**जीवन: शतरंज की बिसात पर ईश्वर की चाल** जीवन वास्तव में शतरंज के खेल जैसा ही है। हम हर चाल को अपनी योजना के अनुसार चलने की कोशिश करते हैं, यह सोचते हुए कि जीत हमारी मुट्ठी में है। हमें ऐसा लगता है कि हमारी मेहनत, हमारी समझ और हमारे निर्णय ही सब कुछ तय करेंगे। लेकिन तभी, अचानक, ईश्वर अपनी अगली चाल चल देते हैं। और हमें लगता है कि सब कुछ हाथ से फिसल गया, मानो हमारी सारी कोशिशें व्यर्थ हो गईं। परन्तु, यह सही नहीं है कि हमारी हार से ईश्वर प्रसन्न होते हैं। दरअसल, हमारी हार एक नई दृष्टि देती है, एक नई उम्मीद जगाती है। ईश्वर हमें न पूरी तरह हारने देते हैं, न ही तुरंत जीतने। यह दोनों ही स्थितियाँ हमें जीवन के संघर्षों के लिए तैयार करती हैं। हर जीत और हर हार के बीच जो संघर्ष है, वही हमें मज़बूत बनाता है, हमें अपने वास्तविक उद्देश्य और अपनी सीमाओं से परिचित कराता है। जीवन का यह खेल हमें धैर्य सिखाता है। हारने पर हमें लगता है कि सब कुछ खत्म हो गया है, लेकिन यदि हम ईश्वर पर आस्था बनाए रखें और सही समय की प्रतीक्षा करें, तो वह हमें ऐसा रास्ता दिखाते हैं जो हमने सोचा भी नहीं होता। जीवन की यह यात्रा हमें बताती है कि केवल हमारे प्रयास ही नहीं, बल्कि ईश्वर का समय और उनकी योजना भी महत्वपूर्ण हैं। जीवन की आपाधापी में कभी कल्पनाओं के सागर में डूबने का मौका नहीं मिला। हमेशा असलियत की ठोस ज़मीन पर कदम रखने पड़े। एक घटना ने ऐसा झकझोरा कि मन को शब्दों में ढालने के लिए मजबूर कर दिया। असल में, दुनिया वास्तविक घटनाओं से भरी पड़ी है, जहां हर किसी की अपनी कहानी है, अपने अनुभव हैं। मैं कोई लेखक नहीं हूँ, परन्तु अनुभव बाँटने की एक सच्ची चाहत है। जो भी लिखा है, वह केवल शब्दों का खेल नहीं, बल्कि जीते हुए जीवन के अनुभवों का निचोड़ है। जीवन में कई बार ऐसा होता है जब हमें लगने लगता है कि हम हार गए हैं, कि अब कुछ भी ठीक नहीं हो सकता। लेकिन जब हम हार को स्वीकार करते हैं और ईश्वर पर भरोसा रखते हैं, तब हमें यह एहसास होता है कि हर हार एक नयी शुरुआत का हिस्सा होती है। ईश्वर की योजना हमेशा हमारे भले के लिए होती है, भले ही वह हमें पहले दिखाई न दे।