सुबह हुई तो दूधवाले काका ने आवाज लगाई, मैं बाहर आई मुझे परेशान देखकर काका ने पूछा, का हुआ बिटिया, तबियत ठीक नाही है का?
फिर मैंने सारी रात वाली घटनाये काका को बता दी,
काका बोले, हम तो पहले दिन ही टोके थे कि इ घर अच्छा ना है, बिटिया तुम आज ही अपने पिता जी को बुला लो, इ घर में ना रहो।
तो काका इतनी जल्दी दूसरा कमरा कहां मिलेगा? मैं ने पूछा।
चिंता ना करो बिटिया, हमारा घर है ना, घर तो बड़ा है लेकिन कच्चा बना है, दो कमरे पक्के बने हैं, स्नानघर और शौचालय भी है, किराये से देने के लिए बनवाये रहे, चार पढ़ने वाले लडके रहते थे, उनके इम्तिहान हो गए तो खाली करके चले गये, अगर तुम्हें कौनो आपत्ति ना हो तो रह सकत हो, घर मा, हमार घरवाली , बहु और बेटा है, बिटिया का भी ब्याह हो गया है।
मैं तुरंत p.c.o. गई पापा को phone करके सब बता दिया, दोपहर तक मम्मी-पापा दोनों आ गये, थोड़ा सा समान था तो रिक्शे से पहुंच गया।
फिर काका ने मम्मी-पापा से उस पुराने कमरे के बारे में बात करना शुरू किया, उन्होंने कुछ ऐसा बताया कि वो सब सुनकर मुझे बहुत दु:ख हुआ।।
काका ने कहानी सुनानी शुरु की___
बाबू जी !बहुत समय पहले की बात है, हमारे दादा-परदादा के समय की , शायद अंग्रेजो के समय की,
जो उस घर के मकान-मालिक हैं ना तो जो उनके परदादा थे, हुआ यूं था कि उनके पहला बेटा हुआ, तो बहुत बड़ा जश्न हुआ, रूपए-पैसो की कोई कमी नहीं थी, उस समय के बहुत बड़े व्यापारियों में उनकी गिनती होती थीं, सारे शहर और रिश्तेदारों का रात्रिभोज था, किसी मशहूर नर्तकी को भी नाचने और गाने के लिए बुलाया गया था और सेठ जी को वो नर्तकी पसंद आ गई , उन्होंने उससे शादी की इच्छा जाहिर की, लेकिन नर्तकी किसी और को पसंद करती थी, उसने सेठ जी की बात नहीं मानी।
सेठ को बहुत गुस्सा आया और उसने नर्तकी से बदला लेने की सोची और उसने एक साज़िश रची, वो नर्तकी के पास गया और बोला मुझे माफ़ करना, मैंने तुम्हें गलत समझा, तुम जिसको चाहती हो , उसी से शादी करो, लेकिन ये नाचना-गाना छोड़ दो।
नर्तकी ने कहा, मुझे सब लोग वहां जानते हैं कि मैं क्या काम करती हूं, मुझे समाज स्वीकार नहीं करेगा, मेरा भी मन करता है कि मेरा घर हो, बच्चे हो , मैं भी एक साधारण गृहिणी वाला जीवन जीना चाहती हूं लेकिन चाहकर भी नहीं कर सकती।
सेठ जी ने कहा, बस इतनी सी बात है, तुम ऐसा कर सकती हो जहां मैं रहता हूं वहां कस्बे से दूर मेरा एक गोदाम हैं, तुम वहां रह सकती हो और तुम्हें वहां कोई पहचानेगा भी नहीं।।
फिर काका ने कहा कि ये वही जगह थी, जहां बिटिया रह रही थी, पहले वहां बड़ा सा बाड़ा था और बाड़े में एक फब्बारा लगा था, गोदाम के पीछे एक गली थी और वहां बरगद के पेड़ के नीचे कुआं था , नर्तकी ने सेठ की बात मान ली और अपने प्रेमी से शादी कर ली और वही रहने लगी।
उस जमाने में स्नानघर बाहर ही होते थे तो आप लोगों ने देखा होगा, एक पुराना सा स्नानघर बांड़े में है, वो उसी को इस्तेमाल करती थीं और पीछे की गली के कुंए से पानी भरती थी, इसलिए बिटिया को पहले दिन कुंए से पानी भरती हुई दिखी थी।
फिर एक दिन सेठ जी आए, कुछ लठैतो के साथ, सेठ जी कहा अब तो तुम मेरे सहारे हो और तुम्हें मेरी बात माननी होगी, तुम्हें मुझसे शादी करनी होगी, लेकिन वो नहीं मानी तो सेठ ने लठैतो से कहा कि इसके पति को मार दो, बाड़े में ही लठैतो ने लाठियों से उसके पति का सर फोड़ दिया , उसे बहुत ज्यादा चोट लगी और वो मर गया, नर्तकी ने खुद को कमरे में बंद कर लिया, कैरोसीन डाल कर आग लगा ली, जब तक सेठ के लठैतो ने उसे बचाया वो बुरी तरह झुलस चुकी थीं, थोड़ी-थोड़ी सांसें चल रहा थी।
लेकिन सेठ ने लठैतो से कहा कि इसे पीछे कुंए में फ़ेंक दो, रातों-रात कुंए की बाउन्ड्री तुड़वाकर उसे मिट्टी से भरकर समतल कर दिया गया, दूसरे दिन बरगद के पेड़ को कटवा कर उस कुएं के ऊपर पक्की रोड बनवा दी, फब्बारा तुड़वाकर उसके नीचे पति को दफना दिया, लठैतो को खूब रूपए देकर उनको किसी को कुछ भी ना बताने को कहा।
कहानी सुनने के बाद मम्मी-पापा शाम को घर लौट गए, मम्मी खाना लाई थीं, मैं वहीं खाना खाकर सो गई, दूसरे दिन संडे था , सोचा थोड़ा देर तक सोऊंगी।
लेकिन सुबह चार बजे मेरी आंख खुली, कुछ आवाज सुनाई दी, मैंने खिड़की से बाहर देखा , कोई औरत घूंघट में भैंस का दूध दूह रही थीं, मुझे फिर डर लगा, थोड़ा सा उजाला होते ही मैंने काका से कहा तो काका बोले....
