बात उस समय की है बी.एड. करने के बाद मेरा बी.टी.सी. मतलब (besic training certificate), में सेलेक्शन हो गया, बस छै महीने की ट्रेनिंग के बाद तुरंत किसी भी गवर्नमेंट प्राइमरी स्कूल में ज्वानिंग हो जाती, मैं बहुत खुश हुई कि चलो अब नौकरी तो पक्की हो गई लेकिन एक समस्या आ गई कि जहां मैं रहती थी उस जगह ट्रेनिंग सेंटर नहीं था, वो था उस जगह के जिले में।
अब इस उधेड़बुन में थी कि जाऊं के ना जाऊं, फिर पापा बोले कोई बात नहीं बेटा, छै महीने की ही तो बात है , मेरे जान-पहचान के है, एक व्यक्ति उनसे बात करके कहीं ना कहीं कोई ना कोई कमरा मिल ही जाएगा और फिर पैंतीस किलोमीटर का ही तो रास्ता है तुम हर हफ्ते आ-जा सकती हो।
जब पापा ने समझाया तो मैं भी उनकी बात मान गई और बोरिया-बिस्तर बांध कर निकल पड़ी, पापा और छोटा भाई छोड़ने गए, पापा ने कमरे की बात फोन पर ही कर ली थी , तो उन्होंने घर साफ करवा दिया था, वो उस घर के मालिक के मुनीम थे, मकान-मालिक दिल्ली में रहते थे।
रोडसाइड का घर था, बाहर बड़ा सा लोहे का गेट था, बगल में दीवार पर उसका निर्माण समय लिखा था, लेकिन मैंने ध्यान नहीं दिया, गेट खोलते ही बड़ा सा बाड़ा था और उसके बीचों-बीच एक हैंडपंप लगा था, हम और अंदर आए , अंकल ने ताला खोला, आगे बराम्दा और पीछे दो कमरे, एक कमरा सामने और एक बगल में, अंकल ने मुझे सामने वाला कमरा ना दे कर बगल वाला दिया क्योंकि उसमें एक किचन और एक अटैच्ड बाथरुम था और हां एक पुराना बाथरुम तो बाड़े में ही था, मुझे कुछ अजीब सा लगा लेकिन वहां रहना तो मेरी मज़बूरी थी, उस समय तो मैंने वहां रहने के लिए हां कर दी क्योंकि और कोई ठिकाना भी ना था, अंकल बोले बेटा ये लो चाबियां, मुझे दिल्ली जाना है, मालिक ने संदेशा भिजवाया हैं, कम से कम पन्द्रह दिन लग जायेंगे वापस आने में, अच्छा अब मैं चलता हूं, और अंकल चले गए।
समान रखकर हमने खाना खाया जो मम्मी ने आते वक्त बांध दिया था और खाना खाकर हम बाजार गये कुछ जरूरी समान लाने फिर पापा और भाई चले गए।
मैं अकेली कमरे में थी और शाम हो गई थी फिर सोचा सो जाते हैं, खाना देर से खाया था तो कुछ ज्यादा खाने का मन ना था तो मैंने बिस्तर बिछाया और लेट गई, मन तो कर था कि मम्मी-पापा से बात करूं लेकिन उस समय आजकल की तरह फोन नहीं होते थे, ले दे के लैंडलाइन होते थे, वो भी गिने चुने, बस मुझे कब नींद आ गई कुछ पता नहीं चला।
लेकिन आधी रात के वक्त मुझे कुछ पायल के छनकने की आवाज आई, मैंने लाइट बंद नहीं की थी, मैंने अपनी हैंडवॉच देखी तो रात के लगभग ढाई बज रहे थे, मैंने सोचा कौन है तो मेरे कमरे के पीछे तरफ से आवाज़ आ रही थी, मैंने हिम्मत करके थोड़ी सी खिड़की खोली तो देखा पीछे एक गली है और एक घना सा बरगद पेड़ हैं और उसके नीचे कोई कुंआ था और एक औरत लम्बा सा घूंघट किए हुए कुंए से पानी भर रही है।
मैंने सोचा इतनी रात गये, कौन पानी भरता है? फिर मैंने सोचा मुझे क्या लेना-देना? और मैं सो गई, आंख खुली तो चीड़ियां चहचहा रही थी, मैंने घड़ी देखी तो सुबह के साढ़े पांच बज रहे थे, उजाला हो आया था फिर अचानक मुझे रात वाली घटना याद आ गई, मैंने खिड़की खोली, मेरे तो होश ही उड़ गये, वहां केवल गली थी ना तो बरगद का पेड़ था और ना कुआं, मैं परेशान फिर सोचा शायद सपना होगा, लेकिन सपना कैसे?
