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अंतिम आदमी की पीड़ा : गणेश गनी

6 जनवरी 2017

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article-imageपृथ्वी में छह सौ फुट भीतर बन रही कविता रोज ... कुछ भी नहीं बदला कविता संग्रह अनवर सुहैल का है और बोधि प्रकाशन ने इसे कुल्लू में मुझ तक पहुँचाया जिसके लिए मैं आभारी हूँ । यह किताब अनवर जी ने अपने फेसबुक मित्रों को समर्पित की है । कवितायेँ आमजन से जुड़ी होने के साथ साथ वर्तमान की विसंगतियों को भी बेबाकी से उजागर करती हैं । कवि कहता है - कि वह थकता नहीं वह बेवजह हंसता नहीं अकारण रोता नहीं भरपेट कभी होता नहीं । आमजन के बारे कवि कहता है कि उसकी चमड़ी मर चुकी है या मर चुकी है हमारी सम्वेदना । यह अनवर सुहैल जैसा कवि ही लिख सकता है । अंतिम आदमी की पीड़ा समझने के लिए सम्वेदनशील हृदय चाहिए । राजनीति का खेल अब सब समझ रहे हैं मगर फिर भी धूर्त लोगों ने शरीफों का दिल गिरवी रख लिया है और उसे झूठे वादों से बहलाते रहते हैं । कवि अंतिम आदमी की ही पीड़ा को ऐसे व्यक्त करता है - मैं जहाँ था भाई वहां नहीं था वसंत । आगे देखें क्या कमाल की बात लिखी है - थोड़ी सी धूप थोड़ी सी चांदनी थोड़ी सी नींद थोड़ा सा ख्वाब थोड़ा सा चैन थोड़ा सुकून । इतना कम चाहा था मैंने और तुमने कहा कि रुको - हम बना रहे हैं घोषणा - पत्र । अनवर ने बहुत कवितायेँ ऐसी लिखी हैं जो साधारण भाषा और शिल्प में अंतिम आदमी की पीड़ा से सराबोर हैं । कवि को गाली और गोली से डर नहीं लगता क्योंकि उसके पास एक कलम , एक सोच , एक स्वप्न और एक उम्मीद है । कवि को दोस्तों से बहुत उम्मीद है - क्या तुम उन लिखकर मिटा दी गई पंक्तियों को बांचोगे दोस्त । कवि का दोस्त पर अटूट विश्वास है जो वो जताना नहीं भूलता और यह जरुरी भी है । हमें यह बताना ही चाहिए कि एक मित्र की मित्रता का हमारे जीवन में कितना महत्व है - हम नहीं हंडिया के दाने और कच्चे भी नहीं हैं हंडिया में हम पके हुए हैं पूरे जितना कि तुम हो दोस्त । इस मुश्किल समय में एक संवेदनशील व्यक्ति का अपने मित्र पर यकीन करना बनता है । कवि धरती के अंदर गहरे जा कर भी अँधेरे में प्रेम की लौ जला लेता है - तुम सारा सारा दिन अपने हिस्से के फटे - चीथड़े आकाश में तुरपाई - सिलाई कर कर के तैयार करना चाहती हो मेरे वास्ते एक अदद कमीज। और मैं कोयला खदान की काली - अँधेरी सुरंगों में तलाशता रहता हूँ तुम्हारी याद के जुगनू । आज जहाँ बड़े कवि अपनी अपनी कविताओं को लेकर सीना ताने खड़े हैं वहां अनवर सुहैल जैसा सरल हृदय वाला कवि अपनी लेख नी से सबका ध्यान खींचता है । कवि बड़े सादगी से संकेत सबको दे रहा है कि कविता इधर भी है जो बोलेगी और दूर तलक अपनी टँकार से सबके कानों पर दस्तक देगी । संकेत सच में लघु पत्रिका है जो आज की दुनिया के भारी भरकम साहित्यिक दस्तावेजों के बीच अपनी जगह बनाए हुए है और अनवर सुहैल जी की साहित्यिक दृष्टि का प्रमाण भी है । कुछ भी नहीं बदला दरअसल कवि के प्रश्नों और विद्रोही स्वरों का भी दस्तावेज है । यहाँ औरत को भी कमजोर नही दिखाया गया है - स्त्री ने अपने लिए रच लिए हैं नए ग्रन्थ तराश लिए हैं नए खुदा अब स्त्री सिरज रही है एक नई पृथ्वी । यहां अनवर स्त्री के लिए पूरी पृथ्वी की बात कर रहे हैं । यह अनवर जैसा कवि ही कह सकता है । यह कविता संग्रह आम पाठक के लिए है । इसे कोई भी पढ़कर समझ सकता है । यहाँ यह बात भी गलत सिद्ध हो जाती है कि साहित्य आम आदमी के लिए नहीं लिखा जाता । बल्कि यही सिद्ध होता है कि साहित्य आम आदमी के लिए ही लिखा जाता है ।

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हिसाब

27 अप्रैल 2016
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होशियार हुआ जाये कि बढ़ रही है अब इनमें आँखें तरेरने की हिम्मत सर उठाने की जुर्रत छनछनाकर झुंझलाने की हिमाकत या पैर पटककर चल देने की प्रयास नहीं है ये कोई छोटा-मोटा अपराध समय रहते किया जाए इलाज कि इतनी ढील का तो है ये नतीजा वरना कहाँ थी मजाल इन नमक-हरामों कीहमारे टुकड़ो

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हज़रत बाबाजी

29 अप्रैल 2016
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कम्पनी के काम से मुझे बिलासपुर जाना था। मेरे फोरमेन खेलावन ने बताया कि यदि आप बाई-रोड जा रहे हैं तो कटघोरा के पास एक स्थान है वहां ज़रूर जाएं। स्थान माने हाइवे से एक किलोमीटर पहले बाई तरफ जो सड़क निकली है, उस पर बस मुश्किल से दो किलोमीटर पर एक मज़ार है। मज़ार से ताल्लुक मुसलमानों की जियारत-गाह होती ह

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ये कौन है...

