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Apni Gadi ka Intezar

2 सितम्बर 2021

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दरअसल आज मै आपको अपनी जिंदगी में घटी एक घटना सुनाने आया हूं जिसका सीधा संबंध हमारे देश की तत्कालीन परिस्थितियों से है।दरअसल आज मै आपको अपनी जिंदगी में घटी एक घटना सुनाने आया हूं जिसका सीधा संबंध हमारे देश की तत्कालीन परिस्थितियों से है।

बात कुछ तीन साल पहले की है। मै मार्केट रिसर्च में काम करता था और अक्सर किसी  किसी काम से बाहर ही रहता था।

मेरा ज्यादातर समय यात्रा और अन्य शहरों  में गुजरता था। पर उसका एक बड़ा हिस्सा रेलवे की कृपा से स्टेशन पर भी गुजरता था। क्योंकि समय पर आना तो रेलवे की परम्परा का अभिन्न अंग है और ये हम भारतीयों से ज्यादा कोन जान सकता है।

मेरा एक प्रोजेक्ट पूरा हुआ गोरखपुर से  तो मैंने अपने ऑफिस  में बताया की मै लखनऊ  के लिए निकाल रहा हूं। तो हमारे लिए आदेश आया की एक  दिन  की रिसर्च है तुम इलाहाबाद होकर आओ।

मै इलाहाबाद जाने की बात मानकर गोरखपुर स्टेशन पर बैठा हुआ इलाहाबाद जाने वाली ट्रेन का इंतजार करने लगा।

दोपहर  का समय था लगभग ३ बज रहा होगा। मुझे थोड़ी भूख लग रही थी मगर बाहर जाने  का मतलब था गाड़ी  का रिस्क लेना। और गाड़ी छूट जाए तो मतलब अगले दिन तक यहीं इंतजार।

मेरे साथ वह और भी लोग अपनी गाड़ी  का इंतजार कर रहे थे।

एक ५ या ६ साल  का बच्चा वहां घूम रहा था जिसको कहीं जाना नहीं था।

वो बस कुछ मांग रहा था । सभी के पास जाकर एक रुपया दो रुपया  और कुछ खाने  के लिए ।

उसके कपके बहुत गंदे थे शायद वो १ महीने से नहाया नहीं था।

पर वो भविष्य और अपने आस पास वाले लोग क्या कहेंगे से अनभिज्ञ बस मस्त मौला मगन अपनी धुन में मस्त था।

उसे अपने  कपड़ों से कोई शिकायत नहीं थी। ना ही अपनी गरीबी से और नहीं किसी सरकार से, वो बस मांग रहा था। मिले या  ना मिले इसकी फिकर किए बिना।

जैसे आजकल हमारे देश  में आरक्षण । सरकारी । नौकरी। भत्ता । वेतन बढ़ोतरी । प्रोन्नति । छुट्टी । धरना देने की इजाज़त। अतांकियों की रिहाई । समाजसेवियों की सीबीआई जांच और बाबाओं को फांसी की सजा मांगी जा रही है।

मांगने वाले मांग रहे है। टालने वाले टाल रहे है।

तभी मैंने देखा कि एक सफेद कुर्ता पैजामा पहने वयोवृद्ध व्यक्ति स्टेशन पर  गए, चूंकि स्टेशन पर  ज्यादा लोग नहीं थे मै और ४   या ६ अन्य यात्री मेरे आस पास थे और पूरे स्टेशन पर अधिकतम १५ यात्री थे।

जो व्यक्ति अभी अभी आए उनके हाथ में मूंगफलियों की कुछ थैलियां थी। वो एक छड़ी का सहारा लेकर चल रहे थे और उनके सफेद कपड़े साफ तौर पर बहुत साफ नहीं थे पर ऐसा लगता था कि इनको धुला गया था पर शायद साबुन या निरमा से नहीं ।

बाबा जी के बाल भी पूरे सफेद और घनी दाढ़ी भी पूरी सफेद मगर एकदम करीने से सधी हुई और बाल ठीक से कंघी किए हुए।

वो आए तो चलते हुए थक गए तो मेरी बेंच के एक तरफ बैठ गए लगभ ग १० मिनट बाद उठे और सबसे पूछने लगे किया मूंगफली लेना है आपको ।

मुझे तो भूख लगी थी इसलिए मैंने एक थैली के ली मगर बाकी किसी ने नहीं लिया। वो लोग अभी कुछ देर पहले ही बालक को २ या ४ रुपए दे चुके थे और अब वो बालक बाबा जी से मूंगफली मांग रहा था । और बाबा जी को पैसे दिखा रहा था कि उसके पास पैसे है।

मैंने देखा कि बाबा जी बहुत उदास और अस्वस्थ है और साथ ही बहुत स्वाभिमानी भी। मैंने उनको कुछ पैसे देने की कोशिश की मगर उनके ओजस्वी तेज को सहन नहीं कर पाया। उनको पैसे देने की बात कहना मतलब उनको चिढाना या ये बताना कि वो अक्षम है। मै इतना सक्षम नहीं था। जो व्यक्ति अस्सी साल के बाद भी अपनी जीविका के लिए भीख नहीं मांग रहा हो वो अक्षम कैसे हो सकता है।

मैंने उनसे  बस इतना कहा कि  आप मुझे सारी  थैलियां दे दें।  इस बात से मैंने उनके चेहरे पर एक हल्की सी संतुष्टि देखी थी। आत्मसम्मान कि जैसी की आज भी हमारे पूर्वजों  को है हमारे इतिहास को लेकर। हमारी परंपरा को लेकर। हमारे पूर्वजों की गाथाओं । गौरवशाली इतिहास। सिक्षा । साहित्य। विज्ञान। गणित। खगोल। चिकित्सा। आदि  में योगदान देने के  कारण।

लेकिन  इस सब से अलग एक बात जो नहीं कही, हमारी युवा पीढ़ी जो ना तो उस बच्चे के लिए कुछ करती है ना ही बुजुर्ग के लिए।

मतलब जिनको ना तो हमारे गौवशाली इतिहास पर गर्व है और   न ही भविष्य को संवारने की चिंता।

उनको बस अपनी गाड़ी आने  का इंतजार है जैसा कि हमारे नेता जी लोग।।।।।

बहुत बड़ा पोस्ट लिखने  के लिए क्षमा।

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रवीन्‍द्र श्रीमानस

रवीन्‍द्र श्रीमानस

सत्‍य वचन। गौरवशाली इतिहास और पूर्वजों के झण्‍डे तो सब उठाते हैं किन्‍तु वर्तमान और भविष्‍य की पीढि़यों की फिक्र कोई नहीं करता। सब स्‍वयं में व्‍यस्‍त हैं।

9 सितम्बर 2021

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रचनाएँ
अनकहे शब्द
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कुछ बातें जो कह नहीं पाते उनको कहने का समय निकल जाता है तब लगता है की शायद उस समय कह लेते तो अच्छा होता. मगर अब वो बातें बस मन में विचरण करती है. और अपनी अलग दुनिया में मगन रहती है. जो कह नही सके जरूरी था मगर चुप रह गए ये सोचकर फिर कभी फिर कभी फिर न मौका मिला, न मुलाकात हुई, बात मन में जो थी मन में ही रह गयी तुम मिले जो कभी सब समझ जाओगे बोलूंगा कुछ नहीं, सुनूंगा कुछ नहीं.

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