नेपाल ऐसा बिचित्र देश शायद ही दुनिया में मिले I ये ऐसा देश है जहा अधूरा संबिधान बनाने के लिए नजाने कितने सुपरफास्ट ट्रैक पकरने के लिए यहाँ के प्रमुख चार दल के शीर्ष नेता लोग तैयार है लेकिन यहाँ के सर्बोच न्यायाल के द्वारा जारी किया गया (सीमांकन और नामांकन बिना के संघ के सम्बन्ध में) अंतरिम आदेश को मानने के लिए कोई भी प्रमुख चार दल के शीर्ष नेता लोग तयार नहीं है I
क्यू की इन प्रमुख चार दल के नेताओ को संबिधान और देश की चिंता नहीं है, इन्हे चिंता है तो केवल इस भूकंप के नाम पे राष्ट्रीय और अंतरास्ट्रीय दाताओ से आ रहे राहत के नाम पे भिखो का बटवारा करना है I अब देखिये जो माओवादी संघियता, पहचान और अधिकार के एजेंडा को लेकर मधेशीयों के साथ मिलकर लड़ रहा था, अचानक इतना बड़ा त्याग उनमे कहा से आ गया खाश कर के बाबुराम भट्टराई में I वो उन दिनों प्रचण्डं से ज्यादा हार्डनर नजर आ रहे थे अचानक इंतनी परिवर्तन क्यू हो गया उनमे इन सब के पीछे केवल स्वार्थ छुपा हुवा है I चारो प्रमुख दल के शीर्ष नेताओ का अपना अपना स्वार्थ है, पहले एमाले और माओवादी ने मिलकर सरकार परिवर्तन करना चाहा लेकिन अपने शुशील जी तो निकल गए जिद्दी वे बिना संबिधान के सरकार छोड़ने के तयार नहीं हुवे, फिर क्या था लगे हात उनलोगो ने किसी तरह का अधूरा ही सही संबिधान निर्माण के प्रक्रिया को आगे बढ़ाने की ठान ली I अब उसमे अधूरे संबिधान निर्माण के प्रक्रिया में बाबुराम के बिना प्रचंड एक कदम भी नहीं चल सकता क्यू की प्रचंड को भी पार्टी फूटने का दर था इसलिए उन चार दलों ने समीकरण इस तरह का बनाना चाहा ,,, केपी ओली को प्रधानमंत्री, प्रचंड राष्ट्रपति, गछदार को उपराष्ट्रपति और बाबुराम को पुन: निर्माण प्राधिकरण का उपाध्यक्ष कांग्रेस को गृह और शभामुख दे दिया जाए ........... लेकिन संयोग देखिये कांग्रेस के देउवा अलग ही सोच है वो सोचता है कितना भी फ़ास्ट ट्रैक पे चले जाए संबिधान बनते बनते दो तीन महीना लग है जायेंगे तब तक कांग्रेस का महाधिवेशन से नेतृत्वा परिवर्तन होते हि सारे के सारे समझौते ख़ारिज हो जायेंगे और उनका प्रधान मंत्री का रास्ता साफ़ हो जायेगा I शुशील जी सोचते है अगर महाधिवेशन तक संबिधान नहीं बनता है तो नेतृत्वा अपने पास हि रह जाएगा और केपी ओली प्रधानमंत्री बनाकर खुद राष्ट्रपति बन जाये साथ में पार्टी का कार्यवाहक शभापति भी अपने पैनल के रामचन्द्र पौडेल को बना दिया जायेगा I उधर एमाले में झलनाथ खनाल और माधव नेपाल अपने हि तरह से कुछ और हि सोचते है, वे दोनों भी राष्ट्रपति के दौड़ में शामिल है I वे दोनों माओवादी और कांग्रेस दोनों को खुश करके चल रहे है ताकि को अपना भी एक्का लग जाये I प्रचंड को देखिय वो वेचारा कितना वारा दुभिदा में फसा हुवा है अगर संबिधान बन जाता है तो राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का भी परिवर्तन होगा लेकिन उसका पदयावधि बहुत छोटे समय के लिए होगा अगर वे एकवार छोटे समय के लिए राष्ट्रपति बन जाते है तो तो भविस्य से उनका राजनीती करियर हि समप्ता हो जायेगा I अगर बाबुराम को पुन: निर्माण समिति के उपाध्यक्ष बना दिया जाये वो भी बिना अंकुश के तो वो प्रचंड पे भरी पर जायेंगे साथ हि केपी ओली को भी ये डर लगने लगा की अगर भट्टराई को प्राधिकरण के पावर दे दिया जाए तो ये उनके हि भविस्य के सरकार के समानांतर जैसा ब्यवहार कर सकता है I और उनकी अपनी हि छवि ओझल में पर सकती है I इसलिए प्रचण्डं और केपी ओली के सहमति में पुन: निर्माण प्राधिकरण के अध्यक्ष के रूप में प्रधान मंत्री को हि ंबना दिया गया I जिस प्राधिकरण के उपाधयक्ष बनने के के लिए अपने व्यक्तित्व को हि त्याग दिया उस भट्टराई के सपने को प्रचंड और केपी ओली ने अपने भविष्य के डर से तोड़ दिया I
खैर जिन नेताओ में इतने स्वार्थ भरे परे है वो हरामियो संबिधान क्या बनाएगा अगर इन चार लोगो द्वारा संबिधान बन भी जाये तो कितने हद तक लागु होगा ये देखना बाकी है I