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मैं मुरझाया हुआ सा था मन किया खिड़की खोली उसमें से शीतलहरी के मिश्रण के साथ सूरज की किरणें फुहारे की तरह बरस पड़ी मेरे तन पर पढ़ते ही उनकी उन्होंने क्या अजीब खेल दिखाए
मां! ऐ! मां! रहने दो भूख नहीं है, तू हर रोज कार्य करती है लेकिन थकती नहीं कहां से लाती है इतना साहस और शक्ति मां ऐ मां रहने दो भूख नहीं है। बचपन से आज तक&n