अपनी बात असरदार तरीके से कह पाने के लिए आपको साफ-साफ बोलना होगा। क्योंकि अगर आपके शब्द समझ में नहीं आएँगे, तो भले ही आपकी जानकारी कितनी ही दिलचस्प या ज़रूरी क्यों न हो, लोगों के कुछ पल्ले नहीं पड़ेगा।
जो बात लोगों को समझ ही न आए, उससे प्रेरित होने का सवाल ही नहीं उठता। एक इंसान की आवाज़ में भले ही कितना दम क्यों न हो और उसकी आवाज़ आसानी से क्यों न सुनायी देती हो, अगर वह साफ-साफ नहीं बोलेगा, तो लोगों को कदम उठाने के लिए जोश नहीं दिला सकेगा। उन्हें ऐसा लगेगा मानो वह कोई विदेशी भाषा में बात कर रहा हो, जो उनकी समझ के बाहर है। बाइबल हमें याद दिलाती है: “यदि बिगुल से अस्पष्ट ध्वनि निकलने लगे तो फिर युद्ध के लिये तैयार कौन होगा? इसी प्रकार किसी दूसरे की भाषा में जब तक कि तुम साफ-साफ न बोलो, तब तक कोई कैसे समझ पायेगा कि तुमने क्या कहा है। क्योंकि ऐसे में तुम तो बस हवा में बोलने वाले ही रह जाओगे।”— ईज़ी-टू-रीड वर्शन।
बोली के साफ न होने की वजह क्या हो सकती है? एक वजह हो सकती है, ठीक से मुँह खोलकर बात न करना। अगर जबड़ों की पेशियाँ तनी होंगी और होंठ ज़रा-सा ही हिलेंगे, तो आवाज़ भी दबी-दबी-सी निकलेगी।
तेज़ रफ्तार में बात करना भी, साफ बोली में बाधा बन सकता है। जब रिकॉर्ड प्लेयर को हद-से-ज़्यादा तेज़ रफ्तार में चलाया जाता है, तब जैसी आवाज़ निकलती है, तेज़ रफ्तार में बात करना वैसा ही है। इसमें हर शब्द कहा तो जाता है, मगर इसका कोई फायदा नहीं, क्योंकि लोगों को कुछ समझ नहीं आता।
कुछ मामलों में, बोलने के अंगों की खामियों की वजह से लोग साफ लफ्ज़ों में बात नहीं कर पाते। ऐसी समस्या होने पर भी इस अध्याय में दिए सुझावों से काफी सुधार किया जा सकता है।
लेकिन अकसर साफ बोली न होने की वजह होती है, बिना रुके शब्दों को एक-के-बाद-एक बोलते जाना। इस तरह की बोली को समझने में काफी परेशानी होती है। समस्या यह होती है कि बोलते वक्त शब्दों के कुछ भागों और बीच के अक्षरों को या तो छोड़ दिया जाता है या शब्दों के आखिरी अक्षरों को पढ़ा नहीं जाता। जब कोई बिना सोचे-समझे शब्द बोलता जाता है, तो सुननेवाले बड़ी मुश्किल से कुछ-कुछ विचार या वाक्य समझ तो लेते हैं, मगर बाकी की जानकारी के बारे में उन्हें अंदाज़ा लगाना पड़ता है। जो लफ्ज़ों को साफ-साफ नहीं बोल पाता, वह असरदार तरीके से नहीं सिखा सकता।
साफ-साफ कैसे बोलें। शब्द साफ-साफ बोलने के लिए सबसे पहले आपको अपनी भाषा में शब्दों की बनावट को अच्छी तरह समझना चाहिए। ज़्यादातर भाषाओं में शब्द, सिलेबल्स से बने होते हैं। एक सिलेबल में, एक या एक-से-ज़्यादा अक्षर हो सकते हैं। ये अक्षर अपने आप में पूरे होते हैं और इन्हें एक ही स्वर में बोला जाता है। ऐसी भाषाओं में, आम तौर पर बात करते वक्त हर सिलेबल बोला जाता है, मगर उन पर एक-सा ज़ोर नहीं दिया जाता। अगर आप साफ बोलने में सुधार करना चाहते हैं, तो धीरे-धीरे बोलिए और हरेक सिलेबल बोलने की पूरी कोशिश कीजिए। शुरू-शुरू में लग सकता है कि आप कुछ ज़्यादा ही स्पष्ट बोल रहे हैं, लेकिन जब आप अभ्यास करेंगे, तो धीरे-धीरे आप एक लय के साथ बोल सकेंगे। इसमें कोई शक नहीं कि बोली में प्रवाह लाने के लिए आपको कई शब्दों को मिलाकर बोलना पड़ेगा, लेकिन ऐसा तब नहीं किया जाना चाहिए जब शब्दों का मतलब अस्पष्ट होने का खतरा हो।
ध्यान दीजिए: साफ-साफ बोलने के लिए आप शायद हर शब्द को ज़्यादा ही स्पष्ट बोलने और पढ़ने का अभ्यास करें। लेकिन आम बातचीत में इसी अंदाज़ से बात करने की आदत मत डालिए, नहीं तो आपकी बातचीत सुनने में अटपटी और बनावटी लगेगी।
