होंगे । पर उनकी सुनता कौन है ? कोई समूह अगर किसी देश का साथ छोड़ देता है । तो दूसरा समूह उसे हाथों हाथ उठाकर उसे ताक़त प्रदान करता है । वहां भी बहुत पालिटिक्स है ।
इस बीच रामू की आवाज़ आयी कि 30 रुपिए हुए आप दोनों के नाश्ता के। इतना सुनते ही नरेन्द्र और संजय झेंप गए और तुरंत पैसा पटाकर वहां से चले गए।
इतने में माइक से घोषणा होने लगी कि यहां 144 धारा लगा दी गई है ।
[ क्रमश;]