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अनचाहा बंधन भाग-2

21 अक्टूबर 2021

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अनचाहा बंधन - 2


वो तो मुझे साफ साफ कह गयी छ:महिने से पहले तलाक नहीं देगी.... अब मुझे समझ नहीं आ रहा था मै क्या करूँ... शिवाय खुद को कोसने के ,क्या जरूरत थी मुझे उसकी मदद करने की मर रही थी तो मर जाने देता कौन सा इस धरती पर उसके न रहने से किसी को फर्क पड़ना था.!! 
ऐसे ही एक हफ्ता निकल गया वो मुझे मेरे रिसोर्ट में आते जाते समय गुड मॉर्निंग, गुड इवनिंग, विश करने के आलावा कभी नहीं कुछ कहती.... न कभी मेरे आपस पास आने कि कोशिश करती.... जिसे देखकर मुझे लगने लगा था ये मुझे आराम से अनचाहे बंधन से बिना किसी परेशानी के आजाद कर देगी..... 
आज होटल स्टाफ के साथ मिटिग रखी थी.... मेरा स्टाफ पहले से आकर मिटिग रुम में बैठा था.... मुझे कुछ काम आ गया तो मैं अपनी ही केबिन में बैठ कर काम जल्दी से खत्म करके मिटिग में जाने के लिए काम खत्म कर रहा था.... मैंने मिटिग रुम की रिकॉर्डिंग अपने लेपटॉप में आॅन करके रखा था ये देखने के लिए मेरे मिटिग में ना पहुंचने तक मेरा स्टाफ क्या कर रहा है..... एजयूजवल बाॅस के ना आने तक.... स्टाफ बैठ कर गप्पे ही मारते हैं.... उसका नाम सुनते हैं मेरा ध्यान अनासय ही लेपटॉप कि स्क्रीन पर चला गया.... 

चाहत यार तूने शादी एकदम से कर लिया, हम लोगो को शादी में बुलाया भी नहीं कम से कम अपने पति की फोटो तो दिखा दे.... आखिर हम भी तो देख ले कैसे दिखते हैं वो... जिनको देखते ही तूने तुंरत शादी भी कर ली...
दूसरी लड़की कहतीं है... हाँ चाहत दिखा ना फोटो.... उनके बारे में कुछ बता... क्या करते हैं... तुम लोगो की शादी को एक हफ्ता होगा तुम लोगो कही घूमने नहीं गये.... कंजूस जीजा जी है क्या.... कहते हुए वो लड़की हंसने लगतीं है और साथ में बैठी लड़कियां हंसने लगती है.... चाहत बस मुस्कुरा देतीं हैं....

 एक लड़की बोलती है मुझे तो लगता है चाहत ने अपने जैसा ही कंजूस पति ढूंढा है देखों ना मंगलसूत्र भी नकली पहनाया है..... सब उसके मंगलसूत्र को देखने लगतीं है....! 

नहीं ऐसा कुछ नहीं है चाहत सफाई देते हुए कह रही होती है... वो कंजूस नहीं है वो मैंने अचानक से उनसे शादी करने के लिए कह दिया उस समय हमें मंदिर में ये ही मंगलसूत्र मिल गया था तो उन्होंने मुझे पहना दिया था.... वैसे भी मेरे लिए मंगलसूत्र की ये काली मोतियां मायने रखती हैं ना कि उसमें लगा सोना,चांदी, या हीरा.... ! 

ये सुनते हुए पता नहीं मुझे बहुत चिढ़ मच रही थी... मैं अपने केबिन से निकल कर वहाँ के लिए चला गया... 
अंदर जातें समय मैंने सुना अब सब चाहत से मेरा नाम पुछ रहीं थी.... वो बस लड़खड़ाते हुए मेरा नाम बोलने वाली थी कि मैं रुम में एन्ट्र कर देता हूँ, किसी ने मुझे देखकर गुड इवनिंग विश किया कि सब अपनी जगह पर खड़े हो कर मुझे विश करने लगते हैं.... मैंने सबको बैठने का बोल कर, सब पर गुस्से से बरस पडा़.... आप लोगो को मिटिंग के लिए बुलाया था पर आप लोग तो पंचायत में लग गयें थे.... कोई शादी पर चर्चा कर रहा है, कोई स्कोर पुछ रहा है किसी ने ये नहीं सोचा सर ने मिटिंग के लिए क्यों बुलाया है.... उसके बारे में आप लोग क्यों सोचेंगे.... सोचेगे तो पंचायत नहीं छुट जायेगी.... ! 

मेरे कहते हुए सब ने अपना सिर झुका कर साॅरी कहा उसके बाद... मैंने मिटिंग शुरू कि....
 तीन दिन बाद एक पाॅलिटिक्ल लीडर के बेटे की पार्टी हमारे रिसोर्ट में होनी है.... इस पार्टी को अच्छे से अरेंज करना है.... इस पार्टी से हमारे रिसोर्ट को बहुत फायदा होगा.... अगर उन्हें हमारी... अरेंजमेन्ट अच्छी लगी तो वो, हमें ऐसे ही और पार्टी आॅरगनाइज करने के लिए देगे.... तो आप लोगो को बहुत ध्यान से सारे काम करने , पाॅलिटिसियन की पार्टी है तो... कई तरह के लोग आयेगे.... उनको, आप लोगो को अच्छे से डील करना होगा.... आप लोगो को हर तरह के सिचुएशन के लिए रेड्डी रहना पडेगा.... ओके सबको समझ आ गया है! कहते हुए मैंने सब कि ओर देखा सब ने यस सर कहते हुए सब ने अपनी सहमति दे दी.... ! 

