1962 की बात है जब हम नर्सरी क्लास में पढ़ते थे। और हमारी पढ़ाई कॉपी किताब या स्लेट बत्ती से नहीं होती थी। वहाँ पढ़ाई नाटक व कविताओं द्वारा होती थी। जैसे कि राम सीता के पाठ में एक बच्ची सीता और एक को राम बनते थे।
कविता में एक लड़की का नाम गुलाबी था। बच्चे एक घेरा बनाकर गाते थे। "गुलाबी एक लड़की थी धूप में बैठी रो रही थी, उठो सहेली उठो अपना मुँह धो लो, अपना साथी ढूंढ लो।" और वह गोले में से किसी एक लड़की को अपना साथी चुन लेती थी। इस तरह पढ़ाई के साथ साथ खेल भी हो जाते थे। बच्चों को मेढ़क दौड़ लगवाई जाती थी। और नाव वाले झूले, छोटी छोटी फुटबॉल होती थी। बच्चे तीन पहियों के रिक्शे चलाते थे। और सभी बच्चों को क्ले भी मिलता था। जिससे तोते, चिड़िया, खरबूजे, आम व बहुत सारी चीजें बनाकर दिखाई जाती थी। फिर बच्चे भी क्ले से चीजे बनाते थे।
बच्चों के एक जोड़ी ड्रेस, तौलिया, बर्तन, जमा होते थे। बच्चों के एक गद्दा, रजाई भी जमा होते थे। लंच लाइम में बच्चों को खाना खिलाया जाता था। खाने में किसी दिन हलुआ, पूड़ी सब्जी,फल, किसी दिन मेवा व दूध दिये जाते थे। बाद में बच्चों के मुँह हाथ नोकरानी से धुलवाकर दूसरी ड्रेस पहनाई जाती थी। फिर गद्दा रजाई बिछा कर बच्चों को आधे घंटे के लिए सुलाया जाता था।
बच्चों के स्वास्थ्य पर पूरा ध्यान दिया जाता था।
बरसात का दिन था। सब बच्चे नाव बनाकर पानी मे तेरा रहे थे। हमने भी किताब फाड़कर पूरी किताब की कई नावे बनाकर तैरा दी। जब मम्मी पढाने बैठी तो उन्होंने किताब माँगी जो एक दिन पहले ही दिलाई गई थी। फिर नाव की बात सुनकर मम्मी हँस पड़ी। स्कूल में हमारे पास एक 4 साल की लड़की बैठती थी जिसका नाम 'पापा' था। वह चश्मा लगती थी। एक दिन हमने उससे चश्मा माँगा तो उसने मना कर दिया और फिर हम दोनों की छीना झपटी में चश्मा टूट गया। वह मेरी सहेली थी और दोनों को ही समझ नहीं थी। अगले दिन वह नया चश्मा लगाकर आई।