आँख खुला तो सुबह
हुवा था,आँख भीगा था
दुःख में रोया,सुखमे रोया ऐसा एक स्वप्न था|
तकिया गीला था
दिल की धड़कन कितनी तेज था
मन भारी भारी था
अनहोनी से गुजरें कैसी चोट था|
तड़प दिखी थी साथ
निभाई थी हकीकत है ये
आवाज दी थी हाथ बढ़ाई थी मुहब्बत है ये
सच होते स्वप्न
कभी डर है सच न हो जाये
खोना नहीं चाहते जिसको सचमें खो न जाये
राम शरण महर्जन