हमार बहु होई, सुबेरे चार बजे दूध दोहती है, तभी तो हम छै बजे तक घर-घर जाकर दूध बांट पाएंगे।
मैं ने कहा, ठीक है काका
फिर दूसरे दिन सुबह चार बजे फिर मेरी आंख खुल गई, मैंने खिड़की से देखा कि भैंस के पास दो लोग हैं , मुझे लगा काका-काकी होंगे, भैंसो की साफ-सफाई कर रहे होंगे, मुझे भी काकी का चेहरा देखना था क्योंकि मै अभी तक उनसे नहीं मिली थी लेकिन जैसे ही उन्होंने मेरी तरफ अपना चेहरा घूमाया, औरत का वहीं गला हुआ चेहरा और लाल आंखें, और आदमी का वहीं खून से लथपथ चेहरा, बिना पुतलियों की आंखें।
अब क्यो, मैंने कमरा भी छोड़ दिया, ये मेरा पीछे करते यहां भी आ गये, मैंने सोचा अब घर ही चली जाती हूं , शायद पीछा छूटे।
तैयार हुई, काका को बताया मैं घर जा रही हूं, सुबह सात बजे की बस मिल गई और नौ बजे तक मैं घर पहुंच गई, खाना खाया, घर में , मै और मम्मी थे, भाई College गया था और पापा office गये थे, मम्मी को भी कहीं जाना था, उनकी कोई सहेली बीमार थी, उनसे मिलना था, मुझसे बोली कि तू भी चल,
मैंने मना कर दिया, मम्मी से कहा कि मुझे सोना है और आप बाहर से ताला लगाकर जाओ, ताकि मुझे कोई disturb ना करें, मम्मी बाहर से ताला लगा कर अपनी सहेली से मिलने चली गई, मैं सो गई।
जब उठी तो दोपहर के लगभग दो बजे होंगे, मुझे कुछ आवाज आई, आंखें खोली तो, मम्मी मेरी अलमारी में मेरे कपड़े लगा रही थी, उनके बाल खुले थे और उनकी पीठ मेरी तरफ थी।
मैंने उनसे पूछा?आप कब आई? उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया फिर मैंने उनसे time पूछा तो उन्होंने तब भी कुछ जवाब नहीं, पता नहीं कुछ आवाज आ रही थी जैसे उन्हें जुकाम हुआ हो, मैंने पूछा भी कि मम्मी ज़ुकाम हो गया क्या? फिर भी कोई जवाब नहीं , फिर मैंने पानी मांगा, तो वो बिना मेरी तरफ मुड़े पानी लेने चली गई, मैं खिड़की से बाहर झांकने लगी, मम्मी पानी लाई।
मैंने जैसे ही पानी हाथ में गिलास लिया, वो पानी नहीं खून था,
जैसे ही मैंने मम्मी से पूछना चाहा कि ये क्या हैं, उनका चेहरा देखकर मेरे मुंह से जोर की चीख निकली, वो मम्मी नहीं थी, फिर वही गला हुआ चेहरा और लाल आंखों वाली औरत और गायब हो गई।
थोड़ी देर में मम्मी आ गई, मैंने मम्मी से सब कुछ बता दिया, मम्मी भी परेशान हो गई।
शाम को पापा आए तो मैंने उनको भी बताया तो उन्हें लगा मैंने कोई सपना देखा होगा, इसलिए डर गई।
करीब रात के आठ बजे हमने dinner किया, थोड़ी देर बातें की, फिर सब सोने चले गए, मैं मम्मी के साथ सोई, क्योंकि मुझे डर लग रहा था, मम्मी थकी हुई थीं वो शायद नौ बजे तक सो गई, मुझे नींद नहीं आ रही थी तो मैं फणीश्वरनाथ रेणु का मैला आंचल लेकर पढ़ने बैठ गई।
लगभग दस बजे तक मुझे भी नींद आ गई, लगभग ढाई बजे रात में मुझे प्यास लगी, मैं उठी सुराही से गिलास में पानी भरा और पी गई, लेकिन देखा बिस्तर पर मम्मी नहीं थी, मुझे लगा bathroom गई होंगी, मैं बिस्तर पर जैसे ही लेटी तो देखा, कमरे के छत पर मम्मी छिपकली की तरह चिपकी हुई है, मैंने डरते-डरते आवाज दी तो वो पीठ के बल चिपक गई और उनकी आंखे एकदम लाल, मम्मी मेरी तरफ धीरे-धीरे आ रही थी, मैं जोर से चीखी और आंखें बंद कर ली, इतने में पापा और भाई भी आ गये, मेरी चीख सुनकर।
पापा मुझे कह रहे थे कि आंखें खोलो लेकिन मुझे आंखें खोलने में डर लग रहा था, मैंने जब आंखें खोली तो मम्मी ठीक थी और पूछ रही थी कि क्या हुआ?
