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नयां साल नयां सुरज

1 जनवरी 2016

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समयका श्वास नहीं ज्यान वही 

क्यालेन्डर कभी घवाराता नहीं 

जिसको पत्ता है अपनी मृत्यु भी 

हम ही एक है पेन्डुलम घडी जैसी 

अपनी आपसे भी डरती हर घडी 

सपने भी नीद में उगाती पल पल 

रास्तें भी बाद्लों से बनाती प्रतिपल 

अस्तित्व शुन्यता में खोजती अलग 

चाह बडा काम थोडा और पे आश्रित 

कोहि निकले शुर डुम हिलाते  सब 

जब भी देखो जलती रहती दुसरा 

कब् सुधरें बनें दुसरों के लिए सहारा 

आत्म शक्ति बडा बनें सबका अपना 

बनें आज से तु भी एक क्यालेन्डर .

०१/०१/२०१६ 

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रचनाएँ
himali
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विविधता
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ऐसा एक स्वप्न था|

18 नवम्बर 2015
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 आँख खुला तो सुबहहुवा था,आँख भीगा था दुःख में रोया,सुखमे रोया ऐसा एक स्वप्न था|  तकिया गीला थादिल की धड़कन कितनी तेज था मन भारी भारी थाअनहोनी से गुजरें कैसी चोट था| तड़प दिखी थी साथनिभाई थी हकीकत है येआवाज दी थी हाथबढ़ाई थी मुहब्बत है ये  सच होते स्वप्नकभी डर है सच न हो जाये  खोना नहीं चाहतेजिसको सचमें

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नयां साल नयां सुरज

1 जनवरी 2016
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समयका श्वास नहीं ज्यान वही क्यालेन्डर कभी घवाराता नहीं जिसको पत्ता है अपनी मृत्यु भी हम ही एक है पेन्डुलम घडी जैसी अपनी आपसे भी डरती हर घडी सपने भी नीद में उगाती पल पल रास्तें भी बाद्लों से बनाती प्रतिपल अस्तित्व शुन्यता में खोजती अलग चाह बडा काम थोडा और पे आश्रित कोहि निकले शुर डुम हिलाते  सब जब भी

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