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भाग 8

14 अक्टूबर 2022

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अलाउद्दीन खिलजी ने सुल्तान जलालुद्दीन खिलजी के स्वागत की पूरी तैयारी कर ली थी । घोषित तौर पर भव्य स्वागत की तैयारियां चलती रहीं लेकिन अघोषित तौर पर सुल्तान की हत्या करने का षडयंत्र रचा गया था । "कड़ा" में गंगा नदी के किनारे सुल्तान के लिए एक विशाल और भव्य शामियाना लगवाया गया । जगह जगह स्वागत हेतु तोरण द्वार बनवाये गये । फूलों से सुसज्जित किया गया ।  स्वागत में सुंदर सुंदर स्त्रियां तैनात की गईं और भोजन में विभिन्न प्रकार के पकवान बनाये गये । 
जलालुद्दीन खिलजी 20000 की सेना लेकर चला था । अलाउद्दीन के भाई अल्मास बेग ने सुल्तान को यह कहकर कि अलाउद्दीन सुल्तान की बहुत  इज्जत करता है और वह अब तक नहीं मिलने के लिए शर्मिन्दा भी है , सेना को दूर रखने के लिए मना लिया । जलालुद्दीन उसकी बातों में आ गया और वह नाव से अलाउद्दीन खिलजी से मिलने पहुंचा । 

जलालुद्दीन खिलजी ने जैसे ही नाव से नीचे पैर रखा , अलाउद्दीन खिलजी एक नाटक के तहत उसके चरणों में गिर पड़ा और माफी मांगने लगा । सुल्तान जलालुद्दीन खिलजी उसे गले लगाने के लिए नीचे झुका इतने में अलाउद्दीन के एक विश्वस्त सेवक ने जलालुद्दीन खिलजी पर तलवार से वार कर दिया । जलालुद्दीन 70 वर्ष की उम्र में भी उस वार को बचा गया । तब दूसरे सेवक ने जलालुद्दीन खिलजी पर एक और वार कर दिया जिससे सुल्तान घायल हो गया । तत्पश्चात पहले वाले सेवक ने सुल्तान जलालुद्दीन खिलजी की गर्दन तलवार के एक ही वार से काट कर अलग कर दी । 
तब अलाउद्दीन खिलजी ने एक बड़ा सा भाला मंगवाया और अपने चाचा और ससुर सुल्तान जलालुद्दीन खिलजी का सिर उस भाले की नोंक में फंसाकर उसे पूरे शहर में घुमाया गया और इस तरह अलाउद्दीन खिलजी ने स्वयं को दिल्ली का सुल्तान घोषित कर दिया । जलालुद्दीन खिलजी के धड़ की खाल उतरवाई गई और उसमें भूसा भरवाकर अपने प्रांत में हर जगह घुमाया गया । लगभग 20 - 25 दिनों तक कटा हुआ सिर और भूसा भरा हुआ धड़ जनता में घुमाने के कारण वह सड़ गया था । उसमें कीड़े पड़ गये थे तब जाकर उसे चील कौओं को खाने के लिए फेंक दिया गया । अलाउद्दीन खिलजी की बर्बरता का यह एक छोटा सा नमूना है । 

जलालुद्दीन खिलजी का बेटा अर्कली खान उस समय मुल्तान का राज्यपाल था । अलाउद्दीन खिलजी ने अपने भाई अल्मास बेग को अपने राज्य का सेनापति बना दिया और करीब 30000 सेना के साथ उसे मुल्तान भेज दिया । अल्मास बेग ने अर्कली खान का वध कर दिया और उसके साथ भी वैसा ही सलूक किया गया । दिल्ली सल्तनत में जलालुद्दीन खिलजी और बलबन के समस्त वारिसों को ढूंढ ढूंढकर उनके साथ भी इसी तरह का व्यवहार किया गया । इस तरह क्रूरता , नृशंसता और बर्बरता करने के पीछे उसका उद्देश्य था अमीरों और जनता में भय व्याप्त करना जिससे कोई उसके खिलाफ विद्रोह करने का साहस न कर सके ।  इस उद्देश्य में वह सफल भी हुआ । 
अलाउद्दीन खिलजी के निम्न सिद्धांत थे 
अपने विरोधियों का नृशंसतापूर्वक पूर्ण दमन 
जनता और अमीरों में भयंकर भय उत्पन्न करना जिससे कोई विरोध करने का साहस नहीं कर सके 
निरंकुशता पूर्वक शासन करना । कठोर दंड देना । मौलवियों और काजियों पर भी कोई रहम नहीं करना । 
अपने साम्राज्य का विस्तार करना 
हिन्दू मंदिरों का विध्वंस करना , उन्हें लूटना और हिन्दुओं को अपमानित करना 

अलाउद्दीन खिलजी ने अपनी सेना के चार सेनापति नियुक्त किये और अपने भाई अल्मास बेग को प्रधान सेनापति बना दिया जिसे "उलुग खान" की उपाधि से विभूषित किया गया । उस समय दिल्ली सल्तनत पर मंगोलों के आक्रमण अक्सर हुआ करते थे । अलाउद्दीन इन आक्रमणों को विफल करना चाहता था । दिल्ली में कोई सुरक्षित किला नहीं था इसलिए उसने "सीरी" में एक अभेद्य किला बनवाना शुरू किया । वह किला आज भी मौजूद है जो "सीरी फोर्ट" के नाम से जाना जाता है । सीरी किला बनने के बाद उसका राज्य सुरक्षित हो गया था । 