सुबह-सुबह पानी बाथरुम में सात से नौ आता था और शाम को आता ही नहीं था इसलिए हैंडपंप से पानी लाना पड़ता था , मै बाहर बाड़े में पानी लेने आई, हैंडपंप चलाकर पानी खींच ही रही थी कि गेट के बाहर आवाज आई, शायद पड़ोस में दूधवाला दूध देने आया था, दूध की जरूरत मुझे भी थी तो मैंने गेट खोला, देखा तो एक बूढ़ा सा व्यक्ति आवाज लगा रहा था, मैंने उन्हें देखकर आवाज लगाई, अरे काका जरा सुनो, मुझे भी आधा किलो दूध मिल जाएगा क्या?
हां, काहे नहीं बिटिया, उन्होंने कहा।।
मैं बर्तन लेकर आती हूं, मैने उनसे कहा।।
मैं बर्तन लेकर लौटीं तो उन्होंने पूछा___
बिटिया इहां तुम्हे रहे का कौन बताया है, कौन्हो और भी तुम्हरे संग है कि अकेली हो।
मास्टरनी की पढ़ाई करने आए हैं काका और अकेले ही रह रहे हैं, मैंने कहा।
और काका थोड़े परेशान हुए, कहा कल आते हैं बिटिया, अपना ख्याल रखना।
मुझे थोड़ा अजीब लगा कि अपना ख्याल रखना।
मेरे पास समय नहीं था, तैयार हुई , चार-पांच परांठे बनाये, खाए और चलीं गईं training centre, रास्ते में p.c.o. दिखा तो मैंने घर पर बात कर ली , एक लड़की से अच्छी जान-पहचान भी हो गई training centre में, लौटते समय बाजार से कुछ सब्जियां खरीदी और आकर खाना बनाया और पढ़ने बैठ गई।
रात के दस बज गए, किताबें बंद करके मैं सो गई।।
अचानक मुझे किसी के हंसने की आवाज़ आई, घड़ी देखी तो फिर रात के लगभग ढाई बज रहे थे लेकिन इस बार आवाजें कहीं और से आ रही थी, मैंने दरवाजा खोला तो बगल वाले कमरे से आवाजें आ रही थी और कमरे की लाइट जल रही थी, मैंने खिड़की से देखा तो कमरा एकदम नया, रोशनी से जगमगा रहा था और घूंघट में वही कुंए वाली औरत थी और उसके सिर्फ़ हाथ और पैर दिखाई दे रहे थे जो कि बहुत सुंदर थे, हाथों की कलाइयों में लाल -लाल चूड़ियां और पैरों में घुंघरू वाली पायल और एक आदमी बैठा था बगल में जिसका चेहरा नहीं दिख रहा था।
उस औरत ने खिड़की की तरफ मुंह फेरा और मुझे वहां देखकर उसने अपना घूंघट हटाया तो मैं देख कर डर गई इतना भयानक गला हुआ चेहरा, लाल डरावनी आंखें मैं बाहर की तरफ भागी लेकिन मुझे दरवाजा ही नहीं दिखा, सब बदला -बदला लग रहा था, हैंडपंप गायब था, उसकी जगह एक बहुत बड़ा फब्बारा था, मैंने उसके पानी से मुंह धोने की कोशिश की, लेकिन पानी का रंग एकदम लाल खून की तरह और मैं बेहोश हो गई।
सुबह दूधवाले काका की आवाज से जगी, मैं वहीं बाड़े में ही रात-भर पड़ी रही मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था, दूधवाले काका ने मुझे परेशान देखकर पूछा भी कि का हुआ बिटिया?
