पापा की कवितायेँ
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शारदे वर दे,कर कल्याण, देश जाति धर्म हित सेवा, कर दें जीवन दान, शारदे वर दे,कर कल्याण,। तिमिर निशा में दीप जल कर, पथ गामी बन राह दिखावें, निर्बल मन को सबल बनाकर, भर दें जीवन प्रान, श
जो फला यहाँ पर, झरा यहाँ। जो फूला है मुरझाया है जो आया है, वह जायंे जब , आँसू बरसाना ठीक नहीं। ये रिश्ते नाते दुनिया के , बनते है रोज़ बिगडते हैं। जब हाथ किसी का थाम लिया, तो बाँह छुडाना ठीक
गुलशन की बहारों में इक आग लगा दी है। खुद अपनी हक़कित को दुनिया को जता दो, दिल समझा मुलायम था, निकला है संगदिल वो डायर को जगाया है, ज़ालिम ने बला दी है।