बात 1964 से 72 की है जब हम स्कूल में पढ़ते थे। तब हम सभी बच्चे बहुत सारे खेल खेलते थे जैसे कि 6 या 8 खाने खीचकर घर बनाने का खेल। जो की हम मिट्टी या गिट्टी से जमीन पर खीचकर खेलते थे। गिट्टी को पैर से खिसकाकर बाहर निकालना होता था या फिर गिट्टी को उठाकर खाने को फांद जाते थे। दूसरे खेल गेंद गुट्टे, गुटटी फोड़, गेंद ताड़ी, दीवार पर गेंद से टप्पे मार मारकर खेलना, छुआ छाई,स्टेचू, नीली पीली साड़ी, कोड़ा है जमाल शाही, चक चक छलनी, पोषम पार, रेड्डी आई छूम, कबड्डी, खो खो, बास्केटबॉल, वालीबॉल, बेडमिंटन, बेड बॉल, शतरंज, साँप सीढ़ी, व्यापार, केरम, ताश, कंचे, गिल्ली डंडा खेलना, पतंग उड़ाना और आइस पाईस खेलना, घरों में घुसकर भागा दौड़ी के खेल खेलना। घरो में घुस घुसकर झूला झूलते थे। चक्कन पे खेलते थे, जो जमीन पर चोक आदि से खाने बनाकर खेलते थे। टूटी चूड़ियाँ इकट्ठी करके चोक से गोला खींचकर गोले के अंदर डालते थे और एक चूड़ी का बड़ा टुकड़ा लेकर दो बच्चे मिलकर खेलते थे। बड़े टुकड़े से छोटे टुकड़ों को गोले से बाहर निकालना होता था। जिसकी ज्यादा चूड़ी निकलती थी वो ही जीतता था।
मेलों में से मिट्टी के खिलौने लाना। मिट्टी के चूल्हे चक्की लाकर खेलना। मिट्टी के शेर, कुत्ते, हाथी, कबूतर व खरगोश जिनकी पीठ पर लम्बा सा चीरा लगा होता था। जो गुल्लक का काम करते थे। बच्चे उसमें पैसे डालते थे। मिट्टी के ताशे जो चलाने या खीचने पर सीको से बजते थे। घूमाने वाला टिन का खिलौना जो टीर टीर की आवाज करता था। टिन या प्लास्टिक की दूरबीन आती थी जिसमें फोटो देखते थे। एक सहेली के यहाँ सफेद टिन का असली जैसा हवाई जहाज था जो कमरे में काफी ऊँचा उड़ता था।
पर्ची बनाकर चोर सिपाही का खेल खेलते थे। कॉपी या स्लेट पर खूब सारे गोले बनाते थे। फिर उनको दो बच्चे मिलकर गोलो को अपनी बारी आने पर जोड़ने का काम करते थे। एक बच्चा जो लाइन खाली होती थी उसको लाइन से जोड़ा जाता था। एक दीवाल या पन्नो पर छोटी छोटी लाइने छुपकर बनाई जाती थीं। उनको ढूढ़ कर काट दिया जाता था। उनको किल किल काँटे कहते थे। जिनको एक लम्बी लाइन से काटा जाता था। दूसरा खेल जिसमे दो लम्बी लाइन व दो आड़ी लाइन का खेल होता था। बीच मे एक गोला होता था। ये खेल गोले और क्रोस का निशान बनाकर खेला जाता था। जो कि एक सीध में गोले या क्रोस काटने होते थे। स्लेट या कॉपी पर मात्रा खिंची जाती थीं। दूसरा बच्चा अक्षर बोलता था जिससे कि पिक्चरों के नाम बनते थे।
रस्सी कूदना, ऊंची जगहों से कूदना, पेड़ो पर लटक कर झूलना, कागजो के जहाज बनाकर उड़ाना, नाव बनाकर तैराना, टिड्डी के पंख में धागा बांधकर उड़ाना,चिड़ियों को रँगकर उड़ाना, राम की गुड़िया (ये कीड़ा अब देखने को नहीं मिलता ये सनील की बिंदी जैसा लाल रंग का होता था) को इकठ्ठा करके खेलना। मेढ़क को हाथ में पकड़ पकड़ कर छोड़ना, मेढ़क की टांग में धागा बाँधकर खेलना,बिजली के कीड़े व ततैया के पीछे डण्डे लेकर दौड़ दौड़कर खेलना। कमरे में घुस आई उड़ती चमगादड़ को कपड़े से मार मारकर खेलना, छिपकली को छू छूकर दिवाल पर आगे भगाना, पेड़ो पर चढ़कर दूसरी डाल पर बैठना और लटक कर झूलना। छुट्टी के दिन छोटी साइकिल लाकर चलाना। जिसको अध्धा कहते थे। जो कि किराये पर 10 पैसे में 1 घंटे को मिलती थी। साइकिल के टायर को डंडी से मारकर चलाना। अंताक्षरी खेलना, पैरों के ऊपर पैर रखकर ऊँची कूद व लम्बी कूद खेलते थे। सिसो, सूट (फिसलन पट्टी) और चरखी पर झूला झूलते थे।