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आखिर कौन हूँ मै ? कोई बताओ

8 मार्च 2018

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कभी एक कवि ,

तो कभी सिर्फ एक गुमनाम छवि हूँ मै |

कभी एक अँधेरी रात ,

तो कभी एक भयंकर बरसात हूँ मैं |

कभी एक प्यारी मुस्कुराती शायरी ,

तो कभी एक गुमनाम डायरी हूँ मैं |

आखिर कौन हूँ मैं ?


कभी एक विद्वान ,

तो कभी सिर्फ एक कायावान हूँ मैं |

कभी एक कलाकार ,

तो कभी एक छाया बेकार हूँ मैं |

कभी उच्छल नदी सी पावन ,

तो कभी बरसात की सुनहरी सावन हूँ मैं |

आखिर कौन हूँ मैं ?


कभी एक अजीत पावक ,

तो कभी बब्बर शेरो की नन्ही शावक हूँ मैं |

कभी गुलामी की बेड़ियों मे जकड़ी गुलाम ,

तो कभी आज़ादी की धूल मे सनी इन्सान हूँ मैं |

कभी लालची मन मे आशक्त ,

तो कभी अपने प्यारे प्रभु की प्रिय भक्त हूँ मैं |

आखिर कौन हूँ मैं ?


कभी समुन्द्र की गहराइयों मे गोता लगाती हुई गोताखोर ,

तो कभी पावन धरती पर उगती हुई भोर हूँ मैं |

कभी ब्यस्त ज़िंदगी मे होने वाली शोर ,

तो कभी निराले वन मे नाचने वाली मोर हूँ मैं |
कभी दाना उठाती हुई नन्ही चींटी ,

तो कभी शोर मचाती ट्रैन की सीटी हूँ मैं |


आखिर कौन हूँ मैं ?

कभी किसानो के खेतो की अमृत बारिश ,

तो कभी अपने प्यारे माँ बाप की प्यारी वारिश हूँ मैं |

कभी बारिश की नन्ही फुहार ,

तो कभी लोहे को ढालती लुहार हूँ मैं |

कभी दहेज़ से ,

तो कभी कलेश से जूझते हुए जीने वाली अभागिन हूँ मैं |


आखिर कौन हूँ मैं ?

कभी अपने प्यारे बच्चो को लोरी सुनाती माँ ,

तो कभी अपने सास के ताने सुनती एक बहू हूँ मैं |

कभी नई नवेली चौखट पर परदे मे लिपटी बहू ,

तो कभी दहेज़ से प्रताड़ित जिस्म से बहता लहू हूँ मैं |

कभी मायके की लाड़ली ,

तो कभी गोरी और सावली हूँ मैं|

आखिर कौन हूँ मैं ?


नोट : यह कविता मे अपने माँ को समर्पित करता हूँ क्यूंकि ये उन्ही के जीवन को प्रदर्शित कर रही है |

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रचनाएँ
professorsab
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