समयका श्वास नहीं ज्यान वही
क्यालेन्डर कभी घवाराता नहीं
जिसको पत्ता है अपनी मृत्यु भी
हम ही एक है पेन्डुलम घडी जैसी
अपनी आपसे भी डरती हर घडी
सपने भी नीद में उगाती पल पल
रास्तें भी बाद्लों से बनाती प्रतिपल
अस्तित्व शुन्यता में खोजती अलग
चाह बडा काम थोडा और पे आश्रित
कोहि निकले शुर डुम हिलाते सब
जब भी देखो जलती रहती दुसरा
कब् सुधरें बनें दुसरों के लिए सहारा
आत्म शक्ति बडा बनें सबका अपना
बनें आज से तु भी एक क्यालेन्डर .
०१/०१/२०१६