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हिंदी कवि-कथाकार, कोल इंडिया लिमिटेड में वरिष्ठ प्रबंधकप्रकाशित कृतियाँ : उपन्यास : पहचान,कथा संग्रह : कुंजड कसाई, गहरी जड़ेंकविता संग्रह : और थोड़ी सी शर्म दे मौला, गुमशुदा चेहरे संपादन : संकेत ( कविता केन्द्रित लघुपत्रिका),हिंदी कवि-कथाकार, कोल इंडिया लिमिटेड में वरिष्ठ प्रबंधकप्रकाशित कृतियाँ : उपन्यास : पहचान,कथा संग्रह : कुंजड कसाई, गहरी जड़ेंकविता संग्रह : और थोड़ी सी शर्म दे मौला, गुमशुदा चेहरे संपादन : संकेत ( कविता केन्द्रित लघुपत्रिका)

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समय के द्वार पर दस्तक

2 common.readCount
14 common.articles

निःशुल्क

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अंतिम आदमी की पीड़ा : गणेश गनी

6 जनवरी 2017
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पृथ्वी में छह सौ फुट भीतर बन रही कविता रोज ... कुछ भी नहीं बदला कविता संग्रह अनवर सुहैल का है और बोधि प्रकाशन ने इसे कुल्लू में मुझ तक पहुँचाया जिसके लिए मैं आभारी हूँ । यह किताब अनवर जी ने अपने फेसबुक मित्रों को समर्पित की है । कवितायेँ आमजन से जुड़ी होने के साथ साथ वर्तमान की विसंगतियों को भी बेबाक

कुछ नहीं बदला : सूरजप्रकाश राठौर

6 जनवरी 2017
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हाल ही मेंबोधि प्रकाशन से अनवर सुहैल का कविता संग्रह "कुछ भी नहीं बदला"प्रकाशित हुआ. यह पुस्तक विश्वास के दो दशक श्रृंखला की पांचवी कृति है. इस संग्रह में 86 कविताएं है .सुहैल जी ने इस संग्रह को फेसबुक के कविता प्रेमी मित्रों को समर्पित किया है.इसका मूल्य 120 रूपये है. यह

मेरे दुःख की दवा करे कोई : एक अंश

15 दिसम्बर 2016
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''लड़के बड़े-बड़े रिस्क लेने लग जाते हैं। अकेले कहीं भी, किसी भी समय आ-जा सकते हैं। लेकिन जाने कैसे सलीमा ने जान लिया था कि लड़कों की श्रेष्ठता के पीछे कोई आसमानी-वजह नहीं है, क्योंकि जन्म से ही लड़कों को लड़कियों की तुलना में ज़्यादा प्यार-दुलार, पोषण शिक्षा, उचित देख-भाल, सहू

सनूबर : एक

15 नवम्बर 2016
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(धारावाहिक उपन्यास : पहली किश्त)लोग मुझसे अक्सर पूछते हैं कि फिर सनूबर का क्या हुआ... आपने उपन्यास लिखा और उसमें यूनुस को तो भरपूर जीवन दिया. यूनुस के अलावा सारे पात्रों के साथ भी कमोबेश न्याय किया. उनके जीवन संघर्ष को बखूबी दिखाया लेकिन उस खूबसूरत प्यारी सी किशोरी सनूबर के किस्से को अधबीच ही छोड़ दि

शाकिर उर्फ....

11 नवम्बर 2016
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एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाकर ही वह जनरल-बोगी के अंदर घुस पाया। थोड़ी भी कमी रहती तो बोगी से निकलते यात्री उसे वापस प्लेटफार्म पर ठेल देते। पूरी ईमानदारी से दम लगाने में वह हांफने लगा, लेकिन अभी जंग अधूरी ही है, जब तक बैठने का ठीहा न मिल जाए। बोगी ठसाठस भरी थी। साईड वाली दो सी

कोई कभी नहीं जगा सकता

11 नवम्बर 2016
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ये जो प्रदूषण की बात करके हम चिंतित होते हैं तो क्या वाकई हम बढ़ते प्रदूषण के कारण चिंतित होते हैं ये जो महँगाई की बात करके हम चिंतित होते हैं तो क्या वाकई हम कीमतों की मार से चिंतित होते हैं और ऐसी चिंताएं हम तभी क्यों करते हैं जब सबके साथ होते हैं तब ऐसी ही च

तीसरा पक्ष

12 अगस्त 2016
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तीसरा-पक्ष : अंक 35अप्रेल-जून 2016 संपादक : असंगघोष, शिवनाथ चौधरी संपर्क : ३७३४/२३ए, त्रिमूर्ति नगर, दमोह नाका, जबलपुर मप्र ४८२००२ ०७६१२६४८६८६पृष्ठ १०४ एक प्रति : 20/- वार्षिक : 80/- आजीवन : १०००/-दलित लेखन की त्रैमासिकी 'तीसरा पक्ष' इसलिए एक ज़रूरी पठनीय लघुपत्रिका है कि इसमें घोर अंधकार में मशाल का

मेहनतकश के सीने में

23 जून 2016
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कितना कम सो पाते हैं वेयही कोई पांच-छः घंटे ही तोयदि हुई नही बरसातपड़ा नही कडाके का जाड़ातो उतने कम समय में वेसो लेते भरपूर नींदबरखा और शीत में हीअधसोए गुजारते रातउनसे पहले उठती घरवालियाँचूल्हे सुलगा पाथती छः रोटियाँअचार या नून-मिरिच के साथपोटली में गठियातीं तब तकछोड़कर बिस्तर वे किसी यंत्र-मानुष की तर

जहर की खेती

16 जून 2016
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ज़हर की खेतीफिर फिर होतीबोने वाले, शातिर इतनेऔर बहुत माहिर हैं देखोक़ानून बनाकर ज़हर बो रहेमकसद उनका. लोकतन्त्र मेंखूब  उगे  वोटों की फसलदेखो तो अपने मकसद मेंबेशरम हुए जा रहे सफल....भोले-भाले  आम  जन  को  जाने कब  आएगी  अकल.....

अभी तो मुझे

5 जून 2016
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अभी तो मुझे दौड कर पार करनी है दूरियां अभी तो मुझे कूद कर फलांगना है पहाड़ अभी तो मुझे लपक कर तोडना है आम अभी तो मुझे जाग-जाग कर लिखना है महाकाव्य अभी तो मुझे दुखती लाल हुई आँख से पढनी है सैकड़ों किताबें अभी तो मुझे सूखे पत्तों की तरह लरज़ते दिल से करना है खूब-खूब प्या....र तुम निश्चिन्त रहो मेरे दोस्त

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