गुरु पूर्णिमा
आदि से अंत तक, तेरे आशीष की माया है।
फर्श से अर्श तक तेरा अस्तित्व छाया है।।
ईश्वर से बड़ा कद है तेरा, तू जग में महान है।
शरणागत आता है जो नर तेरी ,उसका सदा कल्याण है।
कण-कण में तू, तेरी पवित्र वाणी मुझे भाती है।
कोटि-कोटि नमन तुम्हे दण्डवत,तू मेरे जीवन की थाती है।
चांद है सुरज है तू , आसमान के चमकते तारे हैं तू।
बुझे हुए दीपक की लौ ज्ञान तेरा , तम के अस्तित्व में ज्योति है तू।।
जहां भी पाया है ,तुझको ही पाया है।
जग के कोने-कोने , तेरे यश की माया है।।
निशब्द है दुनिया के शब्दों से वर्णन नहीं कर सकता हूं।
लोग गागर में सागर भरते हैं, गुरू तेरे लिए नहीं कह सकता हूं।।
तेरे चरणों में है सब कुछ , मैं हर सुख पाया तेरी परछाई में।
तेरा आशीष रहे सदा सिर ऊपर , छुं लूं आसमान ऊंचाई में।।
भव सागर की डूबती नैया , पार लगा सकता है गुरुदेव मेरे।
अनजान ,अज्ञानी , नासमझ हूं मैं, पर प्रदर्शक बने रहो मेरे।।
अनन्त, असीमित, अनमोल, अद्भुत, तेरा अस्तित्व धरा से अम्बर।
आत्मविश्वास, आत्मज्ञान , आत्मबल देता है तू, रहे नहीं किसी का डर ।।
निर्भय,निडर , निष्पक्ष, निष्ठा से , नतमस्तक हो नया सवेरा देख रहा ।
नूतन सूरज की नूतन किरणों का , नव दिवस तेरे बल से पा रहा ।
नई राह ,नयी मंजिल , नई दुनिया, नये अहसास ।
सब लगते हैं मुझको अपने , जब तक मुझे तेरा विश्वास।
सत्य , ईमान , पथ चलता हूं, मेरा कोई पंथ जाति नहीं ।
तेरे वचन का पालक मैं स्वामी , तेरे बिना कोई तात मात नहीं ।।
विश्वास अखंड ज्योति सम है, हृदय सदा प्रज्वलित रहता है।
प्रेम ,दया , करूणा , सदाचार , मेरे दिल में सदा यहां रहता है।।