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भुतहा किला

डॉ. रंजना वर्मा

24 अध्याय
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6 पाठक
31 मार्च 2022 को पूर्ण की गई
ISBN : 0

एक ऐसा किला जिसमें बहुत प्रेतों का निवास माना जाता है । रात्रि तो क्या दिन के समय भी लोग उस ओर जाने का साहस नहीं कर पाते । किले पर खड़ी सुंदरी जो देखते ही देखते गायब हो जाती है । किले से उठती रक्त जमा देने वाली भयंकर चीख जो सहज ही भयभीत कर देती है । क्या रहस्य था उस किले का ? क्या सचमुच वह भूतों का आवास था ? त्रिस्तरीय सिक्योरिटी से देश की सुरक्षा से जुड़ी फ़ाइल कैसे गायब हो गयी ? प्रोफ़ेसर की पत्नी क्या सचमुच मर कर जी उठी थी ? जासूस पवन ने कैसे इन प्रश्नों का हल ढूँढ़ा ? अपनी इन सभी जिज्ञासाओं के समाधान के लिये पढ़िये रहस्य और रोमांच से भरपूर डॉ. रंजना वर्मा का उपन्यास - 'भुतहा किला'। 

bhutaha kila

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डॉ. रंजना वर्मा की अन्य किताबें

पुस्तक के भाग

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भुतहा किला (भाग 1)

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रात का समय और सन्नाटा । गहन अंधकार चारों ओर छाया हुआ था । वातावरण में निस्तब्धता थी । समुद्र की लहरें अपेक्षाकृत शांत दिख रही थीं । रात के ग्यारह बज चुके थे ।    एक स्टीमर किनारे से लगभग चार किलोमीटर

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भाग 2

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पता नहीं कितनी देर बेहोश रहा वह । जब उसकी आंख खुली तो कमरे में दिन का उजाला फैला हुआ था । धूल से अंटी टूटी फूटी फर्श पर वह मुंह के बल पड़ा था । पूरा कमरा धूल और कूड़े से भरा था । दीवारों पर जाले लटक र

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भाग 3

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जब पवन अपनी स्टीमर पर पहुंचा शाम का धुंधलका फैलने लगा था । सदा की ही भांति उसने स्टीमर को चट्टान से अलग किया और स्टार्ट करके समुद्र की ओर चला गया ।  वह दो चट्टानों के बीच से होता हुआ जब खुले समुद्र म

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भाग 4

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आंखें खोलने पर उसने स्वयं को उसी सूखे तालाब के पास पड़ा पाया । तालाब सूखा हुआ था और उसकी तली में कीचड़ दिखाई दे रही थी । दिन निकले देर हो चुकी थी । सूरज की चढ़ती धूप में अब गर्मी सम्मिलित हो गई थी ।

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भाग 5

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जब पवन की नींद टूटी तब तक खूब दिन चढ़ आया था । दिन के ग्यारह बजने वाले थे । बस्ती के सभी मछुआरे नावें लेकर मछली पकड़ने जा चुके थे । स्त्रियां बाजार गयी थीं और केवल बूढ़े और बच्चे ही बस्ती में बच रहे थ

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भाग 6

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पवन ने जब अपनी मोटरसाइकिल ले जाकर प्रोफेसर प्रभाकर के कंपाउंड में खड़ी की उसकी घड़ी उस समय रात के ठीक आठ बजा रही थी । मोटरसाइकिल से उतर कर वह बाहरी बरामदे में चढ़ा और कालबेल की बटन पर उंगली रख दी ।

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भाग 7

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सीढियाँ समाप्त करके वे जैसे ही नीचे आंगन की ओर पहुँचे उनके रोम-रोम सिहर उठे ।  आंगन का दृश्य रक्त जमा देने वाला था । विशाल आंगन में इस समय चार नर कंकाल पूरे जोशो खरोश के साथ नाच रहे थे ।  नाचते हुए

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भाग 8

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पवन की आंखें खुली तो उसने स्वयं को एक छोटे किंतु हवादार कमरे में पाया । कमरे की दीवारें छत तथा खिड़कियां और दरवाजे भी सफेद रंग से पेंट किए हुए थे । जिस पलंग पर वह लेटा था वह सफेद पेंट से पुता हुआ था

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भाग 9

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पवन ने अपनी रेडियम डायल वाली रिस्टवॉच में समय देखा । साढ़े सात बजे हुए थे । इस समय वह उसी रहस्यमयी किले के एक कमरे में कोने में बैठा हुआ था ।  कमरा धूल और मकड़ी के जालों से अटा पड़ा था । कमरा पूरी तरह

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भाग 10

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फ्लैट पर पहुंच कर उसने ताला खोला और बैग एक कोने में डाल कर सीधा बाथरूम में घुस गया । कपड़े उतार कर उसमें शावर खोल दिया । पानी की ठंडी ठंडी फुहार ने उसकी थकान को पल भर में ही दूर कर दिया । देर तक वह फ