अगर आपकी आवाज़ दबी-दबी सी है तो फिर, सिर उठाइए और ठुड्डी को छाती से दूर रखकर बात करना सीखिए। जब आप बाइबल से पढ़ रहे हों, तो बाइबल को इतना ऊपर उठाकर पकड़िए कि सुननेवालों के साथ नज़र मिलाकर बात करने के बाद दोबारा उसे देखने के लिए आपको अपनी आँखें सिर्फ हल्की-सी नीची करनी पड़ें। इस तरह शब्द खुलकर आपके गले से निकल पाएँगे।
तनाव को कम करना सीखिए, इससे भी आपकी बोली सुधर सकती है। यह एक जानी-मानी बात है कि चेहरे, साँस लेने-छोड़ने पर काबू करनेवाली पेशियाँ कसी होने से बोलने के अंगों पर बुरा असर पड़ता है। आपके दिमाग, बोलने के अंगों और साँस चलने के बीच तालमेल का होना बेहद ज़रूरी है, तभी वे आराम और सहजता से काम कर पाएँगे।
जबड़े की पेशियाँ तनाव-मुक्त होनी चाहिए, तभी वे दिमाग से मिले संदेश पर तुरंत अमल कर पाएँगी। होंठ भी तनाव-मुक्त होने चाहिए यानी उन्हें फैलने और सिकुड़ने के लिए तैयार रहना चाहिए ताकि मुँह और गले में पैदा होनेवाले अलग-अलग स्वरों को होंठ, शब्दों का रूप दे सकें। अगर जबड़े और होंठ, दोनों कसे रहेंगे, तो मुँह ठीक से नहीं खुल पाएगा और आवाज़ ज़बरदस्ती दाँतों के बीच से निकलेगी। इसका नतीजा यह होगा कि हमारी बातें सुनने में रूखी और बेजान लगेंगी और साफ समझ नहीं आएँगी। लेकिन जबड़े और होठों से तनाव दूर करने का मतलब यह नहीं कि हम शब्दों को बोलने में लापरवाह हो जाएँ। इसके बजाय हमें अच्छी तरह स्वर निकालने की आदत डालनी चाहिए ताकि हम शब्द साफ-साफ बोल सकें।
अगर आप जानना चाहते हैं कि आप शब्द साफ-साफ बोल पा रहे हैं या नहीं, तो इसके लिए खुद को ज़ोर से पढ़ते हुए सुनें। गौर करें कि आप बोलने के अनोखे अंगों का कैसे इस्तेमाल कर रहे हैं। क्या आप अपना मुँह ठीक से खोल रहे हैं जिससे कि आपकी आवाज़ बिना रुकावट के निकल सके? हालाँकि बात करने में हमारी जीभ सबसे ज़्यादा काम करती है, मगर याद रहे कि बोलने में दूसरे अंग भी इस्तेमाल होते हैं। जैसे गर्दन, नीचे का जबड़ा, होंठ, चेहरे और गले की पेशियाँ, ये सारे अंग भी बात करने में हमारी मदद करते हैं। बात करते वक्त क्या आपके चेहरे की पेशियों में कोई हरकत नहीं होती? अगर ऐसा है, तो आपकी बोली साफ न होने की ज़्यादा संभावना है।
अगर आपके पास टेप रिकॉर्डर है, तो आप घर-घर के प्रचार में जिस स्वाभाविक लहज़े में बात करते हैं, उसी लहज़े में कई मिनट की बातचीत रिकॉर्ड कीजिए। उसके बाद उस रिकॉर्डिंग को सुनिए, इससे आप पता लगा पाएँगे कि ठीक कहाँ-कहाँ और किन शब्दों को आप सही से बोल नहीं पाते हैं। ऐसी जगहों पर ध्यान दीजिए जहाँ आपने कई शब्दों को मिला दिया हो, या दबी-दबी आवाज़ में कहा हो, या शब्दों को खा गए हों। और इसकी वजह जानने की कोशिश कीजिए। आम तौर पर, ऊपर बताए गए सुझावों को अमल में लाने से इन कमज़ोरियों को दूर किया जा सकता है।
क्या आपकी बोली में दोष है? अगर हाँ, तो मुँह को पहले से ज़्यादा खोलकर बात करने का अभ्यास कीजिए, साथ ही शब्दों को साफ-साफ बोलने पर और भी ध्यान दीजिए। साँस लेते वक्त अपने फेफड़ों में हवा भर लीजिए और धीरे-धीरे बात कीजिए। इस तरीके को अपनाकर, कई लोगों ने जिनकी बोली में दोष है, साफ बोलने में काफी सुधार किया है। अगर आप तुतलाकर बात करते हैं, तो शब्दों में स और ज़ के स्वर बोलते वक्त जीभ को सामने के दाँतों से हटाकर बोलिए। हो सकता है कि आपकी समस्या पूरी तरह दूर न हो, मगर मायूस मत होइए। मूसा को याद कीजिए। शायद मूसा की बोली में दोष था, फिर भी यहोवा ने उसे इस्राएल जाति और मिस्र के फिरौन को ज़रूरी पैगाम सुनाने के लिए चुना।