बच्चों में मूल्यों का सहज विकास: शिक्षण प्रक्रिया का अनिवार्य हिस्सा
एक शिक्षक का पेशा कई मायनों में ख़ास है. ख़ास इसलिए क्योंकि एक शिक्षक पूरे समाज को बदलने की एक शिक्षक बनने की प्रक्रिया काफी अहम् है. कक्षा में बच्चों के बेहतर रूप से सीखने के लिए एक शिक्षक के रूप में आप किस तरह की रणनीतियाँ अपनाते है, किस प्रकार के नवाचार करते है. वह क्या है जो बच्चों के बेहतर सीखने और मूल्यों के विकास के लिए आपको चिंतन करने से लेकर कुछ नया करने को प्रोत्साहित करता है. शिक्षण पेशे में शिक्षक के चिंतन एक अहम् पहलू है, जो निरंतर पेशे में गुणवत्ता और नवाचार को प्रोत्साहित करता है|
एक चिंतनशील और नवाचारी शिक्षक होने के नाते बच्चों को कक्षा में सीखने के कैसे भरपूर मौके उपलब्ध करवायें जाए, जिससे शिक्षा के उद्देश्यों की पूर्ति हो सके, इसके लिए प्रयास होने जरुरी है| जहां कक्षा के अन्दर और बाहर के प्राकृतिक रिसोर्सेज का बखूबी के साथ उपयोग हो सकें| जिसमें बच्चों को खुद से खोजबीन करने, प्रयोग करने, सोचने और परिकल्पनाये बनाने, संभावित कारणों को तलाशने और घटनाओं और प्रक्रियाओं की सरल व्याख्या करने और निष्कर्ष तक पहुँचने की प्रक्रिया के अवसर मिलने चाहिए| इस पूरी प्रक्रिया में एक शिक्षक के रूप में कक्षा में बच्चों के सीखने को रटंत प्रक्रिया से इतर देखने की कोशिश की गयी है| सामान्यतः सीखने की अवधारणा को रटने की काबिलियत या जानकारियों को बिना सोचे-समझे दिमाग में अधिक समय तक याद रखने से देखकर जोड़ा जाता है. अमूमन हम अपने आसपास देखते भी है कि जो बच्चे परीक्षा में अच्छे और अधिक मार्क्स (अंक) लाते है या पूछने पर
फटा-फट जवाब देने में माहिर होते है. वे पढ़ाई में तेज कहे जाते है. यह एक वर्तमान समय में अच्छी शिक्षा की निशानी समझी जाती है| और इसका फायदा सभी स्कूल जमकर उठाते है. आप कहेंगे मैं
ऐसा क्यों कह रहा हूँ तो समझिए यह काम बहुत ही आसान है. आसान इसलिए क्योंकि यांत्रिक है. सोचिये आपके बच्चो में प्रतिस्पर्धा और जानकारियों को रटने के अलावा यह शिक्षा के किन उद्देश्यों की पूर्ति करता है.. क्या इस प्रकार की शिक्षा से बच्चों में किसी प्रकार के मूल्य जैसे संवेदनशीलता, निडरता , अभयता और सहयोग की भावना दूसरों की बातों और विचारों को ध्यान से सुनने व सम्मान देने आदि का विकास किया जा सकता है|
इस लेख में बच्चों के साथ काम केअनुभव साझा करने का प्रयास किया है| जो कक्षा तीसरी के बच्चों के साथ ईवीएस विषय में काम करने को लेकर है. जिन बच्चों के साथ मैं काम कर रहा था वे बच्चे काफी तेज और ऊर्जा से भरपूर थे. लेकिन जरुरी है कि बच्चों की इस ऊर्जा को सकारात्मक दिशा में जोड़ा जाय उनमें पढने लिखने
के प्रति रूचि, आत्मनुशासन और मूल्यों का विकास किया जाय. यह बात स्पष्ट है कि मूल्य थोपने से नहीं आते. यह तो कक्षा शिक्षण का अनिवार्य हिस्सा है जिसमें बच्चों को उपयुक्त माहौल प्रदान करने से विषय की समझ के साथ साथ मूल्यों को भी विकसित किया जा सकता है. स्कूल के कैम्पस में काफी छोटे-बड़े पेड़ लगाए गए थे. छोटे बच्चे जब भी खाली होते तो बड़े पेड़ों उनकी शाखाओं पर लटकते-झूलते. बात इतनी ही नहीं थी, वे ऐसा करते हुए उनकी शाखाओं को भी तोड़ते और उन्हें नुकसान पहुचातें. कई बार तो उन्होंने उन पेड़ों पर पक्षियों के घोसलों और उनके अंडों को भी तोड़ दिया करते. उनके साथ कई बार कक्षा और असेम्बली में इस बात को लेकर संवाद और पेड़ पौधों और जीवों को लेकर संवेदनशील होने को लेकर बातचीत हो चुकी थी. लेकिन इन बातों का असर उनपर एक दिन के लिए तो होता लेकिन अगले दिन से फिर से वही देखने-सुनने को मिलता|
इसी को ध्यान में रखकर एक दिन पूरी कक्षा से संवाद किया और फिर पूरी कक्षा के साथ मिलकर निश्चय किया कि अब से इस स्कूल के सभी पेड़ों के रख-रखाव, पानी देने और उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी पूरी कक्षा के बच्चों की होगी. बच्चों को इस बात कि आजादी थी कि वे अकेले या समूह में कोई भी एक पेड़ को चुन सकते है और फिर उस पेड़ की देखभाल की पूरी जिम्मेदारी उनकी. उस समय नया नया कैम्पस बनने के कारण यहाँ वहां काफी छोटे-छोटे पत्थर पड़े हुए थे. जिसको लेकर उन्होंने पहले अपने-अपने पेड़ों की चारदीवारी की. उनमें पानी जमा होने के लिए गड्डे बनाए और उन्हें पानी दिया. मुझे पहली बार उस कक्षा में इतना उत्साह और जोश नजर आया. उनमें साथ में मिलकर काम करने की भावना दिखी जो शायद मैं कक्षा में नहीं देख पा रहा था. वे बहुत खुश थे. आज मुझे उन्हें किसी चीज को बताने या नियमों को लेकर बात करने की जरुरत नहीं पड़ रही थी.
आज वे स्वप्रेरित और स्वनिर्देशित थे. आज कहाँ अनुशासन की बात थी. आज तो वे खुद ही अपने कम में इतने मग्न थे कि वे अब अन्य विषयों की कक्षा में जाने को तैयार नहीं थी. वे बात करते और तरह तरह के तरीकों के जुगाड़ कर अपने काम को सबसे अच्छा करने की जुगत में लगे थे. ये काम करके हम सब खुश थे लेकिन इसका सबसे बड़ा फायदा ये दिखा कि उनमें अब उन पेड़-पौधों के प्रति एक हमदर्दी थी एक अपनापन दिख रहा था. शायद ही कभी उन्होंने फिर कभी इस तरह पेड़-पौधों को लेकर पहले की तरह की घटनाओं को अंजाम दिया हो. इस तरह के काम जिसमें सामूहिक भागीदारी हो वह बच्चों को एक दूसरे के और पास लाता है उनमें सहयोग की भावना जगाता है. कक्षा में इस तरह की सार्थक गतिविधि या काम बच्चों में मेलजोल या आपसी भाईचारे की भावना बच्चों में विकसित करने में सहायक होती है. इस तरह विकसित मूल्य स्थायी और दीर्घकालिक होते है. इसी तरह के मूल्यों और संवेदनशीलता को विकसित करने की अपेक्षा एक स्कूल है|