लेकिन उस समय तक मुझे खुद नहीं पता था कि कल रात जो हुआ वो सपना था या हकीकत।
जैसे-तैसे तैयार हुई, चाय बनाई , सब्जी-रोटी बनाई और training centre चलीं गईं, वहां दिनभर बिताने के बाद शाम को जानकी जिससे मेरी अच्छी जान-पहचान हो गई थी, मेंरी सहपाठी, उसने कहा कि उसके मकान-मालिक परिवार सहित एक दिन के लिए शादी में गये है, बहुत बड़ा घर है, कहो तो हवेली है , मुझे अकेले डर लगेगा, आज रात मैं तेरे साथ रूक जाऊँ।
मैं तो यही चाहती थी, उसने मेरे मन की बात कह दी, उसने कहा कि अपने कपड़े साथ लेकर आई है और मेरे कमरे से ही सुबह तैयार होकर चली जाएगी, मैंने कहा ठीक है।
हम लोग सब्जियां लेकर कमरे पहुंचे, हाथ-पैर धोकर कपड़े बदलकर खाना बनाने में लग गए फिर खाना खाकर बर्तन धोने के लिए handpump से पानी भरा और बर्तन धोने के बाद दोनों बाल्टियां भरकर रख ली, थोड़ी देर बात करने के बाद थोड़ी पढ़ाई की , जानकी ने कहा तू खटिया पे लेट जा, मैं नीचे चटाई पे लेट जाती हूं, बस एक तकिया और ओढ़ने के लिए एक चादर दे दे और सोते-सोते ग्यारह बज गए।
फिर रात को ढाई बजे एक अजीब घटना हुई, मुझे लगा जानकी बाथरूम गई है और फिर पानी पीने किचन में लेकिन वो किचन से बाहर नहीं निकली , मैं नींद में थी बहुत देर हो गई तो मैंने आवाज़ दी, जानकी........जानकी...
तो उसने कहा, सोने दे ना , अभी सुबह नहीं हुई है
मैंने खटिया से नीचे देखा तो वो सो रही थीं, लेकिन मेरी नींद उड़ गई, अब तो मुझे उस जगह बिल्कुल नहीं रहना था।
जैसे-तैसे सुबह हुई , जानकी और मैं तैयार होकर training centre चले आए, लेकिन मैंने जानकी से ना कुछ पूछा और ना कुछ बताया।
दिनभर बीतने के बाद फिर शाम आई , आज रात तो मुझे अकेले ही रहना था, कमरे पहुंची, अनमने मन से खाना बनाया और खाकर पढ़ने बैठी लेकिन पढ़ने में मन कहां लग रहा था, बैठे-बैठे किसी भी आवाज से चौंक जाती, बस मैंने बिस्तर लगाया और लेट गई फिर ऐसे ही सोचते-सोचते पता नहीं कब नींद आ गई।
फिर लगभग ढाई बजे कुछ आहट हुई, मुझे कमरे से बाहर नहीं आना चाहिए था लेकिन पता नहीं मैं खुद ही बाहर की ओर खिंची जा रही थी, मैंने कमरे का दरवाज़ा खोला और बाहर आईं तो देखा बगल वाले कमरे की आज भी लाइट जल रही है और खिड़की खुली है बहुत ही रोशनी है कमरे में, घूंघट में वही औरत थी और बगल में वही व्यक्ति पीठ किए हुए बैठा था लेकिन इस बार कुछ ऐसा हुआ कि बैठे ही बैठे उस व्यक्ति की गर्दन मेरी तरफ मुड़ी, इतना भयानक चेहरा था उसका, माथे से खून ही खून बह रहा था, चेहरा पूरा कटा हुआ था, चेहरे पे बहुत घाव थे और उसकी आंखों में पुतलियां ही नहीं थी, बैठे ही बैठे उसने अपना हाथ मेरी तरफ़ बढ़ाया , हाथ बस लम्बा होकर धीरे-धीरे मेरी तरफ बढ़ रहा था , बस मैंने एक ही पल में खिड़की बंद कर ji दी, कमरे में जाकर , दरवाजा बंद करके अंदर बैठ गई, डर के मारे माथे से पसीना बह रहा था, पानी पीकर मैं बिस्तर पर लेट गई लेकिन नींद नहीं आई, मैं बस सुबह होने का इंतजार कर रही थी, अगले दिन शनिवार था तो मैंने घर जाने की सोची।
क्रमशः....
सरोज वर्मा....