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प्राइमरी कक्षा में बच्चों के साथ संवाद के अवसर तलाशने पड़ेंगे|

9 अक्टूबर 2022

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??..ईवीएस कक्षा में बच्चों के साथ संवाद के अनुभव .....

“स्कुल में आने के शुरूआती समय में कुछ समय प्राइमरी कक्षाओं में बच्चों के साथ ईवीएस विषय में काम किया था. उन दिनों के मेरे अनुभव ये रहे थे कि प्राइमरी कक्षाओं में बच्चों के साथ किसी विषय पर संवाद करना और उसमें बच्चों की पूर्ण भागीदारी सुनिश्चित करना आसान तो नहीं है. इसमें एक शिक्षक के रूप में मेरे पूर्वाग्रह ये रहे थे कि संवाद में बच्चे जुड़ना पसंद नहीं करते और ना ही वे इसमें रूचि लेंगे. दूसरा संवाद या बातचीत के दौरान
बच्चों को मैनेज करना थोडा कठिन होता है. जिससे कक्षा की प्रक्रिया भी बाधित होती है. और कई बार तो बच्चे अपनी बात भी नहीं रखते. इस बार सोचा बच्चों के साथ हवा जैसे अमूर्त अवधारणा पर संवाद कर देखा जाए. बड़ी कक्षाओं में बच्चे इसके कई पहलुओं जैसे हवा का भार या प्रभावों पर बात रखने का प्रयास करते है. इसके लिए उदाहरण प्रस्तुत करना या प्रयोग सोच पाना उनके लिए संभव होता है.

काफी समय बाद एक बार कक्षा चौथी कक्षा के बच्चो के साथ संवाद करने का मौका मिला| मेरे कक्षा में प्रवेश करने पर देखा कि कुछ बच्चे अपना लिखित काम करने में लगे हुए थे और कुछ कक्षा में इधर-उधर घूम रहे थे. बच्चों को सीट पर बैठने के लिए कहा और जो बच्चे अपना काम कर रहे थे, उन्हें भी निर्देश दिए कि वे भी जल्दी से अपना काम से बंद कर लें. मेरी बात पर उन्होंने बेमन से अपना बंद कर दिया, हालांकि ऐसा करने में उन्होंने थोडा समय जरुर लिया वो भी तब जब बार-बार उन्हें बताना पडा कि आज कुछ ineteresting करने वाले है. पता नहीं कैसे वे इस बात के लिए आज राजी हो गए वरना वे उनकी कक्षा में कभी-कभार आने वाले शिक्षकों को पूरी तरह से स्वीकारते नहीं है. उन्हें लगता है कि कुछ लिखने-पढने जैसा ही काम दिया जाएगा या जो हम कर रहे है उसी को करने की इजाजत मिल जायेगी. एक बात ये भी है कि छोटी कक्षाओं के अधिकांश बच्चे काफी तल्लीनता के साथ
खाली समय में भी अपने काम में लगे हुए होते है चाहे वह कला का कार्य हो या किसी विषय का. कक्षा में जाने से पहले मन में काफी कुछ चल रहा था कि बच्चे तो सीरियसली सुनते ही नहीं और ये मेरे पुर्वानुभवों के आधार पर भी मुझे लग रहा था. पर आज जब वे बैठकर सुनने को तैयार हुए तो मैंने उनसे कहा कि हम आज कुछ बातचीत करेंगे और इसके लिए सभी को कक्षा के दो नियम जानने भी होंगे और मानने भी होंगे. पहला तो ये कि हम
बिलकुल आराम (relex) होकर शान्ति के साथ बैठेंगे कोई भी बच्चा अपनी सीट से बिना पूछे खडा नहीं उठेगा. और दूसरा हम सभी को कुछ ना कुछ अपनी बात रखनी होगी जिसके लिए सबको अपनी बारी का इन्तजार करना होगा और बोलने से पहले हाथ खडा कर इजाजत लेनी होगी. इतने में राहुल कक्षा में आया और उसे भी ये दोनों नियम बताये गए और वह सीट पर बैठ गया.  इतने तक तो ठीक ही था मतलब सुन रहे थे. इसलिए
भी कि आज ऐसा क्या करने जा रहे है. अब
आगे..... मैंने उनसे कहा कि तुम लोग बातें
तो बहुत करते हो चलो आज देखते है कि सोचते कितना हो?? फिर मैंने कहा कि मैं आपसे
कुछ प्रश्न करूँगा आपको सोचकर उनका जवाब देना है. उन्होंने कहा ठीक है पूछों...
मैंने उनसे पहला सवाल किया कि, हवा के
बारे में क्या-2 जानते हो? तो सबके हाथ खड़े हो गए.. बारी –बारी से बच्चों ने काफी जवाब
दिए, जैसे आस-पास हवा है, सांस लेते है, कमरे में है,  हर चीज में हवा है आदि ... अगला प्रश्न किया कि
हमें कैसे पता चलता है कि हवा है?? अब तो वे शुरू हो गए...उनके द्वारा दिए गए कुछ
जवाब इस तरह से थे-  जब हवा चलती है तो पेड़ और पतीयाँ हिलती है., धुल उडती है, हवा चलने पर हमें ठंडा लगता है. राहुल कहता है, देखों पंखा चल रहा है तो हवा आ रही है (हाथ से पंखें की ओर इशारा कर
बताने लगा), सूखने के लिए डाले हुए कपडे हिलते है, हमारी कॉपी का पन्ना उड़ता है
(दो-तीन बच्चे तो पंखे की हवा में कॉपी का पन्ना भी उड़ाकर दिखाने लगे) आदि....इसी प्रकार
के कई उदाहरण उन्होंने पेश किये..