चाहत ने मेरे मिटिग रुम में रहने भर में एक बार भी अपना सिर उठा कर मेरी तरह नहीं देखा बस सारी बातें सुनती रही और जो उसे इम्पोर्टेन्ट लग रही थी नोटपैड में नोट कर ले रहीं थी... |
मैं वहाँ से निकल कर अपने केबिन में आकर काम करने लगा पर..... काम करते हुए चाहत कि स्टाफ सहेलियों कि बातें मेरा ध्यान भटकाने रही थी... फिर पता नहीं क्या सोचते हुए मैं बाज़ार जाकर असली मंगलसूत्र खरीद लाया.... अब ये उसे कैसे दू सोच रहा था.... 
सोच ही रही था कि आज भी अपनी सिफ्ट खत्म कर रहीं थी... आज भी मैंने उसे पीछे से हाथ पकड़ कर पेड़ की ओट में ले लिया.... आज मुझे वो घबराई सी नहीं लगी... 
मेरे बोलने से पहले ही कहतीं है.... आप आज भी वही बात करने वाले है तो.... मैं आपको पहले ही कह चुकी हूँ..... नहीं मुझे आज के लिए बात करनी है..... वोह... डोन्ट वरी सर मैंने अपनी दोस्तों का आपका नाम नहीं बताया है....|

 हाँ देखा था, नाम नहीं बताया है पर मेरा नाम खराब जरूर कर रही हो.... मैं समझी नहीं सर.... वो मुझे असमंजस से मेरी आँखों में देख रहीं थी..... मैंने उसके गले में पहनें हुए मंगलसूत्र को अपने हाथों से छूकर कहता हूँ मैं इसकी बात कर रहा हूँ.... मेरे हाथ को मंगलसूत्र से हटाते हुए कहतीं तो आप ने सब सुन लिया था..... हाँ मैने सब सुन लिया था और इसलिए मैं ये मंगलसूत्र लाया हूँ इसे पहल लेना और अपनी जेब में रखा मंगलसूत्र निकाल कर उसके हाथ में देते हुए कहता हूँ..... मिहिर ठाकुर.... की प्रतिष्ठा पर कोई सवाल उठाये मुझे बिलकुल पसंद नहीं..... अब से इसे ही पहना,.... समझी तुम...... पर इसकी कोई जरूरत नहीं कहते हुए वो मंगलसूत्र मेरी ओर बढा़ देतीं हैं.... मैंने थोडे़ गुस्से से कहा तुम्हे फर्क नहीं पड़ता कोई तुम्हारी हंसी उडा़ये.... पर मुझे फर्क पड़ता है.... उन लोगों को नहीं पता तुम्हारी शादी किसे हुई है.... पर मुझे पता है ना कि शादी तुम्हारी मेरे से हुई है.... वो लोग सिर्फ तुम्हारा मजाक नही उड़ा रहीं... मेरा भी मजाक उड़ा रही है.... इसलिए चुपचाप से इसे रखलो और कल से इसे ही पहन कर आना....|

 वो बस मुझे देखे जा रहीं थी.... मुझे ऐसे क्यों घूर रही हो.... कुछ नहीं.... ठीक है अब जाओ.... |
सुनिए.... क्या है..... वो लड़खडाए आवाज में धीरे से कहतीं मैं इसे नहीं पहन सकतीं हूँ.... उसके कहते ही मैंने गुस्से में उसकी दोनों हाथों से उसकी बाजुएँ पकड़ कर अपनी ओर खींचते हुए कहता हूँ.... तुम्हे एक बार में कही बात समझ नहीं आती है कि....मेरे पूरा बोलने से पहले ही बीच में ही वो डरते हुए कहता है,,,वो मैं इसे खुद नही पहन सकतीं हूँ.... डरते हुए किसी तरह वो कह पायी....
उसके ऐसा बोलने पर में पुछता हूँ, क्यों नही खुद से पहन सकतीं हो..... मैंने उसे घूरते हुए देखा...! 
उसने अपनी पलकें उठाकर मेरी ओर देखा और फिर पलकें नीचे करके बोली.... मंगलसूत्र पति ही पहनाता है... कह कर चुप होगी..... |
तो ये ही साफ साफ नहीं कह सकती थी... कहते हुए उसके हाथ में से मंगलसूत्र लेकर मैंने सामने से ही उसे पहनाने लगा मेरा पूरा ध्यान उसको मंगलसूत्र पहनाने में था... पर मुझे लग रहा था जब तक मैं उसे मंगलसूत्र पहना रहा था उसकी नजरें मेरे चेहरे पर ही थी..... और मेरे उसके इतने करीब खड़े होकर उसे मंगलसूत्र पहनाते समय मेरी उंगली उसकी पीठ हो छू गयी थी जिसे उसका दिल घबराहट से जोरों का धड़क रहा था..... 
उसे मंगलसूत्र पहनाते हुए मुझे उसका शरीर समान्य से ज्यादा गर्म लगा.... मैंने उसका माथा छूकर देखा तो वो गर्म था.... तुम्हे तो बुखार है..... नहीं मैं ठीक हूँ.... अब मैं चलती हूँ.... कहकर वो जाने के लिए मुड़ रही थी.... रुको मैं तुम्हें घर छोड़ देता हूँ.. 

