बचपन में (1964-70) जब हम छोटे छोटे थे। उस समय हम गुड्डे गुड़िया खेलते थे। जो कि हमको बहुत अच्छा लगता। स्कूल से आकर और छुट्टी के दिन तो सारे दिन गुड्डे गुड़िया खेलते। उस समय हम पुराने कपड़ों से गुड़िया मम्मी से या बहन, बुआ, दादी, मौसी किसी से भी बनवा लेते। फिर सहेलियों के घर जाकर या अपने भाई बहनों के साथ या पड़ोस के बच्चों के साथ गुड्ढे गुड़िया खेलते फिरते थे। यह गुड़िया पुराने कपड़ो की लंबी पट्टी और छोटी पट्टी काटकर बनाई जाती थी। लंबी पट्टी को बट कर उसको दोहरा करते थे। थोड़ी दूर पर धजीर या छोटे पतले कपड़े को 1 इंच की दूरी पर बांध कर मुंह बनाते थे। उसके सर पर एक और कपड़े की डोरी पीछे की ओर बांधकर उसकी चोटी बनाते थे। दूसरे कपड़े को बट कर गर्दन के नीचे आडा करके लगाते थे। जिनको गुड़िया के हाथ कहते थे। गुड़िया की गर्दन में चौकोर कपड़ा छेद करके पहना दिया जाता था जिसको गुड़िया का ब्लाउज कहते थे। लंबी पट्टी को प्लेट लगाकर कमर में बाँध दिया जाता था जो गुड़िया की साड़ी होती थी। सर पर लगी लम्बी पट्टी से गुडिया की चोटी या जुडा बनाते थे। फिर गुड़िया के पेन से आँख नाक और मुँह बनाते थे और गुड़िया की मांग भी भरते थे तथा काजल बिन्दी व नाक में नथ पहनाते थे। गुड़िया को घाघरा चुनरी भी पहनाते थे। इसी तरह गुड्डे के कपड़े भी बनाते थे। एक चौकोर छोटे कपड़े के बीच में छेद करके गुड्डे को कुर्ता पहनाते थे। लम्बी पट्टी को बांधकर गुड्डे को लुंगी पहनाते थे। और गुड्डे को गुड़िया जयमाला पहनाती थी। गर्मियों में मेहमानों के बच्चे व मोहल्ले के बच्चे मिलकर गुड़िया की शादी करते थे। घर में जो कच्चा आँगन होता था उसमें गठ्ठा खोदकर पेड़ो से छोटी छोटी लकड़ी बीनकर जलाते थे। उसमे नमकीन चावल बनाते थे। गिलास में गुड़ घोलकर शर्बत बनाते थे। सब्जी और चावल बने बनाये मम्मी से ले लेते थे। गुड़िया की बारात की दावत करते थे। बारात आँगन में घूमती थी। और बच्चे थाली कटोरी को चम्मचों से बाजा बजाते हुए चलते थे। फिर सब इक्ठ्ठा होकर दावत खाते थे। इस तरह गुड़िया की शादी खूब नाच गाकर बनाई जाती थी। फिर गुड़िया अपनी ससुराल चली जाती थी।
हम गुड्डा गुड़ियों के घर भी बनाते थे। दोनों तरफ एक एक ईंट लगाकर या डिब्बा लगाकर ऊपर से किताब या तख्ती लगाकर छत बनाते थे। ऐसे उसके ऊपर एक एक ईंट लगाकर या बराबर में ईंट लगाकर ऊपर से किताब या गत्ता लगाकर छत बनाते थे। गुड्डे गुड़ियों के दो या तीन मंजिल के मकान बनाते थे। उन कमरों में गुड्डा गुड़ियों के बक्से जो कि माचिस के होते थे। उन मचिसो में नये नये कपड़े (कतरन) रखे जाते थे। और छोटे छोटे गुड्डा गुड़िया भी बनाते थे हम उनको गुड्डा गुडिया के बच्चे कहते थे। उनको भी अच्छे अच्छे कपड़े पहनाते थे। इस तरह हमारे पास खूब सारे गुड्डा गुड़िया और उनके बच्चे इकट्ठा हो जाते थे। मोहल्ले की लड़कियां भी अपने घरों से गुड्डे गुड़िया ले आती थी। खेलने के बाद गुड्डे गुड़ियों को अपने अपने घर वापस ले जाते थे। थोड़े बड़े होने पर उनके तीज त्योहार भी चलाये जाते थे। बचपन की गुड्डा गुड़िया की शादी का खेल बच्चों के लिए बहुत खुशी का खेल होता था जो कि niबहुत अच्छा लगता था।