24 मई 2016
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ये है कौन जो बोल रहा हमारी बात और हम हैं कि खुश हो रहे तोड़ते नहीं मौन जबकि हमें बोलना चाहिए अपनी बात कि हम अपने प्रवक्ता खुद हैं फिर भी रहकर खामोश जोह रहे बाट कि कोई तो बोले हमारी बात कोई तो रक्खे हमारा पक्षये है कौनजिसकी बात सुन रहे हम होकर मौनबिना पलकें झपकाए टकटकी बांधे ताक रहे उसेजैसे हो कोई मसी

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अभी तो मुझे

5 जून 2016
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अभी तो मुझे दौड कर पार करनी है दूरियां अभी तो मुझे कूद कर फलांगना है पहाड़ अभी तो मुझे लपक कर तोडना है आम अभी तो मुझे जाग-जाग कर लिखना है महाकाव्य अभी तो मुझे दुखती लाल हुई आँख से पढनी है सैकड़ों किताबें अभी तो मुझे सूखे पत्तों की तरह लरज़ते दिल से करना है खूब-खूब प्या....र तुम निश्चिन्त रहो मेरे दोस्त

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कोई कभी नहीं जगा सकता

11 नवम्बर 2016
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ये जो प्रदूषण की बात करके हम चिंतित होते हैं तो क्या वाकई हम बढ़ते प्रदूषण के कारण चिंतित होते हैं ये जो महँगाई की बात करके हम चिंतित होते हैं तो क्या वाकई हम कीमतों की मार से चिंतित होते हैं और ऐसी चिंताएं हम तभी क्यों करते हैं जब सबके साथ होते हैं तब ऐसी ही च

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शाकिर उर्फ....

11 नवम्बर 2016
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एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाकर ही वह जनरल-बोगी के अंदर घुस पाया। थोड़ी भी कमी रहती तो बोगी से निकलते यात्री उसे वापस प्लेटफार्म पर ठेल देते। पूरी ईमानदारी से दम लगाने में वह हांफने लगा, लेकिन अभी जंग अधूरी ही है, जब तक बैठने का ठीहा न मिल जाए। बोगी ठसाठस भरी थी। साईड वाली दो सी

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सनूबर : एक

15 नवम्बर 2016
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(धारावाहिक उपन्यास : पहली किश्त)लोग मुझसे अक्सर पूछते हैं कि फिर सनूबर का क्या हुआ... आपने उपन्यास लिखा और उसमें यूनुस को तो भरपूर जीवन दिया. यूनुस के अलावा सारे पात्रों के साथ भी कमोबेश न्याय किया. उनके जीवन संघर्ष को बखूबी दिखाया लेकिन उस खूबसूरत प्यारी सी किशोरी सनूबर के किस्से को अधबीच ही छोड़ दि

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मेरे दुःख की दवा करे कोई : एक अंश

15 दिसम्बर 2016
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''लड़के बड़े-बड़े रिस्क लेने लग जाते हैं। अकेले कहीं भी, किसी भी समय आ-जा सकते हैं। लेकिन जाने कैसे सलीमा ने जान लिया था कि लड़कों की श्रेष्ठता के पीछे कोई आसमानी-वजह नहीं है, क्योंकि जन्म से ही लड़कों को लड़कियों की तुलना में ज़्यादा प्यार-दुलार, पोषण शिक्षा, उचित देख-भाल, सहू

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कुछ नहीं बदला : सूरजप्रकाश राठौर

6 जनवरी 2017
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हाल ही मेंबोधि प्रकाशन से अनवर सुहैल का कविता संग्रह "कुछ भी नहीं बदला"प्रकाशित हुआ. यह पुस्तक विश्वास के दो दशक श्रृंखला की पांचवी कृति है. इस संग्रह में 86 कविताएं है .सुहैल जी ने इस संग्रह को फेसबुक के कविता प्रेमी मित्रों को समर्पित किया है.इसका मूल्य 120 रूपये है. यह

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अंतिम आदमी की पीड़ा : गणेश गनी

6 जनवरी 2017
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पृथ्वी में छह सौ फुट भीतर बन रही कविता रोज ... कुछ भी नहीं बदला कविता संग्रह अनवर सुहैल का है और बोधि प्रकाशन ने इसे कुल्लू में मुझ तक पहुँचाया जिसके लिए मैं आभारी हूँ । यह किताब अनवर जी ने अपने फेसबुक मित्रों को समर्पित की है । कवितायेँ आमजन से जुड़ी होने के साथ साथ वर्तमान की विसंगतियों को भी बेबाक

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