घुट -घुट के जे रही है हमारी बेटिया !
जीते जी मर रही है ये हमारी बेटिया
क्या हगा राम जाने ये मशीन क्या चली ।
मरती है कोख में ही ये हमारी बेटिया
बचपन में बेटीओ के पीले हाथ कर रहे ।
घुंघट में घुट रही है ये हमारी बेटिया
न लाड न प्यार है न देखभाल है ।
मरती है बेइलाज ये हमारी बेटिया
लेकिन समय बदल रहा है ,आज देश में ।
पढ़ लिख कर बढ़ रही ये हमारी बेटिया
अब बेटियो के होंसले काफी बुलंद है"
छूती है आसमां को ये हमारी बेटिया ।