सन 1300 की बात है । राजस्थान का नाम तब राजपूताना था । इसमें बहुत सी रियासतें थीं जिनमें आमेर, रणथम्भौर, चित्तौड़गढ, जालोर , मेड़ता , मण्डोर प्रमुख थीं । उस समय दिल्ली पर सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी शासन कर रहा था । वह एक क्रूर और बर्बर शासक था । उसने अपने दो मुसलमान दरबारियों को राज्य छोड़ने का आदेश दे दिया था । अलाउद्दीन खिलजी की शक्ति से सब राजा डरते थे इसलिए उन दोनों दरबारियों को कहीं पर भी शरण नहीं दी गई । अंत में वे दोनों दरबारी रणथम्भौर ( वर्तमान में सवाई माधोपुर ) के राजा राव हम्मीर सिंह के दरबार में पहुंचे और उनसे शरण मांगी । रणथम्भौर के दरबारियों ने हम्मीर सिंह को बहुत समझाया कि इन दोनों को शरण नहीं देनी है मगर जैसा कि हम्मीर सिंह के नाम के आगे "हठी" लगा हुआ है, इसलिए वह जिद्दी भी बहुत था । उसने अलाउद्दीन की ताकत जानकर भी उन दोनों मुसलमानों को अपने राज्य में शरण दे दी । इस पर अलाउद्दीन खिलजी राजा हम्मीर सिंह से बहुत कुपित हुआ और उसने सन 1301 में रणथम्भौर पर आक्रमण कर दिया । हठी हम्मीर सिंह के नेतृत्व में राजपूत सेना "केसरिया बाना" पहनकर वीरता पूर्वक लड़ी । केसरिया बाना पहनने का मतलब है कि या तो जीतो या वीर गति पाओ । पीठ दिखाकर नहीं आना है । जब क्षत्रिय सेना केसरिया बाना पहनती हैं तो उन वीर क्षत्रियों की पत्नियां, पुत्रियां आग की चिता में जिंदा जलकर भस्म हो जाती हैं । यह कार्य सामूहिक रूप में होता है । इसे "जौहर" कहते हैं । जौहर करने के पीछे एकमात्र कारण था इस्लामी शासकों द्वारा उनके साथ सामूहिक दुष्कर्म करना और उन्हें गुलाम बनाकर अपने हरम में "लौंडी" की तरह रखना । इस अपमान से बचने के लिए ही वीरांगनाएं "जौहर" करती थीं । इस प्रकार 1301 में रणथम्भौर पर अलाउद्दीन खिलजी का आधिपत्य हो गया । राजपूत लड़ते लड़ते वीरगति को प्राप्त हो गये और राजपूत स्त्रियां जौहर की ज्वाला में भस्म हो गईं ।
उस समय चित्तौड़गढ पर राणा रत्न सिंह का शासन था । रत्न सिंह की पत्नी ख्यातनाम रानी पद्मिनी थी जो तत्कालीन समय की सबसे सुंदर स्त्री थी । उसे हासिल करने के लिए अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़गढ पर सन 1305 में आक्रमण कर दिया । राणा रतन सिंह को छल से बंदी बना लिया गया और अलाउद्दीन खिलजी उसे दिल्ली ले आया । रतन सिंह को छोड़ने के बदले में उसने रानी पद्मिनी की मांग रख दी । तब रानी पद्मिनी ने अपने विश्वस्त सरदार "गोरा" और "बादल" को राणा रतन सिंह को छुड़वाने का दायित्व सौंपा । गोरा और बादल ने एक योजना बनाई और अलाउद्दीन को उसकी शर्त मानने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया । मगर यह निवेदन किया गया कि रानी पद्मिनी अपनी 1000 दासियों के साथ आयेंगी । अलाउद्दीन इस प्रस्ताव से बहुत खुश हुआ । उसने वह शर्त मान ली । औरतों के वेश में 1000 राजपूत योद्धा दिल्ली से थोड़ा पहले पहुंचे और वहीं पर रतन सिंह और रानी पद्मिनी की अदला बदली हुई । रानी बना गोरा ने राणा रतन सिंह को अलाउद्दीन से मुक्त करवा कर चित्तौड़गढ रवाना कर दिया और उन चुने हुए 1000 योद्धाओं ने अलाउद्दीन की सेना को युद्ध करके वहीं अटकाये रखा तब तक राणा चित्तौड़गढ आ गये । गोरा और बादल समेत 1000 राजपूत सैनिक मारे गये । अलाउद्दीन खिलजी ने पुन : चित्तौड़गढ को घेर लिया । तब चित्तौड़गढ में पूर्ण "साका" हुआ था । वह चित्तौड़गढ का पहला साका था । पूर्ण "साका" का मतलब है राजपूत वीर "केसरिया बाना" पहन कर मरने तक युद्ध करेंगे और वीरांगनाएं "जौहर" में अपनी "आहुति" देकर अमर हो जायेंगी । यदि इन दोनों में से कोई एक कार्य होता था तो वह "अर्द्ध साका" कहलाता था । सन 1305 में यह साका पूर्ण साका था । राणा रतन सिंह युद्ध में वीर गति को प्राप्त हुए और रानी पद्मिनी ने अन्य क्षत्राणियों के साथ जौहर किया । इस तरह चित्तौड़गढ पर अलाउद्दीन खिलजी का अधिकार हो गया ।
गुजरात का सोमनाथ मंदिर सदैव इस्लामी शासकों को अखरता रहता था । महमूद गजनवी के सोमनाथ पर आक्रमणों से हम लोग परिचित हैं ही । 1305 में चित्तौड़गढ विजय के बाद अलाउद्दीन खिलजी ने भी सोमनाथ पर आक्रमण करने की योजना बनाई । दिल्ली से सोमनाथ के रास्ते में जालोर आता था । तब जालोर पर राजा कान्हड़देव राज्य करता था । अलाउद्दीन ने जालोर से अपनी सेना के गुजरने के लिए उससे अनुमति मांगी जो उसने नहीं दी । कान्हड़देव एक वीर प्रतापी राजा था और वह सोमनाथ मंदिर पर चढाई करने के लिए अपने राज्य में से कैसे रास्ता दे सकता था ? उसने मना कर दिया । तब अलाउद्दीन खिलजी की सेना उलगु खान के नेतृत्व में मेवाड़ से होकर सोमनाथ गई और सोमनाथ मंदिर को ध्वंस कर सारा माल असबाब लूटकर वापस लौट रही थी । तब उलगु खान ने जालोर होकर लौटने का निश्चय किया । इस पृष्ठभूमि पर यह रचना तैयार की गई है ।
क्रमश :
श्री हरि
4.10.22