मैंने कहा ये तो ठीक है पर ये बताओ जब ये सब नहीं होगा (हवा का गति-प्रभाव) तो क्या हवा का
पता नहीं कर सकते? वे थोडा सा असमंजस में थे, तो मैंने इसे अलग तरह से पूछने का
प्रयास किया? सामने पड़ी स्टील की गिलास उठाकर उन्हें दिखाया और गिलास को उल्टा- सीधा
और आड़े-तिरछे हर स्थिति में रखकर उनसे प्रश्न किया कि अब बताओं किस स्थिति में गिलास
में हवा होगी?... बहुत सारे एक लय में बोले, हवा सब में होगी चाहे गिलास को कैसे
भी रखों... मुझे मन ही मन समझ नहीं आ रहा था कि ये इतने यकीन से कैसे कहा सकते है.
क्योंकि इस बात को इतने आत्मविश्वास के साथ कह सकते है. मैंने पूछा कि क्या टॉपिक
आप लोगों ने पहले पढ़ा हुआ है. नही,- उन्होंने बताया. फिर मैंने उनसे पूछा कि अगर
गिलास में कुछ चीज रखे और गिलास को उल्टा कर दें तो वो चीज तो गिर जाती है. फिर
हवा क्यों नहीं बाहर निकल जाती है या गिर जाती है? इस बात का ज़वाब तो उनके पास
नहीं था. फिर वे थोडा चिढ़कर-झल्लाकर बोले, हमें पता है. ऐसा थोड़े ना होता है कुछ
तो सबूत देने होंगे ना,- मैंने कहा. वे फिर चुप. मैंने कहा चलो सब बच्चे सोचों
कैसे पता लगेगा जिससे हम किसी प्रूफ के साथ अपनी बात कह पायेंगे.

इतनी में बच्चा बोला देखों, अगर आप इस गिलास को पानी में बाल्टी में सीधे डालोगे तो गिलास
के अन्दर पानी नहीं जाएगा. इसी पर एक दो और बच्चों नें हांमी भरी. मैं कैसे
विश्वास कर लूँ- मैंने कहा. देव झल्लाकर बोला- मत करो तो कौन कह रहा है मुझे पता
है क्योंकि मैंने तो करके देखा है. मैंने कहा कि इससे कैसे पता चलेगा कि गिलास में
हवा है. तो बोला, जो गिलास में हवा है इसलिए पानी नहीं जाएगा. मैंने कहा कि इस
प्रयोग के लिए या तो कांच का गिलास चाहिए, अगर स्टील का हुआ तो कैसे इसे और सरल कर
सकते है? तो उनका जवाब नहीं आया तो मैंने ही उन्हें हिंट दी कि क्या गिलास में एक
कागज़ या कपड़े का टुकड़ा रख दें और फिर पानी में डूबाकर देंखें तो पता कर सकते है कि
पानी गिलास में घुसा की नहीं... उन्होंने कहा कि ठीक है.

