यह कहानी है एक ऐसे व्यक्ति की जो सौतेलेपन का शिकार हुआ । ना उसे मां बाप का प्यार मिला और न ही उसे पत्नी का । प्यार के मरूस्थल में भटकते भटकते वह एक दिन चल बसा ।
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आज दिन भर बहुत काम रहा । केस भी कुछ ज्यादा थे और कोर्ट भी कुछ सख्त रहीं । न चाहते हुए भी कुछ मामलों में बहस करनी पड़ी । वकील रामदास अपनी कुर्सी पर आकर बैठे ही थे और मोबाइल ऑन किया ही था कि घंटी बज गई
कमला काकी बोली " अरे बेटा , सगी मां होती तो चार रोटी बनाकर रख देती पर सौतेली मां तो सौतेली ही होती ही है ना । सगा बेटा सगा ही होता है और सौतेला बेटा सौतेला । जिस तरह से सास कभी मां नहीं बन सकती है चाह
गायत्री नहा धोकर रसोई में आ गई । नई मां उसे रसोई में देखकर हतप्रभ रह गई । "अरे बहू, तुम यहां रसोई में क्यों आई हो ? अभी तो तुम्हें आराम करना चाहिए । जाओ और जाकर आराम करो । मैं अभी नाश्ता तैयार करती हू
संपत गायत्री को लेकर रामपुर आ गया । यही तो उसकी कर्मस्थली थी । पुलिस थाने के बगल में ही क्वार्टर्स बने हुये थे । थाने का समस्त स्टॉफ उन्हीं क्वार्टर्स में रहता था । भीड़ लग गई थी संपत के घर में । सभी
दिन पंख बनकर हवा की तरह उड़ रहे थे दोनों के दिल फेवीकॉल की तरह जुड़ रहे थे इश्क की सरगोशियां सुमधुर बहारें बन गईं आंखों में आशाओं के बादल घुमड़ रहे थे संपत का एक ही सिद्धांत था कि
अगले दिन संपत गायत्री को लेकर पुलिस महानिदेशक के कार्यालय में आ गया । उसे पता था कि एस पी अब क्या खेल खेलेगा । इससे पहले कि वह पुलिस महानिदेशक को कुछ उल्टा सीधा बताये , वह उन्हें सही बात बता देना चाहत
अगले दिन संपत ने घर पर ही डॉक्टर बुला लिया । डॉक्टर ने गायत्री का प्रेगनेन्सी टेस्ट किया और कन्फर्म कर दिया कि वह गर्भवती है । अब तो 'आस का दीपक' जल चुका था जिसकी लौ पूरे घर में उजाला कर रही थी । 
गायत्री का नौवां महीना पूरा हो गया था और किसी भी दिन नन्हा मेहमान आ सकता था । नई मां भी आ गई थी । ऐसे समय पर बड़े बुजुर्ग की जरूरत रहती है । बड़े बुजुर्ग पास में होने से ढाढस सा मिलता है और सिर पर किस