भारतीय दर्शन , विज्ञान , साहित्य , व धर्म मे किसी विषय संदर्भ या शब्द को समझाने के लिए किसी उपमा के साथ जोड़ कर उसका अर्थ समझाने का प्रयास किया जाता है | ऐसे ही हमारे धर्म विज्ञान दर्शन व साहित्य मे विद्वानों ने जल को जीवन के साथ जोड़ कर कह दिया है ………
“जल ही जीवन है”
यूँ तो हम कई जगह पढते हैं कि यह शरीर पांच तत्व/ पंचमहाभूत ( आकाश वायु अग्नि जल व पृथ्वी ) से मिल कर बना है | आत्मा के संयोग से यह जीवनीय होता है | फिर क्या बात है कि इन पांच तत्व और छटा आत्मा , मे से केवल जल को ही चुना और कह दिया ________
“जल ही जीवन है”
और यह बार बार और हर क्षेत्र में कहा गया है |किसी ने भी यह क्यों नहीं कहा ___आत्मा ही जीवन है , पृथ्वी ही जीवन है , आकाश /वायु/ अग्नि ही जीवन है
प्रतीक रूप मे जल को ही जीवन की संज्ञा क्यों ….?
हिंदू धर्म वास्तव में एक वैज्ञानिक धर्म है | हमारे धार्मिक ग्रथों से लेकर हमारे साहित्य , दर्शन , ज्योतिष शास्त्र , समाज शास्त्र एवं विज्ञान और स्वास्थ्य विज्ञान ( आयुर्वेद ) में भी किसी भी विषय को समझाने के लिए प्रतीकों का प्रयोग बहुतायत से किया जाता है | और इन प्रतीकों का कोई ठोस व तार्किक पक्ष अवश्य ही इनसे जुड़ा होता है |
यही कारण है कि मेरे मन मे यह प्रश्न उठा कि
जल ही क्यों जीवन है ?
हम पांच तत्व और आत्मा के बारे मे विचार भी करें कि क्या इन्हें जीवन कह सकते हैं ?
जीवन के साथ कुछ विशेषण भी जोड़े जाते हैं जैसे जीवन चक्र ______जीवन ….चलने का नाम
यानि ….जीवन कभी रुकता नहीं सदा गतिमान है और इस मृत्युलोक मे जीवन की स्वाभाविक परिणिति मृत्यु है |
लेकिन मृत्यु के साथ जीवन समाप्त नहीं होता , मृत्यु के बाद भी जीवन चलता है |
तभी इसे जीवन चक्र की संज्ञा दी गयी है |अर्थात ….जहाँ से चले फिर वहीँ पहुँच गए |
अब क्या पञ्च तत्व और आत्मा जीवन के चलायमान होने और जीवन के चक्र होने की शर्त पूरा करते हैं ?
पृथ्वी को ही लें | पृथ्वी सदा गतिमान है |स्वयं अपनी धुरी पर चलती है और एक दिन मे चक्र पूरा करती है एवं एक वर्ष में सूर्य का एक चक्र पूरा कर लेती है
फिर ..!! “पृथ्वी ही जीवन है” ………….क्यों नहीं ?
वायु भी सदा चलती है | इतना ही नहीं वायु के बिना तो जीवन की कल्पना असंभव लगती है | व्यक्ति जल के बिना तो शायद कुछ देर जीवित रह ले परन्तु सांस( वायु ) लिए बिना तो एक पल भी जीवित नहीं रह सकता |
पित्तं पंगु कफः पंगु पंगवः मलधातवः
वायुना यत्र नीयन्ते तत्र गच्छन्ति मेघवत्
फिर
“वायु ही जीवन है” …………..क्यों नहीं ?
ऐसे ही अग्नि _ अग्नि है तो ऊर्जा है
ऊर्जा है तो गति है …….गति है तो जीवन है | पृथ्वी जल वायु , आकाश आदि तत्व भी बिना ऊर्जा के व्यर्थ हैं अर्थात जीवन शून्य |
फिर …….? अग्नि ही जीवन है ……….क्यों नहीं ?