अब उसने अपने साम्राज्य के विस्तार पर ध्यान दिया । सबसे पहले उसने गुजरात विजय करने का निश्चय किया । उलुग खान और नुसरत खान के नेतृत्व में एक विशाल सेना गुजरात भेजी गई । तब गुजरात पर वाघेला राजा कर्ण सिंह राज्य कर रहा था । सन 1298 -99 में यह अभियान चलाया गया । युद्ध में राजा कर्ण सिंह परास्त हुआ और उसका निर्दयता पूर्वक वध कर दिया गया । राजा कर्ण सिंह की रानी कमला देवी बहुत सुंदर थी । तब तक जौहर प्रथा शुरु नहीं हुई थी । अलाउद्दीन खिलजी तो सौन्दर्य का उपासक था । हर खूबसूरत फूल की सुगंध लेना अपना जन्म सिद्ध अधिकार समझता था । रानी कमला देवी को वह कैसे छोड़ता ? उसने कमला देवी के साथ निकाह कर लिया । कमला देवी की पुत्री देवल देवी उस समय की सबसे खूबसूरत युवती थी जो उस युद्ध में कहीं गायब हो गई थी । कमला देवी ने अलाउद्दीन से कहकर अपनी पुत्री देवल देवी का पता लगवाया और फिर अलाउद्दीन खिलजी ने देवल देवी का निकाह अपने पुत्र खिज्र खां से करा दिया । इस प्रकार हिन्दू सुंदरियों को उसने यह संदेश दे दिया था कि युद्ध में पराजित होने पर उनके साथ क्या सलूक किया जायेगा । देवगिरी और गुजरात की घटनाओं ने राजपूत स्त्रियों को जौहर की ज्वाला में अपने प्राण उत्सर्ग करने के लिए विवश कर दिया जिससे वे तुर्कों के हाथों में पड़कर अपना सतीत्व भंग होने से बचा सकें । 

उसी समय मंगोलों ने एक बार फिर आक्रमण कर दिया । इस बार अलाउद्दीन खिलजी ने उस आक्रमण को बुरी तरह विफल कर दिया जिससे फिर कभी मंगोल आक्रमण नहीं कर सके । इस प्रकार उसने अपने साम्राज्य को सुरक्षित करने के पश्चात राजपूताने की ओर रुख किया । 

अलाउद्दीन खिलजी एक पूर्ण निरंकुश, तानाशाह, बर्बर और क्रूर शासक था । ऐसे लोग अक्सर सौन्दर्य के पुजारी होते हैं । सुंदर स्त्रियां इनकी कमजोरी होती हैं । जहां भी कोई सुंदर स्त्री नजर आ जाये , उसे उठा लेने में कोई संकोच नहीं होता था उसे । तभी तो रानी पद्मिनी की सुंदरता के किस्से सुनने के पश्चात किस तरह कामांध होकर उसने चित्तौड़गढ पर चढाई की थी और षड्यंत्र पूर्वक राणा रतन सिंह को बंदी बना लिया था । 

कहते हैं कि अलाउद्दीन खिलजी का "हरम" बहुत बड़ा था । हजारों सुंदर स्त्रियां उठवा कर हरम में कैद कर ली गईं थीं । अलाउद्दीन की विलासिता की अनेक कहानियां प्रचलित हैं । उसे एक बार में एक स्त्री से संतुष्टि नहीं मिलती थी , ऐसा कहा जाता है । इसके लिए वह अनेक स्त्रियों को एक साथ काम में लेता था । उसके बारे में तो यहां तक कहा गया है कि उसे स्त्री से ज्यादा आनंद पुरुषों में आता था । इसके लिये भी उसने पुरुषों का एक पृथक हरम बना रखा था । मलिक काफूर का तो नाम इसीलिए ही विख्यात है कि वह अलाउद्दीन का सबसे पसंदीदा "गिलमा" था । इस काम में आने वाले पुरुष "गिलमा" कहलाते थे । 

अलाउद्दीन खिलजी जिस तरह क्रूर शासक था उसी तरह उसे शेर , चीता वगैरह हिंसक जानवरों का शिकार करने में बड़ा आनंद आता था । जिस दिन वह किसी शेर या चीता का शिकार करके लाता था उस दिन एक विशेष "आयोजन" होता था । उस शिकार का भोज होता था और शराब तथा शबाब का ऐसा दौर चलता था कि बेचारी स्त्रियां "पशुवत" व्यवहार के कारण बुरी तरह प्रताड़ित होती थीं । इस सबका असर यह हुआ कि हिन्दू स्त्रियां घरों में कैद हो गईं और वे  "पर्दा" या "घूंघट" में स्वयं को छुपाने लगीं कि किसी विधर्मी की कामांध नजर उन पर ना पड़ जाये और उन्हें कहीं इस "गुलामी" के दलदल में ना धकेल दिया जाये । यह वह काल था जिसने बहुत सी बुराइयों को जन्म दिया था जैसे बाल विवाह, पर्दा प्रथा, जौहर , गुलाम प्रथा आदि आदि । 

क्रमश : 

श्री हरि 
15.10.22 

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रचनाएँ
जालोर की रानी जैतल दे का जौहर
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सन 1300 में दिल्ली पर अलाउद्दीन खिलजी का शासन था तब राजपूताना में अलग अलग रियासतों पर अलग अलग राजा राज कर रहे थे । रणथम्भौर पर हम्मीरसिंह, चित्तौड़गढपर राणा रतन सिंह और जालोर में राजा कान्हड़देव सोनगरा का राज्यथा । कान्हड़देव और उसका परमवीर पुत्र बीरम देव बड़े शूरवीर थे और रानी जैतल दे वीर, साहसी और शीलवान रानी थी । किस तरह राजा कान्हड़देव लड़ते लड़ते वीर गति को प्राप्त हुए और किस तरह रानी जैतल दे ने किस तरह जौहर किया , इसका सुंदर वर्णन इस कहानी में किया गया है ।
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भाग 9

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