शेष विश्व से अलग एक द्वीप जैसे गाँव में मेरा जन्म हुआ था जहाँ से शहर आना जाना अत्यंत ही कठिन था। वर्षा ऋतु में तो यह असंभव ही हो जाता था। लोगों के कन्धों पर डोली पर बैठ ही संभव हो पाता था। घोड़ा, बैलगाड़ी अथवा पैदल ही चार कोस अर्थात लगभग तेरह किलोमीटर जंगलों और खेतों के मध्य से होते हुए फैजाबाद से आमघाट मार्ग तक पहुँचना होता था। यह आमघाट गोमती नदी के इस किनारे पर था और नदी पर पुल न होने के कारण जो एक्का दुक्का बसें चलती थीं, वहीं तक जाती थीं और उनके लौटने की प्रतीक्षा कभी कभी घंटों करनी पड़ जाती थी। यदि किसी के पास बाइसिकिल हुई तो सूखे मौसम में उसका सहारा मिल जाता था। जंगल में भैंसे, सांड़ और भेड़ियों का भी भय बना रहता था। मेरा गाँव जनपद के सबसे पिछड़े क्षेत्र में स्थित माना जाता था। बताते हैं जब मैं कुछ माह का हुआ तो मम्मी जी मेरे सहित फैजाबाद आ गयी थीं क्योंकि पापा जी यहीं सर्विस कर रहे थे और उनके छोटे भाई लोग अपनी पढ़ाई। धीरे धीरे मैं बड़ा होता गया और फिर उच्च शिक्षा के लिए यह स्थान जब छूटा तो फिर स्थायी तौर पर यहाँ निवास का समय कभी नहीं आया। विभिन्न स्थानों पर शिक्षा ग्रहण कर जब मैं सुलतानपुर आया तो पूरी सर्विस वहीं व्यतीत कर अवकाश प्राप्त कर अंत में निवास करने सपरिवार लखनऊ आ गया। यदि मैं अपने अतीत पर दृष्टि डालूँ तो ईश्वर की कृपा से मेरा जीवन पारिवारिक दायित्वों का निर्वाह और यथोचित पुरुषार्थ करते हुए सुख समृद्धि के साथ व्यतीत हुआ है जिसके लिए मैं ईश्वर का बारम्बार आभार व्यक्त करता हूँ। यह पुस्तक मेरे अनुभवों और सत्य घटनाओं पर आधारित संकलित संस्मरणों का लेखन है और किसी की भावनाओं को ठेस पहुँचाने का कोई मन्तव्य नहीं है। व्यक्तिगत निजता प्रभावित न हो इसलिए पात्रों व स्थानों के नाम परिवर्तित हैं । © 2024 सोमेश कुमार ।
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