इतने बुखार में घर अकेले कैसे जाओगी...... नहीं मै चली जाऊंगी.... आप परेशान ना हो... कह कर वो चलीं गयी... मैंने उसे जातें हुए देखा वो बार बार अपना सर पकड़ रहीं थी.... रास्ते में पड़ने वाले... पेड़ तो कभी पिलर को पकड़ कर चल रही थी.... 
मैंने अपनी गाड़ी उसके सामने रोकते हुए उसे बैठने को कहा वो फिर से मुझे मना कर रही थी.... अब मैंने गुस्से से कहा चुपचाप से गाड़ी में बैठ जाओ..... दिख रहा है मुझे कितना ठीक है..... अगर तुम्हे कुछ हो गया तो इल्जाम मुझ पर ही आना है..... इसीलिए बस तुम्हारी मदद कर रहा हूँ.... तुम्हारी कोई फ्रिक नहीं है मुझे समझी मैं अपनी फ्रिक कर रहा हूँ.... मेरे गुस्सा ने पर वो गाड़ी में आकर बैठ गयीं.... बैठने के बाद ही उसकी आँख लग गयी.... या बेहोश हो गयी मुझे समझ नहीं आया, मैं उसे लेकर सीधे हाॅस्पिटल गया... 
वहाँ डाॅक्टर ने उसे एक इन्जेकशन दिया.... एक घंटे बाद उसे होश आया... अपने को अनजान जगह देखकर घबराते, हुए इधर उधर देखने लगी मुझे दरवाजे से अंदर आते हुए देखकर.... बेड से उतर कर दौड़ कर मेरे पास आकर कहतीं है.... मैं यहाँ कैसे आयी.... क्या टाइम हो गया... मुझे देर हो गई होगी मुझे घर जाना है.... शान्त एकदम शान्त हो जाओ... डाॅक्टर को आ जाने दो एक बार वो तुम्हें फिर से चेंके कर ले कि तुम अब ठीक हो या नहीं, कहीं तुम्हे हाॅस्पिटल में भर्ती तो नहीं करना पडेगा.... इसकी कोई जरूरत नहीं है मैं एकदम ठीक हूँ..... मुझे बस घर जाना है... बैचेनी से कहती है.... पता है कितनी ठीक हो गाड़ी में बैठते ही बेहोश हो गयी थी.... चुप चाप से जाकर बेड पर बैठो डाॅक्टर के कहने के बाद ही.... घर जाओगी... नहीं मुझे घर जाना है वैसे ही मैं बहुत लेट हो चुकी हूँ... मुझे जाने दीजिये.... कहते हुए.. वो बाहर की ओर चल दी..... रुको... कम से कम दवाई तो ले लो... कहते हुए मैं भी उसके पीछे चल पड़ा.... वो बाहर आकर अपने लिए आॅटो रोक रही थी.. मैंने उसका हाथ पकड़ कर अपनी गाड़ी में बैठाते हुए कहा बोलो कहा जाना है... सेक्टर 8 उसने धीरे से कहा.... 
सेक्टर 8 के पास पहुंचने के बाद मैंने कहा रास्ता बताओ अपने घर का.... मेरे कहने पर उसने अपनी आँखे खोली... बस यही उतार दीजिये मैं चली जाऊगी.... उसके कहने पर मैंने भी गाड़ी रोक दी.... मेरे गाड़ी रोकते ही वो उतर कर जल्दी से एक गली में मुड़कर चली गई..... मैं गुस्से से अपना हाथ सिर पर मारते हुए.... इसको सही सलामत इसके घर छोड़ने आया.... बिना शुक्रिया किये.... बस तुंरत गाड़ी से उतर कर चली गई! 

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अनचाहा बंधन
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हम इंसान है इसलिए हमारे पास रिश्ते हैं, पर हर रिश्ता खुशी, सकून देने वाला हो ये जरूरी तो नहीं कुछ सिर्फ बंधन बनकर रह जाते हैं उलझनों वाला, दर्द तकलीफ वाला एक अनचाहा बंधन ,, मिहिर और चाहत ऐसे ही अनचाहे बंधन की उलझनों, दर्द तकलीफों से निकलने के लिए दोनों अनचाहा बंधन में बन जाते हैं, कैसे ये अनचाहा बंधन उनकी चाहतों का बंधन बनता है यही कहानी में दर्शाया गया है|

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