एक ऐसे भाई की कहानी जो अपनी बहन को वेश्यालय से छुड़ाने का प्रयास करता है और उसमें सफल भी होता है।।
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बहुत बढ़िया लेखन।
बढिया कथानक है। बस जरूरत का ध्यान रखें। उसे जुरुरत ना बनाये 😊😊😊😊🙏🏻🌷🙏🏻
बहुत बढ़िया कथानक,सुन्दर चित्रण पात्रों का।सुन्दर कहानी
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<div align="left"><p dir="ltr"><b>वेश्या</b><b> या</b><b> </b><b>तवायफ़</b> एक ऐसा शब्द है जिसे सुनने
<div align="left"><p dir="ltr">कुछ वक्त के बाद केशर बाई की पालकी नवाबसाहब की हवेली के सामने जाकर रूक
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<div align="left"><p dir="ltr">इन्द्रलेखा भीतर जाकर भगवान के मंदिर के सामने खड़ी होकर फूट फूटकर रो पड़
<div align="left"><p dir="ltr">इन्द्रलेखा और कुशमा इस बात से बेख़बर थी कि उनके पीछे जमींदार गजेन्द्र
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<div align="left"><p dir="ltr">ताँगा रूका, दोनों ताँगेँ से उतरीं फिर केशर ने ताँगेवाले को पैसे दिए औ
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<div align="left"><p dir="ltr">मंगल को परेशान सा देखकर रामजस बोला....<br> मंगल भइया! इतना परेशान क्य
<div align="left"><p dir="ltr">मत रो मेरे भाई! अब से तू खुद को अकेला मत समझ,मैं हूँ ना ! तेरे दुःख ब
<div align="left"><p dir="ltr">फिर कुछ देर सोचने के बाद केशर बोली....<br> क्या कहा तुमने? तुम मंगल भ
<div align="left"><p dir="ltr">कोठे के बाहर मंगल ,रामजस का इन्तज़ार ही कर रहा था,जब रामजस मंगल के पास
<div align="left"><p dir="ltr">बहु-बेग़म झरोखे पर अपने बीते हुए कल को याद करने लगी,उसके अब्बाहुजूर नि
<div align="left"><p dir="ltr">नवाबसाहब के जाते ही गुलनार ने केशर से पूछा...<br> क्या हुआ केशर! नवाब
<div align="left"><p dir="ltr">गुलनार और नवाबसाहब को ये मालूम नहीं चला कि उन दोनों की बातें परदे के
<div align="left"><p dir="ltr">दोनों का खाना बस खत्म ही हो चुका था कि तभी बुर्के में सल्तनत उनके पास
<div align="left"><p dir="ltr">घायल लठैत की बात सुनकर गुलनार बोली...<br> जाने दीजिए उन्हें,जी लेने द
<div align="left"><p dir="ltr">सबको दवाखाने से लौटते-लौटते दोपहर हो चुकी थी,सबके मन में हलचल भी मची
<div align="left"><p dir="ltr">माई की कहानी सुनकर सबका मन द्रवित हो आया और तब रामजस बोला....<br> तो
<div align="left"><p dir="ltr">जब रामजस चुप हो गया तो कुशमा ने उससे कहा...<br> तुम चुप क्यों हो गए?<