मैंने भी कुछ लिखा है,,,
तुम सबसे ही सीखा है...
तुम्हारे मशविरे की,,,
मुझको दरकार है...
तुम सबका लिखा,,,
असरदार है...
कुछ नए ख्वाबों को,,,
आंखों में बोया है...
गिरते उठते अभी तो,,,
मैंने चलना सीखा है...
मैंने भी कुछ लिखा है,,,
तुम सबसे ही सीखा है...
कर जाऊं जो खता,,,
तो बताना मुझे वहां...
जानूंगा जब वजह,,,
तो सीखूंगा कुछ नया...
मैं हूं एक अदना सा इंसा,,,
मुझको कहां है कुछ पता...
कर देना तुम सब खुदा से,,,
मेरे वास्ते दिल से बस दुआ...
मैंने भी कुछ लिखा है,,,
तुम सबसे ही सीखा है...
ताज मोहम्मद
लखनऊ