कक्षा का समय पूरा हो गया था, तो यह उनकों घर से करने के लिए दे दिया. और मैं कक्षा से
बाहर आ गया, इसी के एक दो दिन बाद मैं लंच के लिए जा रहा तो तभी एक बच्चा सामने से
भागता हुआ चिल्लाया कि सर जो आपने कहा था वो मैंने घर पर करके देखा मेरा कपडा नहीं
भीगा.. और भाग गया. मेरे होंठों पर हंसी आ गयी.

- इस पुरे वाकये से मन में कई तरह के सवाल आने लगे
थे कि हम कई बार चीजों को यूँही मान बैठते है और इन्हीं पूर्वाग्रहों में रहते है और
उसी के सहारे आगे बड़ते है कुछ नया नहीं सोच पाते, कुछ नया नहीं कर पाते. और ये आग्रह
इतना मजबूत होता है कि हम कक्षाओं में संभावनाओं को तलाशने में विफल रहते है. और
हमारी आँखों के सामने हम सब होते हुए भी हम बहुत सीमित सोचते है. दूसरा यह कि
बच्चों के पास असीमित अनुभव है, बस जरुरत है उन्हें हमारी कक्षाओं में जोड़ने की.
और संवाद में बच्चों को ऐसे मौके मिलना जब वह इनकों उस अवधारणा से जोड़ पाए. जरुरी है
बच्चे किसी घटना या अवधारणा में “प्रभाव-कारण” (effect-cause) समझ पाए और उससे
अपने अनुभवों को जोड़ पाए.

- जरुरी बात ये भी है कि बच्चों से संवाद करने में
शिक्षक की समझ, कुशलता भी बहुत मायने रखती है. और इसके लिए स्वयं पर विश्वास और
आत्मविश्वास बहुत जरुरी है.

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रचनाएँ
बच्चों की स्कूली शिक्षा और बढ़ती चिंताएं
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यह संकलन उन अभिभावकों और माता-पिता के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध हो सकेगा जो अपने बच्चे की शिक्षा और उससे उनके जीवन-निर्माण से सम्बन्धित पहलुओं को लेकर चिंतित रहते है| जो अपने बच्चों की शिक्षा को लेकर यह निश्चय नहीं बना पा रहे है कि उनके बच्चे के लिए कैसी स्कूली शिक्षा बेहतर रहेगी, जबकि इस दौर में अधिकाँश स्कूली-सिस्टम एक व्यवसाय के तौर पर फल-फूल रहे है और शिक्षा के उद्देश्यों से उनका दूर तक कोई वास्ता नजर नहीं आता| दूसरा, आज के विज्ञान और तकनिकी के इस दौर में जब बच्चे के पास कम उम्र में ही बहुत एक्सपोजर है, जिसके कारण बच्चों के पास उनकी जिज्ञासाओं, उनके जीवन और उम्र की चुनौतियों को समझने और उन्हें सही रास्ता दिखाने के लिए अभिभावकों को कैसे तैयार होना है, क्या ध्यान रखना है| इन सभी बारीकियों को समझने में मदद मिल सकेगी| बच्चों के साथ स्कूली जीवन से जुड़े और वास्तविक काम के अनुभव को लिखकर संजोने का कार्य किया गया है| बच्चों के साथ कक्षा की विभिन्न प्रकार की चुनौतियों, उनके सीखने-समझने की कोशिशों-प्रयासों, और बच्चों को सीखने के विभिन्न अवसर दिए जाने के एक शिक्षक के प्रयासों को लिखकर साझा करने का प्रयास किया गया है| विभिन्न आयु-वर्ग के बच्चों की चुनौतियों और स्कूल द्वारा की गई पहल जो बच्चो और समुदाय को जागरूक करने एवं शिक्षित करने जैसे तमाम अनुभव इसमें आपको पढने को मिलेंगें| यह शौकिया तौर पर कई अवसरों या खाली समय पर लिखे गए पर्चों का संकलन है, जिसे इस उद्देश्य के साथ साझा किया जा रहा है ताकि इन जमीनी स्तर पर जुड़े वास्तविक अनुभवों से पाठक को एक शिक्षक और एक बच्चे के सीखने की यात्रा और इस कार्य में आने वाली चुनौतियों और उनके लिए खोजे गए रास्तों से सोचने-समझने की दिशा में एक नया आयाम मिलने की गुंजाइश होगी|

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