ऐसे ही आकाश मे सब समाहित हैं किसी भी वस्तु , विषय को ग्रहण करने के लिए आकाश अर्थात space बहुत आवश्यक है | अगर आपके पास जगह या space ही नहीं तो कुछ भी नहीं | जैसे घर बनाने के लिया सबसे पहली शर्त जगह / स्थान है वैसे ही शरीर बनाने के लिए आकाश |
फिर ..:आकाश ही जीवन है” ………..क्यों नहीं ?
चलिए मान लेते हैं सब का अपना अपना महत्व है सब बराबर हैं | शरीर पृथ्वी जल वायु आकाश अग्नि सब तत्वों के यथोचित सुमेल से बना है |
तो………?
क्या सब मिल कर भी जीवन है ?
नहीं ____ क्योंकि अगर शरीर मे आत्मा ही नहीं तो जीवन ही नहीं
अर्थात …..आत्मा ही है जो शरीर में विद्यमान सब तत्वों को प्रेरित करती है अपना कार्य करने के लिए
तो फिर ये क्यों नहीं कहा कि
“आत्मा ही जीवन है”
वास्तव मे जीवन तो इन पांच तत्वों और आत्मा के समुचित संयोग और सुमेल से बना है |
तभी तो कहा गया है ___________
पृथ्वी है तो जीवन है
जल है तो जीवन है
अग्नि है तो जीवन है
वायु है तो जीवन है
आकाश है तो जीवन है
आत्मा है तो जीवन है
और यही सत्य भी है ……..अर्थात इनमे से किसी एक को निकाल दो तो जीवन नहीं है |
फिर प्रश्न उठता है कि ऐसा क्यों बोला गया कि
“जल ही जीवन है”
जैसा कि मैंने शुरू मे कहा कि भारतीय संस्कृति में प्रतीकों का बड़ा महत्व है और वो सार्थक अर्थ भी रखते हैं |
इसी लिए प्रतीक रूप मे कहा गया “जल ही जीवन है” अपने आप मे एक सार्थकता लिए हुए है |
जैसे कि जीवन को चलायमान कहा है और जीवन को चक्र के साथ जोड़ कर जीवन चक्र की संज्ञा दी गयी है |
जल को अपने इन्ही गुणों के कारण व्यक्ति के जीवन चक्र से जोड़ा गया है |
चक्र मे कहीं से भी शुरू करके वापिस वहीं पहुंचेंगे , जैसे वर्षा जल पृथ्वी गिरता है पहाड़ों पर गिरता है बर्फ का स्थूल रूप लेता है , सूर्य की गर्मी से पिघल कर नदियों के रूप मे विभिन्न पडावों से गुजरता है |
पहाड़ों से मैदान , मैदानों से समुद्र मे जा मिलता है |जैसे जल की यात्रा समाप्त सी हो गयी | जीवन चक्र मे भी व्यक्ति पैदा होकर विभिन्न चरणों से निकल कर अन्त मे मृत्यु को प्राप्त कर के अपनी यात्रा समाप्त करता है |
परन्तु क्या वास्तव मे जल की यात्रा और जीवन यात्रा समाप्त होती है ?