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भाग 11

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होटल दिलबहार भोजन से निवृत्त होकर पवन ने काफी का ऑर्डर दे दिया था और अब आराम से सिगरेट के कश लेता हुआ कॉपी सिप कर रहा था । जब भी उसका मस्तिष्क उलझन में होता था वह सिगरेट के साथ काफी लिया करता था और इस

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भाग 12

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ट्रिन ट्रिन । ट्रिन ट्रिन । ट्रिन ट्रिन ट्रिन ट्रिन । लगातार बजती टेलीफोन की घंटी ने उसे नींद से जगा दिया । आंखें मलते हुए उसने घड़ी की ओर देखा । अभी रात के ढाई बजे थे । "कौन आ मरा इस बेवक्त ?" पव

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भाग 13

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सुबह के साढ़े छै बजे थे जब उसकी नींद अचानक ही उचट गई । हालांकि वह रात तीन बजे के लगभग सोया था फिर भी यह उसकी संकल्प शक्ति का ही प्रभाव था जो सुबह ठीक साढ़े छै बजे वह जग गया । उसने सुबह के सात बजे प्रोफ

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भाग 14

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तीसरा दिन ... प्रोफेसर प्रभाकर के बंगले में रहते पवन को आज तीसरा दिन था । सुबह की चाय के साथ रहमान ने उस दिन के प्रमुख समाचार पत्र लाकर मेज पर रख दिए थे । चाय का प्याला उठाते हुए पवन ने अखबार उठा लि

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भाग 15

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वह एक छोटा सा हालनुमा कमरा था जिसके मध्य एक लंबी अंडाकार मेज रखी थी । मेज पर अत्यंत सुंदर हल्के पीले रंग का मेजपोश बिछा था जिस पर छोटे छोटे फूलों के गुच्छे रंगीन धागों से कढ़े हुए थे । मेज के बीच एक पी

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भाग 16

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बिस्तर पर लेट कर वह फिर उसी समस्या में डूब गया । वह सोचने लगा - क्या वह फाइल देश से बाहर चली गई होगी ? नहीं, इतनी जल्दी यह संभव नहीं लगता किंतु इस संभावना से इनकार भी नहीं किया जा सकता । पता नहीं व

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भाग 17

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दूसरे दिन सुबह उठ कर वह नित्य कर्म से निवृत्त होकर सीधे प्रोफ़ेसर की कोठी पर जा पहुंचा । "अरे पवन ! बहुत सही समय पर आए । आओ, नाश्ता तैयार है ।" प्रोफेसर ने मुस्कुराते हुए उसका स्वागत किया । "इसीलिए

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भाग 18

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वह रात अंधेरी थी । शायद नवमी की रात । अंधेरा पक्ष और दूर तक फैला सन्नाटा । उस अंधेरे में समुद्र तट पर स्थित चट्टानें किन्हीं भयंकर दैत्यों की सेना के समान प्रतीत हो रही थीं । पवन उस समय काले वस्त्रों

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भाग 19

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सुबह पाँच बजे ही पवन में बिस्तर छोड़ दिया । तब तक प्रोफ़ेसर प्रभाकर भी उठ चुके थे ।  चाय की टेबल पर पवन ने पूछा - "कैसी है वह ?" "अब बेहतर है । बहुत भूखी प्यासी रही है इसलिए कमजोर हो गई थी । कल रा

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भाग 20

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अंधेरी पुरानी सुरंग जैसे रास्ते में पवन आगे बढ़ रहा था । उस समय उसका संपूर्ण शरीर सतर्कता की प्रतिमूर्ति बना हुआ था । अंशुल से उसने पहले से ही उस गुप्त मार्ग के विषय में पूरी जानकारी ले ली थी और अब उस

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भाग 21

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दूसरे दिन .... पवन उस दिन सुबह आठ बजे ही कमिश्नर साहब के घर पहुंच गया । गृह मंत्री द्वारा दिया गया आज्ञापत्र उसे कभी भी किसी भी अधिकारी से मिलने और उसका सहयोग प्राप्त करने के लिए पर्याप्त था ।  कमिश

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भाग 22

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रात गहरा गई थी । घड़ी की बड़ी सुई बारह के आगे बढ़ गई थी जबकि छोटी सुई बारह तक पहुंचने की कश्मकश में थी ।  बाहर यद्यपि तारों का प्रकाश था किंतु वह इतना ही था कि वृक्ष, इमारतें आदि साये के रूप में ही नज

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भाग 23

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दूसरे दिन  फोन की लगातार बजती घंटी में पवन को नींद से जगा दिया । लेटे ही लेटे उसने स्पीकर कान से लगा कर कहा - "हेलो !" "मैं कमिश्नर बोल रहा हूँ ।" दूसरी ओर से अधिकार पूर्ण स्वर में कहा गया । "जी,

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भाग 24

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उसके बाद घटनाक्रम तेजी से बदला । दो दिनों की असीम व्यस्तता और भागदौड़ के बाद पवन, प्रोफेसर प्रभाकर, गृह मंत्री तथा अंशुल गृह मंत्री महोदय के कक्ष में उपस्थित थे । "धन्यवाद पवन जी ! गर्व है हमें आप पर

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