ज़हर की खेती
फिर फिर होती
बोने वाले, शातिर इतने
और बहुत माहिर हैं देखो
क़ानून बनाकर ज़हर बो रहे
मकसद उनका. लोकतन्त्र में
खूब उगे वोटों की फसल
देखो तो अपने मकसद में
बेशरम हुए जा रहे सफल....
भोले-भाले आम जन को
जाने कब आएगी अकल.....
16 जून 2016
ज़हर की खेती
फिर फिर होती
बोने वाले, शातिर इतने
और बहुत माहिर हैं देखो
क़ानून बनाकर ज़हर बो रहे
मकसद उनका. लोकतन्त्र में
खूब उगे वोटों की फसल
देखो तो अपने मकसद में
बेशरम हुए जा रहे सफल....
भोले-भाले आम जन को
जाने कब आएगी अकल.....
5 फ़ॉलोअर्स
हिंदी कवि-कथाकार, कोल इंडिया लिमिटेड में वरिष्ठ प्रबंधक
प्रकाशित कृतियाँ : उपन्यास : पहचान,
कथा संग्रह : कुंजड कसाई, गहरी जड़ें
कविता संग्रह : और थोड़ी सी शर्म दे मौला, गुमशुदा चेहरे
संपादन : संकेत ( कविता केन्द्रित लघुपत्रिका)
,हिंदी कवि-कथाकार, कोल इंडिया लिमिटेड में वरिष्ठ प्रबंधक
प्रकाशित कृतियाँ : उपन्यास : पहचान,
कथा संग्रह : कुंजड कसाई, गहरी जड़ें
कविता संग्रह : और थोड़ी सी शर्म दे मौला, गुमशुदा चेहरे
संपादन : संकेत ( कविता केन्द्रित लघुपत्रिका)
Dबहुत खूब !!
18 जून 2016