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किन लफ्जों में लिखूँ मै अपने इन्तजार को तुम्हे,बेजुबां हैं इश्क़ मेरा और ढूँढता हैं खामोशी से तुझे.आज अल्फ़ाज नहीँ मिल रहे साहेब ...."दर्द" लिख दिया है...महसूस कीजियेगा !!
ढाई महीने बाद बीजेपी-पीडीपी का समझौता हो गया है।महबूबा कोई भी हो, मानने में वक्त तो लेती ही है।