कभी एक कवि ,
तो कभी सिर्फ एक गुमनाम छवि हूँ मै |
कभी एक अँधेरी रात ,
तो कभी एक भयंकर बरसात हूँ मैं |
कभी एक प्यारी मुस्कुराती शायरी ,
तो कभी एक गुमनाम डायरी हूँ मैं |
आखिर कौन हूँ मैं ?
कभी एक विद्वान ,
तो कभी सिर्फ एक कायावान हूँ मैं |
कभी एक कलाकार ,
तो कभी एक छाया बेकार हूँ मैं |
कभी उच्छल नदी सी पावन ,
तो कभी बरसात की सुनहरी सावन हूँ मैं |
आखिर कौन हूँ मैं ?
कभी एक अजीत पावक ,
तो कभी बब्बर शेरो की नन्ही शावक हूँ मैं |
कभी गुलामी की बेड़ियों मे जकड़ी गुलाम ,
तो कभी आज़ादी की धूल मे सनी इन्सान हूँ मैं |
कभी लालची मन मे आशक्त ,
तो कभी अपने प्यारे प्रभु की प्रिय भक्त हूँ मैं |
आखिर कौन हूँ मैं ?
कभी समुन्द्र की गहराइयों मे गोता लगाती हुई गोताखोर ,
तो कभी पावन धरती पर उगती हुई भोर हूँ मैं |
कभी ब्यस्त ज़िंदगी मे होने वाली शोर ,
तो कभी निराले वन मे नाचने वाली मोर हूँ मैं |
कभी दाना उठाती हुई नन्ही चींटी ,
तो कभी शोर मचाती ट्रैन की सीटी हूँ मैं |
आखिर कौन हूँ मैं ?
कभी किसानो के खेतो की अमृत बारिश ,
तो कभी अपने प्यारे माँ बाप की प्यारी वारिश हूँ मैं |
कभी बारिश की नन्ही फुहार ,
तो कभी लोहे को ढालती लुहार हूँ मैं |
कभी दहेज़ से ,
तो कभी कलेश से जूझते हुए जीने वाली अभागिन हूँ मैं |
आखिर कौन हूँ मैं ?
कभी अपने प्यारे बच्चो को लोरी सुनाती माँ ,
तो कभी अपने सास के ताने सुनती एक बहू हूँ मैं |
कभी नई नवेली चौखट पर परदे मे लिपटी बहू ,
तो कभी दहेज़ से प्रताड़ित जिस्म से बहता लहू हूँ मैं |
कभी मायके की लाड़ली ,
तो कभी गोरी और सावली हूँ मैं|
आखिर कौन हूँ मैं ?
नोट : यह कविता मे अपने माँ को समर्पित करता हूँ क्यूंकि ये उन्ही के जीवन को प्रदर्शित कर रही है |