बंगाली राजनीतिक हिंसा
पद और कुर्सी पाने की, कैसी गंदी सरदारी है।
देश की सेवा करते लोग, या देश से करते गद्दारी है।।
लोकतंत्र की गर्दन पर , छुरी रखी है दुश्मन की ।
स्वार्थ सिद्ध करने में, कर रहे हत्या जन-जन की।।
सत्ता पाने के लालच में, भोली जनता को लूट रहे।
आंखों में आसूं भरे हुए, लोगों के सपने टूट रहे।
देश की तकदीर बदलने, लाशों पर चढ़कर जाते हैं।
खाकर मांस आदमी का , नकली चेहरा दिखाते हैं।।
राजनीति के गद्दारों को , मत का मूल्य पता नहीं।
जबरदस्ती करते लोगों से, लोकतंत्र का खौफ नहीं ।
न्याय और कानून यहां पर, खुलेआम जन तोड रहे।
बसें विभीषण घर में यहां , देश की इज्जत लूट रहे।।
चमचा और चोरों की सत्ता , शासन की बदहाली है।।
बंगाल जैसी हरकतों से , उजागर होती करतूत काली है।
दया, धर्म,प्रेम करुणा, लोगों के दिल में बची नहीं।
लोगों के दिल में लोकतंत्र की, इज्जत आबरू बची नहीं।।