जिस प्रकार मृत्यु के पश्चात आत्मा परमात्मा मे मिलती है और उसी परमात्मा से आत्मा मृत्यु लोक में आकर पुनः अपना जीवन चक्र चलाती है |उसी तरह जल भी समुद्र मे मिलता है फिर पुनः वाष्पीकृत होकर पर्वतों की और रुख करता है स्थूल रूप धारण करता है | अग्नि के संयोग से नीचे आता है |
जैसे जल कभी रुकता नहीं वैसे जीवन भी कभी रुकता नहीं | जल के मार्ग में रुकावटें भी आती हैं | पहाड़ों से गिरते नदियों के जल को बाँध कर हम असीम ऊर्जा प्राप्त करते हैं |परन्तु जल की ऊर्जा कम नहीं होती | ऐसे ही जीवन मार्ग मे आने वाली बाधाओं को हम सकारात्मक लेते हुए जब उस से ऊर्जा प्राप्त करते हैं तो उस ऊर्जा का प्रयोग अपने लिए और समाज के लिए करते हैं |
जल कई बार विध्वंस भी करता है ( बाढ़ आदि) ऐसे ही जब जीवन मे जब क्रोध आदि आता आता है तो विध्वंसात्मक प्रवृतियाँ हावी हो कर जीवन नष्ट कर देती है |
चलती तो पृथ्वी भी है परन्तु उसके चलने की प्रक्रिया सतत और एक जैसी है |जीवन मे भी यदि एकरसता हो निर्बाध हो तो जीवन मे मजा नहीं होता जीवन जीवन नहीं होता | जीवन तो जल की तरह उबड खाबड उतर चढ़ाव के बीच मे से रास्ता बनाते हुए चलने का नाम है |
वायु में भी तो उतार चढ़ाव हैं लेकिन वायु में निरंतरता नहीं अस्तव्यस्त , अगर जीवन भी वायु की तरह हो कभी इधर कभी उधर कभी स्तब्ध तो कभी तेज तो जीवन बेकार | वायु की कोई मंजिल भी नहीं | जीवन और जल की मंजिल निश्चित है | जैसे मृत्यु निश्चित है और मृत्यु के बाद पुनः जन्म इसका चक्र है उसी तरह जल चक्र है |
वायु हमे मरता दीखता नहीं , जल दीखता है
वास्तव मे तो जल भी नहीं मरता | समुद्र तो उसके जीवन चक्र का एक पड़ाव है | ऐसे ही व्यक्ति/आत्मा के जीवन चक्र का एक पड़ाव है मृत्यु |
कहते हैं कि जीवन रुकता नहीं और जल भी रुकता नहीं ……..यह सत्य है
फिर कहा गया _ जल जब ठहर जाता है तो वह खराब हो जाता है अर्थात उसमे सडांध पैदा हो जाती है | ऐसे ही व्यक्ति जब अकर्मण्य होता है तो उसका जीवन बेकार माना जाता है |
सत्य है दोनों के बारे मे ,परन्तु यह भी कह दिया कि जल और जीवन रुकते नहीं | वास्तव मे रुकते नहीं | जलाशय का जल रुका हुआ भी सतत वाष्पीकृत होता रहता है और पुनः वायुमंडल मे जाकर पहाड़ों नदियों से होता हुआ समुद्र तक की अपनी यात्रा को पूरी करने का प्रयास करता है |
जिस प्रकार जल मे विभिन्न प्रकार के उतार चढ़ाव आते है | रास्ते मे जल को दूषित / मलिन भी किया जाता है
परन्तु समुद्र मे मिलते हुए अपने मे समाहित गंदगी को छोड़ वह पुनः निर्मल हो जाता है |
तभी तो जल को निर्मल कहा गया है | ऐसे ही व्यक्ति से अपेक्षा रहती है कि जीवन चक्र मे विभिन्न प्रकार से उतार चढ़ाव गंदगी आदि से अपने मन और आत्मा को दूषित किये बिना निर्मल ह्रदय से परमात्मा से मिलन करे |
जैसे अग्नि के संयोग से कोई वस्तु जलते हुए राख हो जाती है और उसमे से उसका जलीयांश वाष्पीकृत होकर मरता नहीं | उसी प्रकार जीवन यात्रा पूरी करने के बाद शरीर जलाया जाता है तो आत्मा मरता नहीं अपितु निर्मल और निष्पाप होकर परमात्मा से मिल कर पुनः जीवन चक्र में आने को तैयार होता है
| अतः जल ही जीवन है ।
(ये लेख जनोक्ति मंच से लिया गया है. )
काश, सभी लोग इससे शिक्षा ले और पानी को बर्बाद न करें ....
क्योंकि कई लोगों को एहसास नही होता की पानी के आभाव में कितने पशु पक्षी अपनी जान खो देते हैं ।