मैंने सारी बात बताई तो, सबको फिर मेरी बात सपने जैसी लगी, अब तो मैं परेशान कि क्या करूं, किसे बताऊं, ऐसा कौन हैं जो मेरी बात समझेगा।
मैं बहुत परेशान थी, सुबह होते ही तैयार होकर मन्दिर चली गई, वहां एक बूढ़े से पण्डित जी दिखे, मुझे लगा शायद ये मेरी बातों को समझें, मैंने उनसे सारी बातें बताई ।
उन्होंने कहा बेटा ये सब सही हो सकता है, उन्होंने कहा अभी के लिए तुम ये रूद्राक्ष की माला पहन लो, उन्होंने कुछ मंत्र पढ़ें और गंगाजल में माला धुलकर मुझे पहना दी, मैं घर आ गई।
दिन ऐसे ही बीत गया , रात को मैंने मम्मी को अपने पास नहीं सुलाया लेकिन रात में फिर एक अजीब घटना हुई, मेरी कपड़ों की अलमारी के अन्दर से बहुत जोर से ठक-ठक की आवाज आ रही थी, मुझे लगा कोई चूहा हैं, मैंने जैसे ही अलमारी खोली किसी का हाथ आया मेरे गले तक लेकिन मेरा गला नहीं पकड़ा, शायद रूद्राक्ष की माला की वजह से, लेकिन कमरे की छत पर वही घूंघट वाली औरत फिर आ गई, सर्र से नीचे आकर उसने अपनी शक्तियों द्वारा मुझे पटकना शुरू कर दिया, बहुत ऊपर तक ले जाती और उछाल देती, शोर सुनकर मम्मी-पापा और भाई भी आ गये, लेकिन वो रूक नहीं रही थी, उसने मुझे लहुलुहान कर दिया, शायद रूद्राक्ष की माला पहनने से वो नाराज़ हो गई थीं, तभी भाई दौड़कर आया और गंगाजल का पूरा कलश मुझ पर उड़ेल दिया और वो आत्मा अचानक गायब हो गई।
अब पापा को भी विश्वास हो गया था, तो मैंने पापा को पण्डित के बारे में बताया, सुबह पापा मंदिर गये और पण्डित को सारी बात बताई, पंडित ने कहा, मैं शाम को आपके घर आता हूं, मैं आत्मा से बात करता हूं कि वो क्या चाहती हैं, बस मैं पूजा की सामग्री लिख देता हूं तो आप मंगा लीजिए।
शाम को पूजा की तैयारी हुई पंडित जी ने पूछा शुरू की, आत्मा प्रकट हुई वो भी मम्मी के शरीर में और पंडित ने बातें पूछनी शुरू की।
उसने कहा कि मैं उस सेठ से बदला लेना चाहती थीं लेकिन सेठ के चचेरे भाई ने ही उसकी जायदाद के लालच में हत्या कर दी, तब से हमारी आत्माये उसी गोदाम में भटक रही हैं , हम इस रूप में नहीं रहना चाहते, मुझे और मेरे पति को अब मुक्ति चाहिए, ये लड़की जब वहां रहने गई तो हमें लगा कि इसके सहारे हम मुक्त हो सकते हैं लेकिन ये भी हमें छोड़कर आ गई तो इसके पीछे-पीछे हम भी आ गये, बस हमारा अंतिम संस्कार करके हमारी आत्माओं को मुक्ति दिला दीजिए, हम कभी किसी को परेशान नहीं करेंगे।
और वो गायब हो गई, पंडित जी ने कहा मैं जिले के police station बात करता हूं मेरा भतीजा वहां काम करता है, वो गोदाम से दोनों के अस्थि-पंजर निकलवा देगा और मैं विधिवत उनका अंतिम संस्कार करवा दूंगा और यही किया गया, उस दिन के बाद वो आत्माये मुझे नहीं दिखी।
समाप्त.....
सरोज वर्मा.....🙏🙏😊😊